श्रमिकों की यात्रा को सुगम बनाने हेतु जेडआरयूसीसी मेंबर्स ने दिए सीआरबी और जीएम/प.रे. को सुझाव

जोनल रेलवे उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति, पश्चिम रेलवे के सदस्य योगेश मिश्रा और किंजन पटेल ने सीआरबी विनोद कुमार यादव और महाप्रबंधक/प.रे. आलोक कंसल को एक पत्र भेजकर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में श्रमिकों की यात्रा को सुगम बनाने हेतु कुछ जरूरी सुझाव देते हुए लिखा है कि पिछले दो-तीन दिनों से जो कई श्रमिक ट्रेनें चलाई जा रही हैं, जिनमें प्रवासी मजदूरों को भेजा जा रहा है, वह अपने गंतव्य पर सीधे रूट से न जाकर उन्हें बदले हुए मार्ग पर चलाया जा रहा है, जिससे श्रमिकों को अपने गंतव्यों तक पहुंचने में कई-कई दिनों का समय लग रहा है। इसकी अग्रिम जानकारी यात्रियों को अथवा संबंधित कर्मचारियों/विभागों को नहीं हो पा रही है।

इसके कारण यात्रियों को अत्यंत कष्टदायक यात्रा करनी पड़ रही है।जैसे कि वसई से गोरखपुर जाने वाली ट्रेन जिसे अधिकतम 28 घंटे में गोरखपुर पहुंचना था, वह उड़ीसा राउरकेला होते हुए 48 घंटे में पहुंची। इस प्रकार 40 से अधिक ट्रेनें, निर्धारित समय पर गंतव्य पर नहीं पहुच सकीं।

अब रास्ते में कहीं पर भोजन और पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई, यात्री लोग वैसे भी, यह मजदूर वर्ग काफी दुखी हैं, उनके पास धन का भी अभाव है। इस भीषण समर सीजन में भोजन-पानी का अकाल पड़ा हुआ है। इसके अलावा आईआरसीटीसी द्वारा पर्याप्त मात्रा में सभी श्रमिक यात्रियों को भोजन पैकेट भी मुहैया नहीं कराए जा रहे हैं।

निर्धारित रूट पर भोजन की व्यवस्था रेलवे द्वारा की गई है। इसके लिए प्रति श्रमिक स्पेशल उत्तर रेलवे के खाते से सभी जोनल पीसीसीएम को एक लाख रुपए तक खर्च करने का अधिकार दिया गया है। परंतु जब मार्ग बदल जाता है तो बदले हुए मार्ग पर उनके भोजन-पानी की व्यवस्था कहीं पर भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है ।

ऐसे में कहीं पर यदि ट्रेन रुकती है और कुछ भी खाने और पीने का सामान दिखाई दे जाता है, तो श्रमिक यात्री, जो भूख और प्यास से एकदम विह्वल होते हैं,
वह उस पर टूट पड़ते हैं। बाद में वही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है कि यात्रियों ने सामान को लूट लिया, इससे रेलवे की छवि बुरी तरह खराब हो रही है।

भूख के मारे वह मजदूर खुद परेशान हैं, जबकि उनके साथ उनका परिवार भी होता है। छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, जिन्हें यह कोरोना नामक महामारी से कोई मतलब नहीं है। उन्हें उस समय उनके भूख और प्यास की जरूरतों को पूर्ण करना उनके मां-बाप के लिए बहुत हृदयद्रावक होता है। इसलिए वह बदले हुए मार्ग पर जो ट्रेन चल रही है वहां पर कोई भी भोजन पानी की व्यवस्था हो नहीं पा रही है, जिसके कारण ऐसे दृश्य उत्पन्न हो रहे हैं।

मार्ग बदलने की सूचना ट्रेन जब जहां से प्रारंभ होती है,, वहां पर ही यह यह दे दी जाए कि यह ट्रेन इस मार्ग से होते हुए यहां पर जाएगी, तो मानसिक रूप से हर यात्री तैयार रहेगा कि यह ट्रेन इस मार्ग से जाएगी।

रास्ते में उन्हें भोजन पानी की संपूर्ण व्यवस्था निर्धारित स्टेशनों पर की जाए। मात्र मालगाड़ियों के लिए यह मार्ग बदल दिया जा रहा है। जबकि इस समय यात्री को पहुंचाना सबसे अहम बात हो गई है।

श्रमिक ट्रेन बिना रुके अपने अंतिम ठहराव तक जाना है, बीच मे मात्र भोजन पानी के लिए ही रोकना है तथा एक या दो पूर्व निर्धारित स्टेशन पर ही ठहराव करना है।

रेलवे 13000 से ज्यादा पैसेंजर एवं मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें रोज चलाती थी। तब यह भीड़भाड़ नहीं हो रहा था और अब 300 से अधिक ट्रेनें 1 दिन में चलने पर इतना ज्यादा ट्राफिक हो रहा है कि वह रूट को डाइवर्ट करने की जरूरत पड़ रही है, तो क्या गुड्स ट्रेनों को आधे घंटे रोककर या बदले हुए मार्ग पर चलाकर, यात्री ट्रेनों को यात्रियों को सीधे मार्ग पर श्रमिक ट्रेनों के द्वारा सरलता से नहीं पहुंचाया जा सकता है।

अतः अनुरोध है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को, जिनमें प्रवासी मजदूर अत्यंत दुखी और मजबूरी में यात्रा कर रहे हैं, उनकी सुविधा के लिए निर्धारित मार्ग से ही चलाएं और कम से कम समय में प्रवासी मजदूर अपने गंतव्य तक पहुंच जाएं, मार्ग में उन्हें भोजन और पानी की समुचित व्यवस्था की जाए, जिससे कि वह थोड़ा सा सुकून महसूस कर सकें।

अतः श्रमिक ट्रेनों को शॉर्ट रूट से चलाया जाए जिससे कि प्रवासी मजदूर अपने गांव शीघ्र और सरलता से पहुंच सकें।