पैसा लो, सुविधा दो !!
रेल बजट से मुंबई सबर्बन के यात्रियों की अपेक्षाएं
मुंबईकर हों या देश के अन्य रेलयात्री, उन्हें रेल बजट से अब क्या अपेक्षा हो सकती है, यह कहना अब काफी मुश्किल हो गया है, क्योंकि लगभग 115 साल पुरानी अलग रेल बजट की व्यवस्था खत्म कर दिए जाने से अब किसी को पता ही नहीं चलता कि रेल बजट में क्या आया, क्या नहीं!
जहां मुंबईकरों की बात है तो अलग रेल बजट का वास्तव में मुंबईकरों के लिए ही विशेष महत्व था, क्योंकि एक दिन में जितने यात्री पूरी भारतीय रेल में चलते हैं, उससे लगभग आधे (80 से 90 लाख) यात्री सिर्फ मुंबई की लोकल ट्रेनों में रोजाना सफर करते हैं।
मुंबईकरों की सबसे बड़ी अपेक्षा है कि लोकल ट्रेनों की भीड़ कम हो। इसके बाद उनकी दूसरी बड़ी अपेक्षा है कि लोकल ट्रेनें निर्बाध गति से चलती रहें, इसमें किसी प्रकार का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। मगर उनकी यह दोनों अपेक्षाएं आए दिन भंग होती हैं, भीड़ कम नहीं होती और रोज कहीं न कहीं कोई व्यवधान पैदा हो ही जाता है।
जिस दिन ऐसा नहीं होता, और मुंबईकर समय से अपने घर या दफ्तर पहुंच जाता है, उस दिन वह ईश्वर के साथ ही स्थानीय रेल प्रशासन को भी धन्यवाद देता है।
इसके अलावा मुंबईकरों की अपेक्षा है कि अब बंद डिब्बों वाली एसी लोकल ट्रेनें चलाई जाएं, इससे उनकी परेशानी थोड़ी कम होगी और सुरक्षा भी बढ़ेगी।
हालांकि रेल प्रशासन इस तरफ लगातार प्रयास कर रहा है, मगर उसका यह प्रयास बहुत धीमा है। हाल ही में रेलवे ने जो यात्री किराए बढ़ाए, उनसे मुंबई के उपनगरीय यात्रियों को अछूता रखा गया। जबकि अब यहां यात्री किराए बढ़ाने का वैसा कोई विरोध नहीं देखा गया जैसा कुछ वर्षों पहले तक दिखाई देता था।
इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है, जो कि यह मानकर किराया नहीं बढ़ाती कि इससे कहीं मुंबईकर नाराज न हो जाएं और उनका वोट बैंक कम हो जाए।
जबकि उनका ऐसा सोचना सही नहीं है, क्योंकि मुंबईकरों का भी अब यह मानना है कि सुरक्षित एवं भीड़भाड़ रहित सुविधा मुहैया कराई जाए, तो वह खर्च करने के लिए तैयार हो सकते हैं।
-Suresh Tripathi, Editor, www.railsamachar.com