“आपकी यात्रा सुरक्षित और सुखद हो” संदेश के साथ कानपुर सेंट्रल स्टेशन से हो रही यात्रियों की विदाई
रेलयात्री, रेलवे का ग्राहक है, ग्राहक को भगवान का दर्जा प्राप्त है, उसका यथोचित सम्मान करें -महात्मा गांधी
Welcome treat by DyCTM Kanpur to Passengers
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से नई दिल्ली को जाने वाली गाड़ी संख्या 02451 श्रमशक्ति विशेष सुपरफास्ट ट्रेन के यात्रियों को “आपकी यात्रा सुरक्षित एवं सुखद हो” का संदेश देते हुए गाड़ी के प्लेटफॉर्म को छोड़ते हुए प्रतिदिन इसी तरह गर्मजोशी के साथ वाणिज्य विभाग और रेल सुरक्षा बल के कर्मचारियों द्वारा यात्रियों को विदा किया जा रहा है।
कोविड-19 के मद्देनजर यात्रियों को भयमुक्त और सुरक्षित यात्रा का संदेश देने की इस अनोखी पहल का विचार हिमांशु शेखर उपाध्याय, उप मुख्य यातायात प्रबंधक, उ.म.रे, कानपुर का है, जिसे साकार करने के लिए वह स्वयं गाड़ी जाने समय स्टेशन पर मौजूद रहते हैं।
डिप्टी सीटीएम/कानपुर की इस अनोखी पहल की सराहना रेल मंत्रालय, मंडल रेल प्रबंधक, प्रयागराज और सबसे अहम यात्रियों द्वारा भी की गई है।
कोरोना महामारी के संकट काल में श्री उपाध्याय की भूमिका कानपुर क्षेत्र के रेलकर्मियों में अभिभावक की तरह रही है और लगभग सभी लोगों के स्वास्थ्य, राशन सामग्री की उपलब्धता इत्यादि को स्वयं के स्तर से पूर्ण करने का उनका प्रयास अभी भी लगातार जारी है। इसके अलावा स्थानीय सिविल प्रशासन से भी उनका समन्वय काफी बेहतर है, जिससे रेल प्रशासन और सिविल प्रशासन के बीच सहयोग बना हुआ है और काम करना आसान हो रहा है।
रेलयात्री, रेलवे का ग्राहक है, ग्राहक भगवान होता है, उसका यथोचित सम्मान किया जाए!
प्रबंधन को कुछ नया सृजन करते रहना चाहिए, मातहतों को नए-नए विचार देते रहना चाहिए। इससे उनका उत्साह और मनोबल दोनों बना रहता है। प्रबंधन का मान्य फंडा तो यही है कि “मातहतों के सीधे संपर्क में रहकर, उनकी कामकाज संबंधी समस्याओं को सरल कर, सुलझाकर, उनके दुख-सुख में शामिल होकर और उनके साथ ही स्थानीय सिविल प्रशासन से भी सार्थक समन्वय स्थापित करके जितना बेहतर आउटपुट हासिल किया जा सकता है, उतना डंडा चलाकर अथवा सिर्फ आदेश देकर कभी नहीं किया जा सकता।”
डिप्टी सीटीएम/कानपुर हिमांशु शेखर उपाध्याय न सिर्फ यही कर रहे हैं, बल्कि उनका विचार कहीं न कहीं गांधी जी के विचार से भी प्रेरित है, जो कि आज भी कई रेलवे स्टेशनों पर लगा देखा जा सकता है। परंतु भारतीय रेल में इसका उल्टा होते देखा जा रहा है। कहते हैं कि जिस चीज की अधिकता होती है, उसकी कद्र कम हो जाती है। भारतीय रेल में यात्रियों के साथ यही तो हो रहा है, क्योंकि रेलवे को वह इफरात में उपलब्ध हैं। रेलवे को निजी बस चालकों की तरह उन्हें ढ़ूंढ़ने, चौराहे पर आवाज लगाने नहीं जाना पड़ता। माल ढुलाई के मामले में इसी सोच ने रेलवे का भारी नुकसान किया।
दूसरी तरफ रेलवे में नरपतसिंह जैसे कुछ खुंदकी भी हैं, जो सिर्फ अपने अहं की संतुष्टि के लिए न सिर्फ मातहतों का उत्पीड़न करने में आत्मिक संतोष पाते हैं, बल्कि पद के घमंड में उन्हें अपनी हैसियत का भी विस्मरण हो जाता है। ऐसे बहुत नाम हमारे संज्ञान में हैं, पर फिलहाल यह एक ही पर्याप्त है। वैसे अनुभव में तो यही आया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर कमोबेश सभी लूटने की अपनी-अपनी जुगाड़ में रहते हैं। इसमें नीचे से ऊपर तक सभी शामिल हैं। यदि यह कहा जाए कि बाड़ ही खेत खा रही है, तो रेलवे के मामले में शायद यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। तथापि हिमांशु शेखर उपाध्याय जैसे कुछ लोग अभी भी उम्मीद बनाए हुए हैं, जिससे वास्तव में यह व्यवस्था चल पा रही है।