रेल भवन को ट्रांसफर/पोस्टिंग की “दूकान” किसने बनाया?

रेलवे में डीआरएम, जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग समय पर कब हुई है, जो अब होगी?

सुरेश त्रिपाठी

हाल ही में एक दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर को बहुत से रेल अधिकारी सोशल मीडिया पर खूब शेयर कर रहे हैं। इससे उनके अंदर जीएम और बोर्ड मेंबर स्तर पर लंबे समय से रिक्त पड़े पदों पर पोस्टिंग को लेकर पैदा हो रही खिन्नता, उद्विग्नता का पता चलता है।

हालांकि उक्त खबर में ऐसी कोई नई बात नहीं कही गई है, जो अब तक रेलवे में नहीं हुई थी। सब कुछ ठीक पुराने ढ़र्रे पर ही चल रहा है, बल्कि पिछले तीन-चार सालों में तो यह स्थिति और भी ज्यादा निचले स्तर पर चली गई है।

कोई नई बात नहीं हो रही है। आज तक रेलवे में डीआरएम, जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग समय पर कब हुई है, जो अब होगी?

जो भी नया सीआरबी, अब सीईओ, बनकर रेल भवन में आता है, वह इतिहास में दर्ज उस एक दिन के राजा की तर्ज पर अपना चमड़े का सिक्का चलाता है, यानि वह अपने नियम कुछ इस तरह तय करता है, जैसे उससे पहले वहां पदस्थ रहे बाकी लोग मूर्ख थे! और अब वह आया है, तो सब ठीक कर देगा!

परंतु वास्तव में ठीक होता कुछ भी नहीं है, बल्कि चीजों को और ज्यादा गड्ड-मड्ड करके व्यवस्था को वह और ज्यादा हानि पहुंचा रहा होता है।

जैसा कि वर्तमान में होते हुए स्पष्ट देखा जा सकता है कि पिछले तीन महीनों में कोई एक भी ऐसा निर्णय नहीं हुआ है, जिससे कि रेल को एक कदम आगे बढ़ाने या प्रगति करने में कुछ योगदान हो रहा हो।

जानकारों का मानना है कि जीएम पोस्टिंग एक जनवरी को ही हो सकती थी, जो कि जानबूझकर नहीं की गई। जबकि पिछले जीएम पैनल से यह पोस्टिंग बकायदा हो सकती थीं। डीओपीटी का नियम इसका समर्थन करता है।

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। दो चरणों का मतदान भी हो चुका है। परंतु पूर्व रेलवे के जीएम की पोस्ट 31 दिसंबर 2020 से खाली है। क्या पीएमओ और रेलमंत्री को इसका तत्काल संज्ञान नहीं लेना चाहिए था?

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जब 31 दिसंबर को तत्कालीन जीएम/पूर्व रेलवे ने बतौर सीआरबी/सीईओ रेल भवन, दिल्ली में ज्वाइन कर लिया था, नियम और तकनीकी तौर पर उक्त पद उसी समय, उसी क्षण और उसी दिन से रिक्त माना जाना चाहिए था।

तथापि यदि इसे चालबाजी या अन्य तिकड़म से 1 जनवरी को भी रिक्त माना जाता है, तब भी पिछले पैनल से जीएम पोस्टिंग में कोई नियम-कानून आड़े नहीं आता। जरूरत केवल इच्छाशक्ति की होती है, जो कि कुछ निहित उद्देश्य से नहीं की गई।

इस तरह देखा जाए तो पूर्व रेलवे में पिछले एक साल में रेल के विकास के लिए न कोई उचित निर्णय लिया गया, और न ही पिछले तीन महीनों में रेल भवन में बैठकर कोई निर्णय लिया जा रहा है। जिसको पूर्व रेलवे के जीएम का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया, वह तो और भी ज्यादा डरपोक और अनिर्णय का शिकार है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि हर बार हर सीआरबी और मंत्री, जीएम एवं बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग के नए नियम क्यों बनाना चाहता है? क्या यह नियम स्थाई रूप से सुनिश्चित नहीं होने चाहिए? क्या ऐसा केवल अपनी-अपनी “दूकानदारी” चलाने के लिए किया जाता है? क्या इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं मिलता? यदि ऐसा कुछ नहीं है, तो पीएमओ, डीओपीटी, एसीसी इत्यादि व्यवस्थाओं का औचित्य क्या रह जाता है?

जबकि रेल भवन की जमीनी सच्चाई यह है कि जब तक रेल अधिकारी रेलमंत्री और सीआरबी के “दरबार” में बार-बार जाकर अपनी नाक न रगड़ें, उपयुक्त चढ़ावा न चढ़ाएं, तब तक रेलवे में जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (जेएजी) तक के अधिकारी की पोस्टिंग नहीं होती।

रेल में यह केवल आज का ट्रेंड नहीं है, बल्कि ऐसा वर्षों से होता चला आ रहा है, मगर अब तो यह ट्रेंड बहुत ही घटिया स्तर पर पहुंच गया है, क्योंकि रेल भवन को अधिकारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग और टेंडर आवंटन की “दूकान” में परिवर्तित दिया गया है।

इस “दूकान” के “मालिक” बताए जाते हैं रेलमंत्री, जिन्होंने इस दूकान को चलाने की जिम्मेदारी अपने दो एजेंट्स को दे रखी है, जो उनका यह कथित अनधिकृत-अवैध कारोबार बखूबी संभाल रहे हैं।

यह दोनों एजेंट तय करते हैं कि किसको, कितने में और कहां पोस्टिंग मिलेगी तथा किस कांट्रैक्टर/सप्लायर को कौन सा टेंडर दिया जाएगा। उस टेंडर की क्या-क्या टर्म्स एंड कंडीशंस होंगी, यह भी रेल भवन में बैठकर यही दोनों एजेंट तय करते बताए जाते हैं।

इस “दूकानदारी” का विस्तार डीजी/एचआर आनंद सिंह खाती के स्तर तक हुआ, जिन्होंने अपने ओएसडी को ही अपना एजेंट बना लिया था। 31 मार्च को खाती सहित दो हजार से ज्यादा सेवानिवृत्त हुए रेलकर्मियों एवं अधिकारियों के विदाई समारोह में रेल भवन से रेलमंत्री ने खुद ही खाती की इस घटिया प्रवृत्ति का अपने शब्दों में अपनी तरह से विशेष उल्लेख किया है।

सवाल यह भी है कि आर्मी से अपनी तुलना करने वाला रेल मंत्रालय आज तक एडवांस जीएम पैनल तैयार रखने में क्यों सक्षम नहीं हो पाया है?

बताया यह भी जा रहा है कि मंत्री को 7-8 जनवरी के आसपास यह आश्वस्त किया गया था कि एक महीने में जीएम पोस्टिंग के लिए नए नियम तय हो जाएंगे और महीने भर के अंदर ही सभी जीएम/मेंबर्स की पोस्टिंग कर दी जाएगी। पर क्या हुआ, वही ढ़ाक के तीन पात! क्रमशः

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