आखिर कब तक यूनियनों का बंधक बना रहेगा रेल प्रशासन!
आखिर कब तक यूनियनों की धींगामुश्ती, ब्लैकमेलिंग और अपमान का शिकार होते रहेंगे रेल अधिकारी
जहां एक तरफ देश के लाखों बेरोजगार युवा सरकारी नौकरी के लिए तरस रहे हैं, और दर-दर भटक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ रेलवे के कुछ कामचोर कर्मचारियों को सरकारी नौकरी की कोई कद्र नहीं है।
ऐसे लोग सिर्फ अपनी यूनियनबाजी और नेतागीरी के चक्कर में सरकार की खिलाफत के साथ युवा पीढ़ी का तो भविष्य बरबाद कर ही रहे हैं, बल्कि शासन – प्रशासन को भी ताक पर धर रहे हैं।
आज रेलवे की जो दुर्गति है, उसकी एक बड़ी वजह यह तमाम कामचोर यूनियन पदाधिकारी भी हैं। पिछले हफ्ते अमृतसर स्टेशन पर यूनियन की जो धींगामुश्ती हुई, उसका मुख्य कारण लंबे समय से एक ही जगह जमे एक यूनियन पदाधिकारी (क्रमांक-12) का अमृतसर से पठानकोट हुआ प्रमोशनल ट्रांसफर है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार यूनियन का यह पदाधिकारी यूनियन की अमृतसर शाखा का शाखा सचिव बताया गया है। बताते हैं कि यह वर्ष 1994 से वर्ष 2018-19 तक करीब 25 साल तक लगातार अमृतसर पार्सल डिपो में ही पदस्थ रहा था।
पिछले साल आवधिक स्थानांतरण में उक्त पदाधिकारी को पार्सल डिपो से हटाकर वहीं अमृतसर स्टेशन के टिकट बुकिंग कार्यालय में पदस्थ किया गया था। तब भी इसने बहुत हंगामा काटा था। तथापि नियमानुसार शाखा के दायरे में और उसी स्टेशन पर नियुक्ति किए जाने से प्रशासन के सामने तब इसके कोई हथकंडे काम नहीं आए थे।
28 जनवरी 2021 को इस पदाधिकारी सहित कुल 22 कर्मचारियों का प्रमोशनल ट्रांसफर फिरोजपुर मंडल के विभिन्न स्टेशनों पर किया गया। प्रमोशन पर स्थान परिवर्तन नीतिगत निर्णय है। अतः इस यूनियन पदाधिकारी का भी ट्रांसफर अमृतसर से पठानकोट किया गया।
उक्त 22 में से आधे से अधिक कर्मचारियों ने अपनी नई जगह पर जाकर पदभार भी ग्रहण कर लिया। इसके अलावा इनमें से एक कर्मचारी इस प्रमोशन के सभी लाभ लेकर 28 फरवरी को सेवानिवृत्त भी हो गया।
परंतु उक्त यूनियन पदाधिकारी पठानकोट जाने के लिए तैयार नहीं था और कुछ अन्य कर्मचारी भी किसी न किसी कारण से अभी रिलीव होने बाकी थे अथवा वे भी अपना ट्रांसफर रद्द कराने की जुगाड़ लगा रहे थे।
इस बीच बताते हैं कि उक्त यूनियन पदाधिकारी की “डील” डीआरएम/फिरोजपुर के साथ हो गई। इसके बाद डीआरएम ने सीनियर डीसीएम पर उक्त ट्रांसफर आर्डर को स्थगित करने का दबाव डाला, जिसे सीनियर डीसीएम ने नहीं माना।
इसके बाद डीआरएम ने एडीआरएम के माध्यम से 9 मार्च को उक्त ट्रांसफर आर्डर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा दिया।
देखें – सीनियर डीपीओ का आदेश-
उल्लेखनीय है कि अभी कुछ ही दिन पहले इसी यूनियन की इंजीनियरिंग शाखा के पदाधिकारियों ने सीनियर डीईएन/समन्वय के विरुद्ध भी धरना-प्रदर्शन किया था। उसके पीछे भी डीआरएम/फिरोजपुर का ही वरदहस्त बताया गया है, क्योंकि सीनियर डीईएन, समन्वय की भी डीआरएम से पटरी नहीं बैठती है, ऐसा पता चला है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इसी यूनियन ने कुछ समय पहले डीआरएम के बंगले पर जोरदार प्रदर्शन किया था, जिसमें “हाय-हाय, डीआरएम मामा मर गया, मामी को विधवा कर गया” जैसे नारे लगाए गए थे। इसी प्रदर्शन के बाद डीआरएम ने उक्त यूनियन पदाधिकारियों को अपना बगलबच्चा बना लिया था।
मंडल अधिकारियों का कहना है कि जो भी ब्रांच अधिकारी डीआरएम के कहे नियम विरुद्ध कार्य करने में आनाकानी करता है, उसे ब्लैकमेल अथवा मजबूर करने के लिए डीआरएम द्वारा दोनों में से किसी एक यूनियन को अपना हथियार बनाया जाता है।
उनका यह भी कहना है कि डीआरएम को यदि ट्रांसफर आर्डर स्थगित ही करना था, तो आर्डर जारी होने के तुरंत बाद या फरवरी की शुरुआत में ही कर देना चाहिए था। अब जब आधे से ज्यादा कर्मचारियों ने नई जगह ज्वाइन कर लिया है और समस्त लाभों सहित उनमें से एक रिटायर भी हो गया, तब इस स्थगन का औचित्य क्या रह जाता है?
उन्होंने यह भी कहा कि फिर भी यदि स्थगित करना जरूरी था, तो सिर्फ अपने बगलबच्चे अर्थात उक्त यूनियन पदाधिकारी का ही करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आखिर यूनियनों और उनके कामचोर पदाधिकारियों की यह धींगामुश्ती कब तक चलेगी और प्रशासन कब तक उनका बंधक बनकर रहेगा?
इसके अलावा जानकारों का कहना है कि जिन कर्मचारियों ने नई जगह ज्वाइन कर लिया, उन्हें ट्रांसफर अलाउंस देय होगा और अब उक्त स्थगन आदेश के बाद जब वह पुनः अपनी पुरानी जगह जाएंगे, तब भी वह पुनः ट्रांसफर अलाउंस पाने के लिए अधिकृत होंगे, क्योंकि यह आवाजाही उनकी अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि प्रशासनिक आदेश पर हो रही है। उनका कहना है कि सार्वजनिक राजस्व के इस भारी नुकसान की भरपाई डीआरएम से करवाई जानी चाहिए।
जानकारों का कहना है कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात अपने तरीके से रखने का अधिकार है। नियम-कानून सबके लिए समान हैं। फिर इससे यूनियन पदाधिकारी अछूते क्यों होने चाहिए?
उनका कहना है कि रेलवे में जिस तरह यूनियनों और उनके पदाधिकारियों की तानाशाही चल रही है और उसे रेल प्रशासन द्वारा बर्दाश्त किया जा रहा है, यह समझ से परे है।
उन्होंने कहा कि सवाल यह भी है कि कोरोना महामारी के चलते और तमाम प्रोटोकॉल और सरकारी दिशा-निर्देश लागू होने के बावजूद स्टेशन पर इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को इकट्ठा करके जूलूस निकालने और प्रदर्शन करने की अनुमति किसने और क्यों दी?
उनका कहना था कि वर्तमान डीआरएम/फिरोजपुर का पूरा कार्यकाल विवादों में रहा है और पूरे समय मंडल में अशांति पसरी रही है। उनका कहना है कि यदि मंडल मुखिया ही यूनियन पदाधिकारियों को अपना हथियार (एजेंट) बनाकर अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाता है, उन्हें नियम विरुद्ध कार्य करने के लिए मजबूर करता है, तब प्रशासनिक व्यवस्था का औचित्य नष्ट हो जाता है।
उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड और उत्तर रेलवे मुख्यालय को डीआरएम/फिरोजपुर के पूरे कार्यकाल का उचित संज्ञान लेना चाहिए।
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