कदाचारी स्टाफ के लिए कोई मायने नहीं रखता विभाग प्रमुख का आदेश
सीएमआई/कानपुर के पद पर कदाचारी की पुनः पोस्टिंग की जुगाड़
‘डीलिंग’ हो चुकी, अब सीसीएम के आदेश का कोई महत्व नहीं!
अब तक क्यों नहीं हुई फर्जी कोटेशन वर्क, बिना टेंडर पार्किंग/डीलक्स टॉयलेट संचालन आदि अनियमितताओं की जांच
कानपुर: वैसे तो वर्तमान में पूरी ‘रेलवे सिस्टम’ में ही भांग मिली हुई है, कहीं कम कहीं ज्यादा, पर भ्रष्टाचार और मनमानी का बोलबाला चौतरफा है। ऐसे में उत्तर मध्य रेलवे जोन और इलाहाबाद मंडल में खासकर वाणिज्य विभाग से जारी होने वाले ट्रांसफर/पोस्टिंग आदेश और उनमें किए जाने वाले परिवर्तन अथवा उनके निरस्तीकरण मानो भांग खाकर ही किए जा रहे हैं। अब हर जगह जीएम/उ.म.रे राजीव चौधरी खुद तो निगरानी करने जा नहीं सकते। इसलिए नीचे के अफसर अपनी मनमानी करने पर उतारू हैं।
गौरतलब है कि जीएम श्री चौधरी ने ही कानपुर के महाकदाचारी पूर्व डिप्टी सीटीएम एवं स्टेशन निदेशक को बिना किसी रिलीवर के रातोंरात हटाकर झांसी मंडल में मई, 2019 में जॉइन करवाया था और उनकी सारी राजनीतिक पकड़ की तथाकथित हेकड़ी पल भर में निकाल दी थी। इसके बाद उसी के अगले सप्ताह इसी कड़ी के भ्रष्ट सुपरवाइजर को पीसीसीएम एम. एन. ओझा ने तुरंत प्रभाव से सीएमआई के पद से हटाकर उसके मूल कैडर बुकिंग में भेज करके कानपुर एरिया में फैले भ्रष्टाचार की सड़ांध को काफी हद तक खत्म करने का महत्वपूर्ण काम किया था।
लेकिन कहावत है कि पैसा और जुगाड़ बड़ा बलवान होता है। पता चला है कि इसी दोनों के दम पर उस अदने से बुकिंग सुपरवाइजर ने पीसीसीएम के आदेश को धता बताकर फिर से कानपुर में सीएमआई के पद पर आने की डीलिंग कर ली है। वह भी तब जब सीनियर डीसीएम नवीन दीक्षित द्वारा प्रशासनिक आधार पर उसका आवधिक स्थानांतरण कानपुर से फतेहपुर में कर दिया गया है। (देखें क्रम सं.6, कार्यालय आदेश सं. 631, दि. 08.11.2019)।
विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है कि दंभ में वह लोगों से कहता फिर रहा है कि ‘अधिकारी को हड्डी फेंको और जो चाहे वो करा लो, चाहे वो सीसीएम, सीनियर डीसीएम या डिप्टी सीटीएम ही क्यों न हों, पैसा सबको चाहिए।’
यह भी पता चला है कि उसकी कानपुर में सीएमआई के पद पर पुनः पोस्टिंग की सिफारिश झांसी में सीनियर डीसीएम के पद पर पदस्थ उसके भागीदार पूर्व स्टेशन डारेक्टर/कानपुर द्वारा भी की जा रही है। इसके अलावा कानपुर सेंट्रल में दैनंदिन आधार पर पार्सल की लीज अवैध तरीके से लेकर रेलवे को लाखों का चूना लगाने वाले दलालों द्वारा भी की जा रही है, क्योंकि इन भ्रष्ट लोगों को डर है कि यदि उन लोगों से संबंधित फाइल खुल गई, तो बहुत लोग सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे।
यही नहीं, पिछले तीन सालों में कोटेशन के नाम पर फर्जी काम दिखाकर पूर्व स्टेशन डायरेक्टर द्वारा रेलवे को लाखों रुपये का चूना लगाया गया है। इसके अलावा उन्होंने पार्किंग और डीलक्स टॉयलेट का कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद अवैध तरीके से दोनों का संचालन कई महीनों तक करा करके प्रतिमाह लाखों रुपए अवैध ढंग से वसूला, जिसमें स्टेशन अधीक्षक, सीएमआई भी शामिल रहे हैं।
कर्मचारियों का कहना है कि उपरोक्त सभी अनियमितताओं की जांच अब तक जोनल विजिलेंस द्वारा शुरू क्यों नहीं की गई है, जबकि यह मामले कई बार मीडिया में आ चुके हैं। उनका कहना था कि इसका मतलब क्या यह समझा जाए कि विजिलेंस की भी उक्त मामलों में कोई मिलीभगत है अथवा वह किसी दबाव में है!
जानकारों का कहना है कि इस अनियमितता पर नए पदस्थ स्टेशन डायरेक्टर हिमांशु उपाध्याय ने आते ही रोक लगाई और स्वयं के प्रयत्नों से खत्म हो चुके ऐसे लगभग सभी कॉन्ट्रेक्ट्स को नए सिरे से अवार्ड कराया। हालांकि उनकी भी कुछ कारगुजारियों पर स्टाफ को शक है और वह खासकर मैनपावर प्लानिंग को लेकर आपस में ‘कानाफूसी’ कर रहे हैं, लेकिन यकीनी तौर पर कोई भी स्टाफ ठोस सबूत देने से फिलहाल बच रहा है।
अब जहां तक बात तथाकथित सीएमआई की है, तो इस मुद्दे पर पता चला है कि इस वक्त सीनियर डीसीएम इलाहाबाद नवीन दीक्षित ऑफिसियल ट्रेनिंग पर जापान गए हैं। चूंकि ट्रांसफर आर्डर उन्होंने ही निकाला है, इसलिए उनके वापस आते ही उक्त बुकिंग सुपरवाइजर द्वारा अपना आर्डर कैंसिल कराकर कानपुर में सीएमआई के लिए करा लिया जाएगा। उसका कॉन्फिडेंस इतना है कि खुलेआम कहता फिर रहा है कि ‘डीलिंग हो चुकी है, इसमें अब सीसीएम के आदेश का कोई महत्व नहीं रह गया है।’
अब पीसीसीएम को यह तय करना है कि क्या एक अदने से बुकिंग स्टाफ के पास इतनी ताकत आ गई है कि उसे अब पीसीसीएम का आदेश भी तुच्छ लगने लगा है? क्या उसके लिए पीसीसीएम का पद इतना गैरमामूली है कि वह दूसरे स्टाफ के सामने उसका सम्मानजनक तरीके से उच्चारण भी करना जरूरी नहीं समझता? अथवा क्या वह अपनी इस लूट-खसोट और कदाचार में उनके भी शामिल होने का कोई संकेत दे रहा है?