न्यूनतम मजदूरी: रेल प्रशासन के प्रयास, प्रावधान सराहनीय, परंतु अलग है जमीनी हकीकत
ठेका कर्मचारियों की न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित कराएगा रेल प्रशासन
कुल 15,812 निजी ठेकेदारों के कुल 3,81,831 कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स का हुआ श्रमिक कल्याण पोर्टल पर पंजीकरण
रेल प्रशासन ने रोजंदारी (डेली बेसिस) पर काम करने वाले श्रमिकों (कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स) के हित में “श्रमिक कल्याण पोर्टल” विकसित किया है। इस पोर्टल के माध्यम से रेल प्रशासन का उद्देश्य ठेका कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए “न्यूनतम मजदूरी” के प्रावधानों का शत-प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित कराना है। मीडिया के माध्यम से यह जानकारी रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा गुरुवार, 11 मार्च को दी गई है।
रेलवे द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 9 मार्च, 2021 तक श्रमिक कल्याण पोर्टल पर कुल 3,81,831 कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स का पंजीकरण हो चुका है। ये सभी ठेकाकर्मी 15,812 निजी ठेकेदारों के अधीन रहकर रेलवे में कार्यरत हैं।
भारतीय रेल के अंतर्गत इस पोर्टल पर 48,312 लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस के साथ-साथ अब तक कुल 6 करोड़ कार्य दिवसों और 3,49,590 करोड़ रुपये से अधिक की मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित किया जा चुका है।
ज्ञातव्य है कि रेल प्रशासन द्वारा इस श्रमिक कल्याण पोर्टल को 1 अक्टूबर, 2020 को शुरू किया गया था।
रेल मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार रेलवे के अंतर्गत काम करने वाली सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयां (पीएसयू) श्रमिक कल्याण पोर्टल का उपयोग कर रही हैं।
श्रमिक कल्याण पोर्टल पर भारतीय रेल संबंधित सभी पीएसयू सहित सभी जोनों के सभी मंडलों, कारखानों, उत्पादन इकाईयों इत्यादि से संबद्ध सभी ठेकेदारों को पंजीकृत किया जाना अनिवार्य किया गया है।
इसके अलावा, रेलवे की विभिन्न यूनिटों द्वारा जारी किए गए वर्क आर्डर को भी इस पर दर्ज किया जाना अनिवार्य है।
निजी ठेकेदारों/कंपनियों/फर्मों को उनके अंतर्गत रेलवे में कार्यरत प्रत्येक कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स की डिटेल श्रमिक कल्याण पोर्टल पर दर्ज कराना अनिवार्य है।
इसके साथ ही प्रत्येक ठेका कर्मी को आवंटित किए गए कार्य और उसके वेतन का विवरण भी नियमित आधार पर अपडेट करना आवश्यक किया गया है।
ठेका कर्मियों की न्यूनतम मजदूरी का शत-प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए समय-समय पर इसकी जांच का भी प्रावधान किया गया है।
जमीनी हकीकत
रेल प्रशासन द्वारा किए गए उपरोक्त तमाम प्रावधान निश्चित रूप से सराहनीय हैं। सरकार/रेल प्रशासन द्वारा व्यवस्था को सुधारने के महती प्रयास किए जा रहे हैं। इसके कोई संदेह नहीं है। तथापि इस पूरे मामले की जमीनी सच्चाई यह है कि कुछ अपवादों को छोड़कर कहीं भी किसी भी यूनिट में ठेका मजदूरों को केंद्र सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी निजी ठेकेदारों द्वारा नहीं दी जा रही है।
अधिकांश यूनिटों में कांट्रैक्ट वर्कर्स अर्थात ठेका मजदूरों को सामान्यतः निजी ठेकेदारों द्वारा समय पर वेतन भुगतान तो किया नहीं जा रहा है, बल्कि उनके एटीएम कार्ड अपने पास रखे गए हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन (मिनिमम वेज) के भुगतान के प्रावधानों का सिर्फ कागज पर अनुपालन हो रहा है।
जमीनी सच यह है कि सरकार द्वारा तय मिनिमम वेज पर संबंधित ठेका कर्मियों का हस्ताक्षर लेने के बाद ही उनके बैंक खातों में “न्यूनतम मजदूरी” ट्रांसफर की जाती है और उसी दिन अथवा एकाध दिन बाद उन्हें एटीएम कार्ड देकर उनको दी जा रही माहवार राशि छोड़कर, बाकी राशि बैंक खाते से निकालकर एटीएम कार्ड सहित कंपनी के सुपरवाइजर को सौंपने/लौटाने का स्थाई/अनिवार्य निर्देश कंपनियों द्वारा दिया गया है।
इस गोरखधंधे में इन निजी ठेकेदारों के साथ नीचे से ऊपर तक का पूरा तंत्र जुड़ा हुआ है। जब कागज पर सब कुछ नियम से हो रहा है, और किसी ठेका मजदूर की कोई प्रत्यक्ष शिकायत भी नहीं है, यदि है भी, तो उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है, बल्कि उसे तत्काल कंपनी द्वारा निकाल बाहर किया जाता है। इसके अलावा नौकरी करना भी हर किसी की मजबूरी है। ऐसे में शिकायत कौन करेगा? इसी सब का फायदा उठाकर यह पूरा लूट तंत्र सक्रिय है।
यदि सतत निरीक्षण, जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने के साथ ही कर्तव्य एवं मानवीयता का तनिक ईमानदारी से पालन किया जाए, तो हर क्षेत्र में यह मॉडल अत्यधिक सफल हो सकता है। अन्यथा पहले की ही भांति सार्वजनिक राजस्व का बदस्तूर अपव्यय और लूट जारी रहेगी।
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