असल में “सिस्टम प्रायोजित हत्या” है, सीनियर डीईएन अमित कुमार की असामयिक मौत!

“सीनियर डीईएन/हेडक्वार्टर/फिरोजपुर मंडल अमित कुमार की असामयिक मौत का असली जिम्मेदार फिरोजपुर का डीआरएम है। इसकी निरंकुश और भ्रष्ट कार्यशैली के कारण ही इसके दो ब्रांच अफसरों को अकाल मृत्यु से गुजरना पड़ा है। यह एक सधे हुए डॉन की तरह “ॐ शांति” लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेता है। लेकिन इसको नहीं पता है कि इसकी “ॐ शांति” के नाद से फिरोजपुर मंडल के सभी अधिकारी और कर्मचारी कितने आतंकित हैं। हमको इस बात की आशंका हमेशा घेरे रहती है कि इसके “ॐ शांति” के चल रहे सीरियल संदेशों में हमारा नंबर कब आएगा?”

उपरोक्त संतप्त प्रतिक्रिया फिरोजपुर मंडल के उन तमाम कर्मचारियों और अधिकारियों की है, जो सीनियर डीईएन अमित कुमार और सीनियर डीएमई राजकुमार की असामयिक मौत से अत्यंत व्यथित हैं। कुछ अधिकारियों का कहना था कि जहां हर जगह जो संवेदनशील जीएम, डीआरएम और विभाग प्रमुख हैं, वे बेवजह किसी अधिकारी और कर्मचारी को ऑफिस नहीं बुला रहे हैं, उन्हें घर से ही काम करने की स्वतंत्रता दे रहे हैं, लेकिन वहीं डीआरएम/फिरोजपुर जैसे कुछ नितांत सैडिस्टिक टाइप के लोग भी हैं, जो ऑफिस में भीड़ लगाए बिना मान नहीं रहे हैं।

खैर, अब जहां तक होनहार अधिकारी अमित कुमार, सीनियर डीईएन/हेडक्वार्टर/फिरोजपुर मंडल, की मौत की बात है, तो उनके आकस्मिक निधन के कारणों की विस्तृत चर्चा आवश्यक है, क्योंकि हमारे विभिन्न स्रोतों से और खुद डीआरएम सेल, फिरोजपुर से जो जानकारी मिली है, वह बहुत ज्यादा चौंकाने वाली है।

डीआरएम/फिरोजपुर मंडल के विषय में तमाम बातें खुली किताब की तरह अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच चर्चा का विषय हैं और यह सही है कि उनके कृत्यों से हर दिन लोगों का भरोसा व्यवस्था से उठता जा रहा है। डीआरएम ने अपनी कार्य-प्रणाली से कलियुग का लोहा मनवा दिया है। मंडल के अधिकारी और कर्मचारी मान चुके हैं कि ईमानदारी से जो काम करेगा, वह निश्चित रूप से मरेगा, और जो कलियुग के हर फन का माहिर होगा, वही खूब फले-फूलेगा।

जीएम, सीआरबी, विभाग प्रमुख, और यहां तक कि मंत्री भी, सब उसी की सुनेंगे, क्योंकि कलियुग के कालियाओं को बखूबी पता है कि फिलहाल कोई कृष्ण नहीं है, अतः उनकी ही सत्ता चलेगी। इस सत्ता में जो ईमानदारी से और अच्छा-बुरा सोचकर चलने वाला होगा, जो पूरी तरह से दासता स्वीकार नहीं करेगा, वह या तो बार-बार के ट्रांसफर झेलेगा और लगभग डिमोट होकर बिना चैम्बर के रहने का इनाम पाएगा या अमित कुमार की तरह बेवजह और असमय मारा जाएगा।

उपलब्ध तथ्य बताते हैं कि डीआरएम ने हालात ही ऐसे बना दिए थे कि उसमें एक्सीडेंट के अवसर 100% बन गए, अमित कुमार बच जाते, तो वह उनका सौभाग्य होता। लेकिन “कालिया नाग” का फंदा इतना मजबूत था कि उससे छूट पाना लगभग नामुमकिन ही होता है।

यह तथ्य तो मंडल में सबको पता है कि अपने कुछ चहेते अधिकारियों को छोड़कर डीआरएम/फिरोजपुर दूसरे अधिकारियों को छुट्टी के लिए रुला मारते हैं। जब तक अधिकारी उनके पास दसियों चक्कर नही कटेगा, गिड़गिड़ाएगा नहीं, नाक नहीं रगड़ेगा, और जब तक पूरी तरह से घुटने नहीं टेक देगा, तब तक उसे छुट्टी नहीं मिलती है। फिर चाहे उसका कितना भी जरूरी काम क्यों न हो। उसमें भी यदि कोई अधिकारी पांच दिन की छुट्टी मांगता है, तो उसे एक दिन की छुट्टी मिलती है, और वह भी अंतिम क्षण तक उसको पता नहीं होता है कि उसे छुट्टी मिलेगी भी कि नहीं!

जो नौकरी करते हैं उनको पता होता है कि अपने अधीनस्थों के मानसिक उत्पीड़न का यह सबसे खतरनाक तरीका है। इसी के चलते कई बार ऐसे मंजर भी देखने को मिले हैं जब यूनिफॉर्म सर्विसेज और यहां तक कि सेना में भी अधीनस्थों द्वारा अपने अधिकारी को गोली मार दी गई या इससे उत्पन्न मानसिक विषाद की अवस्था में अपने कई सहकर्मियों की हत्या कर दी गई।

इसीलिए कहा जाता है कि जो समझदार अधिकारी होते हैं, उनकी एक सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि वे कभी भी अपने किसी भी अधीनस्थ की छुट्टी के आवेदन को अस्वीकृत नहीं करते, बल्कि बिना किसी किंतु-परंतु के मंजूर कर देते हैं। भले ही छुट्टी की अवधि ज्यादा हो या अव्यवहारिक लग रही हो, वे मुस्कुराते हुए उसे अपनी स्वीकृति प्रदान करते हैं। परिणामतः बदमाश से बदमाश तथा औसत दर्जे का अधीनस्थ भी इस तरह के अधिकारी को अपना सौ प्रतिशत बेहतर देता है।

अब जहां तक सबसे घटिया अधिकारी की बात है, तो उनकी पहचान ठीक इसके उलट होती है। जिसकी जिंदा मिसाल फिरोजपुर मंडल के डीआरएम हैं। इस तरह के अधिकारी के कारण सभी अधीनस्थ अनिश्चितता और अवसाद के माहौल में हतोत्साहित रहते हैं। फिरोजपुर मंडल इसका ज्वलंत उदाहरण है।

अमित कुमार का केस भी सुशांत सिंह राजपूत जैसा ही है। महज एक दुर्घटना जैसा दिखने वाला हादसा न होकर एक ऐसा माहौल और जानबूझकर बनाई गई परिस्थिति का परिणाम है अमित और सुशांत की मौत, जिसकी परिणति यही होनी थी, यह ऐसी होनी थी कि असल चेहरे धुंध बनकर रह जाएं और लोग पोस्टमार्टम को ही मानकर इसे ही नियति तथा दुर्घटनजन्य मौत मान लें।

डीआरएम/फिरोजपुर ने अमित कुमार की छुट्टी 18 जून को नामंजूर (रिग्रेट) कर दी थी। इस तथ्य को भली-भांति जानने के बावजूद भी कि लॉकडाउन के पहले से अमित अपनी पत्नी और नन्हीं नवजात बच्ची से मिल नहीं पाए हैं, जो अपने घर पर हाजीपुर, बिहार में थी। लॉकडाउन में अमित दिन रात काम पूरा करने में लगे रहे। ज्ञातव्य है कि 24 जून को ही उनकी शादी की दूसरी सालगिरह थी।

बिहार में हाजीपुर, जहां उनका घर था, फिरोजपुर से जाने में दो दिन लगते हैं। अगर वह सोमवार को चलते, तो मंगलवार की रात को घर पहुंचते। मतलब बिहार के अधिकारी को फिरोजपुर से घर जाने के लिए कम से कम चार दिन का ट्रांजिट टाइम लगेगा ही, और इस पर कोई सिर्फ पांच दिन की छुट्टी दे, तो मतलब स्पष्ट है कि सिर्फ एक दिन ही वह परिवार के साथ रह सकता है। लेकिन थकावट और समयाभाव के चलते वह न तो अपनी अन्य कोई जिम्मेदारी निभा सकता है, न ही किसी हित-नात से मिलने जा सकता है। वह भी तब जब वह एक लंबे समय के बाद अपने घर जा रहा हो।

अमित कुमार ने शायद इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए 20 जून से 28 जून तक की छुट्टी का आवेदन किया था। साफ जाहिर है कि उन्होंने इसमें अपनी तरफ से पहले ही काफी कंजूसी बरती थी, जिससे कि वह अगले सप्ताह के पहले कार्य-दिवस पर अपने ऑफिस में उपस्थित हो सकते।

डीआरएम की आंखों में शायद यही बात चुभ गई। उन्हें लगा कि वह ऐय्याशी करने जा रहा है और आगे-पीछे के दोनों शनिवार-रविवार भी इस्तेमाल करेगा। अतः उन्होंने अमित कुमार की छुट्टी रिग्रेट कर दी। यहां उनका रिग्रेट किया हुआ नोट देखा जा सकता है।

इसके बाद कोई भी यह अंदाजा लगा सकता है कि इस दौर में जहां कोरोना की वजह से वैसे ही चौतरफा एक आम मनहूसियत का माहौल छाया हुआ है, महीनों से अपनी नवजात बच्ची और पत्नी से दूर अमित कुमार की मन:स्थिति पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ा होगा!

इसके बाद अमित कुमार ने डीआरएम की चिरौरी-विनती शुरू की, तब अंत में जाकर उन्हें पांच दिन की छुट्टी भीख में मिली, और वह भी पूरा एहसान जताते हुए दी गई।

बताते हैं कि अमित ने फर्स्ट एसी में अपना रिजर्वेशन भी कराया था, लेकिन छुट्टी ऐसे दी गई थी कि लुधियाना या जालंधर से 22 जून को ट्रेन पकड़ना गलत हो सकता था। तथापि इसी बीच डीआरएम और उनके दास लोगों ने अमित के कान में यह बात भी फूंक दी कि कोरोना के दौर में ट्रेन से सफर करना सेफ नहीं रहेगा!

ऐसे में अमित को सड़क के रास्ते निकलना ही सही लगा, क्योंकि वह हर हाल में अपनी शादी की वर्षगांठ के दिन घर पहुंचकर अपनी पत्नी और बच्ची को सरप्राइज देना चाहते थे और यहीं एक बेचारा होनहार अधिकारी डीआरएम द्वारा रचित “स्पीड डेथ ट्रैप” में फंस गया।

पांच दिन की छुट्टी में सड़क और गाड़ी की स्पीड को ही यह तय करना था कि अमित अपने परिवार के साथ घर पर अधिकतम कितना समय बिता सकता थे। कम छुट्टी में अपनों के लिए अधिक समय निकालने की चाहत ने स्पीड के डेथ ट्रैप में अमित को फंसा दिया।

अगर छुट्टी अमित की जरूरत या मांग के हिसाब से और उनके घर की दूरी को भी ध्यान में रखकर दी गई होती, तो आज एक होनहार अधिकारी हमारे बीच होता और दो घर तथा कई जिंदगियां उजड़ने से बच गई होतीं।

यह रेल प्रशासन के हित में होगा कि रेलवे में ऊपर बैठे लोग इस “सिस्टम प्रायोजित हत्या” से सीख लेते हुए ऐसी गाइडलाइन बनाई की जाएं कि जिसमें अधिकारियों – कर्मचारियों द्वारा साल में अपनी एलएपी और सीएल को अपनी मर्जी के हिसाब से उपभोग किया जा सके। इसके साथ ही इस नियम को आवश्यक (मैनडेटरी) बनाया जाए कि कोई सक्षम अधिकारी सिर्फ अपरिहार्य स्थिति अथवा कारण पर ही इसे रिग्रेट कर सके, न कि आदतन। रिग्रेट भी एक या दो बार से ज्यादा कतई नहीं किया जाना चाहिए।

डीआरएम/फिरोजपुर, जो कि जाने-अनजाने ही सही, अमित कुमार जैसे एक होनहार और परिश्रमी अधिकारी की असामयिक मौत का कारण बने हैं, के पूरे कार्यकाल की गतिविधियों की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए और तदनुसार उनके विरुद्ध कार्रवाई तय की जाए, जिससे अन्य लोगों को एक उचित सबक मिले और सर्वसामान्य कर्मचारियों एवं अधिकारियों का विश्वास व्यवस्था में बहाल हो सके तथा उनके डीआरएम रहते अन्य लोगों के साथ ऐसे किसी हादसे को टाला जा सके।