सरकार और अदालतों को तमाम तरह के दोगलेपन पर साफ स्टैंड लेना होगा

यदि देश और सभी समुदायों में संतुलन कायम करना है, तो संतुलित आचार-व्यवहार करने की शर्त सभी समुदायों पर समान रूप से लागू करनी होगी!

पेट्रोल डाल-डालकर मोटरसाइकिलों-कारों और दूकानों को जलाया गया। गजब की तैयारी है। पेट्रोल, पत्थर, ईंटें, तेजाब सब तुरंत निकल आता है घरों से! एक ऐसी सेना जो हर वक्त साजो-सामान से सजी हमेशा हाई अलर्ट पर रहती है। इधर मैं यह बात लिख रहा हूं, उधर श्रीमती जी किचन में बड़बड़ा रही हैं- धार भी न रही इस चाकू पर। अब सब्जी कैसे काटूं? कितने दिन से कह रही हूं इस आदमी से कि एक नया चाकू खरीद लाओ या इसपे ही धार लगवा लाओ, पर सुनता ही नहीं, एक ढंग का चाकू न लाया जा रहा इस आदमी से!

क्या कहा, घर मैं एक ढंग का चाकू भी नहीं है? वैसे मैं सोच रहा था कि कोई पागल भीड़ मेरे घर पर आधी रात में हमला कर दे, तो अपने और अपने परिवार के बचाव के लिए मेरे पास क्या है? घर में चारों तरफ नजर दौड़ाई, तो मुझे बस एक वाइपर दिखाई दिया, वो भी टूटा सा, काफी पुराना! ये भी नया खरीदना पड़ेगा।

खरीदना तो मुझे एक नया मोबाइल भी है, काहे से कि अगले महीने श्रीमती जी का जन्मदिन आ रहा है। उनकी फरमाइश है कि उन्हें इस जन्मदिन पर सेमसंग गैलेक्सी एस-10+ 5G मोबाइल गिफ्ट किया जाए, वरना वह गुस्से में मुंह फुला लेंगी। उधर दोस्त जिद कर रहे हैं कि इस साल गर्मियों में किसी हिल स्टेशन का टूर बनाओ। वो भी प्लान करना है। इन सब पर तो बहुत खर्चा होगा, लेकिन सुरक्षा का क्या?

मैं अपने खयालों में डूबा सोच रहा हूं कि किसी उन्मादी भीड़ ने आधी रात मेरे घर पर हमला कर दिया तो? वे तो एक संगठित सेना जैसे हैं। उनका एक-एक सैनिक हर वक्त लाव-लश्कर से सजा हमेशा हाई एलर्ट पर रहता है। पर मेरा क्या? मेरे घर पर नारे-ए-तकबीर चिल्लाती हुई कोई भीड़ चढ़ आई तो क्या होगा?

अचानक सिहर कर एक झटके से मैं अपने खयालों से निकलता हूं और फिर से घर में नजर दौड़ाता हूं। मुझे फिर से वही पुराना वाइपर दिखाई पड़ता है। सोचता हूं कि इससे बेहतर तो हमारा गांव था। ज्यादा नहीं तो कम से कम तेल पिले-पिलाये दो-चार लंबे-लंबे लट्ठ तो रहते थे घर में। शहर में आकर क्या मिला है? सिर्फ ये वाइपर!

जिस संविधान की आजकल बहुत दुहाई दी जा रही है, शायद उन्होंने संविधान को गौर से नहीं पढ़ा। ये भी नहीं पढ़ा कि उसमें एक प्रावधान है ‘न्यायिक पुनरावलोकन’ का। फिर किसी ने बताया कि केंद्र या राज्य सरकार के बनाए किसी भी कानून को, यदि वह असंगत हुआ, मूल ढ़ांचे के विरुद्ध हुआ, या मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला हुआ, तो उसे सर्वोच्च न्यायालय रद्द कर सकता है।

सारे इकट्ठे होकर पहुंच गए कोर्ट में। सीएए के विरोध में याचिकाएं दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कह दिया पहले हिंसा बंद करो, फिर सुनवाई होगी।

दरअसल ये लोग अपनी लड़ाई कानूनन लड़ना ही नहीं चाहते, क्योंकि ये जानते हैं और इनकी न्यायिक टीम भी बहुत अच्छी तरह समझती कि इन्हें कानूनी लड़ाई लड़कर कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसीलिए इन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाया है।

कांग्रेस राज के बिगड़ैल और सिर चढ़ाए बच्चे, जिन्होंने आज तक शाहबानो से लेकर हर काम अपनी ताकत, हिंसा और दादागीरी से किया हो, उनको लगता है कि आज वे सीएए के मुद्दे पर भी सरकार को वैसे ही झुका लेंगे जैसे राजीव गांधी सरकार को झुका लिया था।

यह लोग एक तरफ अपने ‘हक की आवाज’ का नाटक करते हैं, तो दूसरी तरफ हिंसा का सहारा लेकर दिल्ली जला देते हैं। सरकार के खिलाफ किसी कानून को लेकर अगर लड़ाई है, तो उसका हल कानूनन तलाशा जाना चाहिए, लेकिन नहीं तलाशेंगे। जिनकी जुबानों ने जिहाद का खून चख रखा हो, वे आदमखोर कानून की लड़ाई में वक्त जाया नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें तो जिहाद करना है।

अगर दिक्कत कानून से है तो सर्वोच्च न्यायालय जाईए। सर्वोच्च न्यायालय की बात सुनिए। आपके सिर पर तो कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद जैसे दिग्गज वकीलों का कानूनी साया है, फिर डरने की क्या जरूरत है?

लेकिन न, आप कोर्ट नहीं जाएंगे। आप तो सर्वसामान्य बहुसंख्यकों के ऊपर हमले करेंगे। उन पर पत्थर फेंकेंगे, उन पर गोलियां चलाएंगे। सड़कें बंद करेंगे, आगजनी करेंगे, उनके पेट्रोल पंप फूंकेंगे, दूकानों, गाड़ियों को आग लगाकर आर्थिक रूप से उनकी कमर तोड़ने का प्रयास करेंगे। यह सब कुछ एक बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है, यदि ऐसा कहा जाए, तो शायद गलत नहीं होगा।

फिर जब मीडिया के सामने आएंगे तो कथित भाईचारे की बात करेंगे, तथाकथित गंगा-जमुनी तहजीब की कसमें खाएंगे। खुद के द्वारा फैलाई हिंसा और आगजनी के लिए दूसरों पर दोष मढ़ेंगे और अगर कहीं कोई पलटकर जवाब दे दे, या कोई तर्कसंगत बात कह दे, तो रोते फिरेंगे कि हाय मार दिया हम अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों ने! कागज भी नहीं दिखाएंगे, कोर्ट भी नहीं जाएंगे। इधर हिंसा भी करनी है और उधर अपने हक की एकतरफा बात भी करनी है। ऐसा कैसे चलेगा?

सरकार को, और अदालतों को भी, इस तमाम तरह के दोगलेपन पर साफ स्टैंड लेना पड़ेगा, ऐसा तो नहीं चलेगा कि उनके तथाकथित भाईजानों के भड़काऊ भाषणों का कोई संज्ञान न लिया जाए, और यदि किसी बहुसंख्यक नेता ने कायदे की बात कहकर कानून सम्मत व्यवस्था कायम करने को कहा तो उसे भड़काऊ भाषण मानकर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया जाए! यदि देश और सभी समुदायों में संतुलन कायम करना है, तो संतुलित आचार-व्यवहार करने की शर्त सभी समुदायों पर समान रूप से लागू करनी होगी!

*N.K@P सोशल मीडिया से साभार
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