ऑर्बिट्रेशन की निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करे सरकार!

रिटायर्ड अधिकारी ही ऑर्बिट्रेटर क्यों? सिटिंग जज अथवा अन्य कोई क्यों नहीं? कैसे रुकेगा कांट्रेक्टर्स का आर्थिक शोषण?

“आरसीटी” अथवा “कैट” की तर्ज पर “सेंट्रल कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन” की स्थाई स्थापना की जाए

रिटायर्ड रेल अधिकारी रेलवे के लगभग हर विवादित मामले (ऑर्बिट्रेशन) में निर्णायक (ऑर्बिट्रेटर) बनाए जाते हैं।

जानकारों का कहना है कि यह परंपरा पक्षपात रहित नहीं है। कयोंकि उनकी सालाना कमाई औसतन 30 लाख बतौर ऑर्बिटर फीस होती है। इसके अलावा उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट्स और पेंशन भी मिलती है। जबकि कांट्रैक्टर से एक्सटॉर्शन (फेवर में निर्णय देने के लिए मिलने वाली राशि) अलग से किया जाता है!

उन्होंने कहा कि “यह आश्चर्य की ही बात होगी कि रेल के इस “खेल” के बारे में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अथवा सरकार को पता न हो। हां, यह अवश्य माना जा सकता है कि रेल में चल रहे नौकरशाही के इस खेल को किसी ने अब तक उनके संज्ञान में लाने की कोशिश न की हो।”

उन्होंने बताया कि “इसके लिए तर्क यह दिया जाता है कि चूंकि रिटायर्ड रेल अधिकारी को संबंधित विवादित मामले में विषय की जानकारी और अपना अनुभव होता है, इसलिए यह काम उन्हें सौंपा जाता है।”

उन्होंने कहा कि “मान्य है काफी हद तक प्रशासन का उपरोक्त तर्क, परंतु क्या यही मात्र इसका पूरा सच है? जबकि मीटिंग के नाम पर इनके द्वारा अलग-अलग शहरों में कांट्रैक्टर के खर्च पर घुमक्कड़ी और मौज-मस्ती की जाती है।”

उनका कहना था कि “इसके बावजूद यदि कांट्रैक्टर से अपेक्षित “सेवा” में कोई कमी रह जाती है अथवा वह अपेक्षित अंडर टेबल राशि का भुगतान करने में सक्षम नहीं हो पाता है, इसमें कोई कोताही करता है, तो अंततः उस लुटे-पिटे कांट्रैक्टर के खिलाफ निर्णय दे दिया जाता है।”

उन्होंने बताया कि “अधिकांश कांट्रैक्टर इस पक्षपातपूर्ण प्रणाली से भयानक रूप से असंतुष्ट हैं और वह चाहते हैं कि या तो स्थाई रूप से बतौर ऑर्बिट्रेटर सिटिंग जजों की नियुक्ति की जाए, या फिर रेलवे से इतर अन्य सरकारी महकमों के कार्यरत सक्षम अधिकारियों का पैनल बनाकर उनमें से ऑर्बिट्रेटर नियुक्त किए जाएं।”

उनका यह भी कहना है कि इसके लिए विभिन्न विषयों के बाहरी विशेषज्ञों और लॉ ग्रेजुएट्स की नियुक्ति पर भी विचार किया जा सकता है।

इसके अलावा, रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल (आरसीटी) अथवा सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) की तर्ज पर “सेंट्रल कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन” की स्थाई स्थापना की जानी चाहिए।

जबकि कांट्रैक्टरों का कहना है कि “रिटायर्ड रेल अधिकारियों की खिलाफत करने का उनका कोई उद्देश्य नहीं है, वह सिर्फ इतना चाहते हैं कि सारी प्रक्रिया पक्षपात रहित और पारदर्शी हो तथा उनका आर्थिक शोषण एवं उत्पीड़न रोका जाए।”

उनका मानना है कि रोजगार बढ़े, ऐसा कुछ करे सरकार!

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