सरकार से एक स्वाभाविक सवाल !

“विशुद्ध रूप से बतौर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अब तक की व्यक्तिगत उपलब्धि क्या है?”

यह स्वाभाविक सवाल जनता और नौकरशाही दोनों स्तर पर आज तब पूछा जा रहा है, जब छत्तीसगढ़ के बीजापुर-सुकमा में 22 जवानों की अनपेक्षित बलि चढ़ा दी गई है।

यह स्वाभाविक सवाल तब और ज्यादा स्वाभाविक हो जाता है जब आज तक दिल्ली के दंगों के दंगाइयों और मौलाना साद की गिरफ्तारी संभव नहीं हो सकी है। मुंगेर दुर्गा पूजा की मौतों के जिम्मेदार और 26 जनवरी को खालिस्तानी दंगाइयों के विरुद्ध कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका है।

और अब नक्सली हमलों का पुनर्जन्म! जिसमें 22 निर्दोष जवानों की बलि चढ़ गई और 31 से ज्यादा जवान गंभीर रूप से घायल हुए हैं। जबकि अब तक सिर्फ एक महिला नक्सली का शव बरामद हुआ है और बाकी सब गफलत में है!

यह एक सच्चाई है कि नक्सलवाद को कोई खत्म नहीं करना चाहता। न राज्य सरकारें, न ही केंद्र सरकार। नक्सल के नाम पर अकूत धनराशि की बंदरबांट होती है।

केंद्र में इसका पूरा एक डिपार्टमेंट अलग से बना हुआ है। नक्सल के नाम पर इसका एक सेक्रेटेरी भी है। जैसे नक्सल कोई ट्रेंड आर्मी कमांडोज हैं, जिनके पास टैंक और तोप जैसी आर्टिलरी है।

कोई भी जिलाधिकारी या पुलिस सुपरिटेंडेंट नहीं चाहता कि उसका जिला नक्सल मुक्त घोषित हो जाए, क्योंकि तब अनाप-शनाप पैसा मिलना जो बंद हो जाएगा, जिसका कोई हिसाब उन्हें नहीं देना पड़ता।

सीक्रेट फंड, जो नक्सल के नाम पर करोड़ों में होता है, जिसका कोई ऑडिट नहीं होता, वह बंद हो जाएगा।

असली नक्सल कौन है? देश को आज तक पता ही नहीं है। और मर कौन रहा है? न पुलिस, न लोकल, बस सीआरपीएफ और ऐसे ही अन्य केंद्रीय सुरक्षा बलों के निर्दोष जवान!

रांची जैसा जिला भी अब नक्सल प्रभावित जिले के तौर पर घोषित है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

एक अफवाह यह भी सुनने में आ रही है कि पंजाब पुलिस “खालिस्तानी भूत” को हमेशा जीवित रखना चाहती है, ताकि उससे जो निरंकुश अधिकार पंजाब मिलिटेंसी के समय पंजाब पुलिस को मिले थे, वह उसके पास हमेशा बने रहें।

सोशल मीडिया पर आम आदमी अपनी राय कुछ इस तरह व्यक्त कर रहा है, “एक बार फिर छत्तीसगढ़ के बीजापुर-सुकमा में नक्सलियों से मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए। पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, ऐसे समय में यह हमला होना बहुत सारी आशंकाएं पैदा करता है। नक्सलवाद के इस रिसते हुए छाले का फूटना अब बहुत जरूरी है।”

एक केंद्रीय बल के एक संतप्त सदस्य ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “जितना मेरी समझ में आया है, उससे मेरा तो यही मानना है कि यह सब सरकार का खेल है। खेल इसलिए है, क्योंकि बॉर्डर पर अब कुछ करने की हिम्मत नहीं है, पोल खुल गई है। अभी तक कोई जबाब या जांच नहीं है। देश के आम लोगों के साथ यह धोखा है। जो लोग आर्मी, बीएसएफ, सीआरपीएफ और अन्य बलों में काम कर रहे हैं, वह सभी गरीबों-किसानों के बच्चे हैं। सरकार को गरीबों, किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है। यह नक्सल हमला भी राजनीति का ही खेल लगता है।”

A retired senior government official said, “the police should always be under total control of the society. Unfortunately in india, becuase of the existence of the IPS cadre sytem, the police is belagaam, and it preys on the society. If police is not kept under control it will become gangsters in uniform, which is pretty much what is going on in India.”

He further said, “when someone is given a uniform, and he is given ‘power’, there is a natural tendency to ‘corruption’. It can not be prevented unless the right structure is created, to ensure honesty and a society with a corrupt police can never achieve equity and progress, either economic or social. So the root cause of all problems is IAS and Police i.e. IPS.”