चार-पांच सौ करोड़ की कमीशन की मलाई किसे मिली?

पार्टी फंड में नहीं गई, तो किसकी जेब में गई इतनी बड़ी धनराशि, यह जांच का विषय है!

रेल भवन के गलियारों में आजकल यह ‘कानाफूसी’ बड़े जोरों पर हो रही है कि पर्याप्त फंड के अभाव में अश्वनी लोहानी इलेक्ट्रिफिकेशन की जो फाइलें पेंडिंग छोड़ गए थे और जिनको सीआरबी बनने के तुरंत बाद विनोद कुमार यादव ने क्लीयर कर दिया था, उसके एवज में मिला करीब चार-पांच सौ करोड़ का कमीशन आखिर कहां गया?

रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार अश्वनी लोहानी के कार्यकाल में हजारों करोड़ की रेलवे इलेक्ट्रीफिकेशन की फाइलें धनाभाव के कारण पेंडिंग थीं। सूत्रों का कहना है कि ऐसी कुल लगभग 18 फाइलें श्री लोहानी पेंडिंग छोड़ गए थे। उनका यह भी कहना था कि इनमें से प्रत्येक फाइल करीब 5-6 सौ करोड़ के टेंडर वाली थी।

इसका मतलब यह है कि यह कुल मिलाकर लगभग 10 हजार करोड़ का मामला था। सूत्रों का कहना है कि यह तो सर्वविदित है ही कि प्रत्येक टेंडर में उसकी कुल लागत राशि के हिसाब से कमीशन की परसेंटेज तय रहती है और उसका भुगतान किए बिना टेंडर फाइल कभी क्लीयर नहीं होती है।

सूत्रों ने बताया कि विनोद कुमार यादव ने 1 जनवरी 2019 को सीआरबी बनने के बाद वे सारी फाइलें क्लीयर कर दी थीं।

सूत्रों से जब यह पूछा गया कि इतने बड़े फंड का इंतजाम तत्काल कहां से और कैसे हुआ, इस पर वह कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए, मगर इतना जरूर कहा कि फंड की अनुपलब्धता और प्रोजेक्ट की अनुपयोगिता को ध्यान में रखकर ही तब प्रधानमंत्री ने संपूर्ण भारतीय रेल के इलेक्ट्रिफिकेशन के इस प्रोजेक्ट को फिलहाल रद्द कर दिया था।

सूत्रों का कहना था कि ऐसे में इस पर चार-पांच सौ करोड़ की कमीशन की मलाई किसे मिली, ये तो पता नहीं, पर इतना पक्का है कि पार्टी फंड में इसका एक भी पैसा नहीं गया है!

‘फिर एक्सटेंशन का इनाम कैसे मिला?’ इस सवाल पर सूत्रों का कहना था कि इस बारे में तो निश्चित तौर पर वही बता सकता है, जिसने उक्त सभी फाइलें क्लीयर की हैं, मगर इस बारे में रेलवे बोर्ड सहित पूरी भारतीय रेल में ‘कानाफूसी’ हो रही है!

बहरहाल, इस विषय पर रेलवे बोर्ड में अधिकृत तौर पर कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है। जिसको बोलना चाहिए, वह तो बिल्कुल भी तैयार नहीं है।