तख्त बदल दो, ताज बदल दो! मान्यताप्राप्त रेल संगठनों का राज बदल दो!!

एक रेलकर्मी की सभी साथी रेलकर्मचारियों से अपील

साथियो,

वर्ष 2013 से हम सभी रेल कर्मचारियों को हड़ताल के नाम पर लगातर गुमराह किया जा रहा है। कई बार रेल हड़ताल के लिए गुप्त मतदान कराकर यह लोग ऐन वक्त पर हड़ताल करने से भाग गए। दरअसल इनकी हिम्मत नहीं है ऐसा करने की।

साथियो, आप शायाद जानते होंगे कि प्रस्तावित श्रम सुधार कानून में केवल श्रमिकों को ही यूनियन बनाने का अधिकार है। इसके अलावा वर्किंग कर्मचारी ही यूनियन का नेता रह सकता है। इस कानून के डर से यह नेता हड़ताल से भाग जाते हैं।

साथियो, यह लोग एक तरफ उद्योगपतियों के साथ मिलकर रेलवे का कथित ‘कायाकल्प’ करने के बहाने निजी कंपनियों के लिए रेलवे के दरवाजे खुलवाते हैं, तो दूसरी तरफ हमारे साथ हड़ताल पर जाने का ड्रामा करते हैं। इनके इन्हीं सब कारनामों को रेलकर्मी लगातार देख रहे हैं।

यह सही है कि बिना यूनियन के रेल कर्मचारी सुरक्षित नहीं है। कर्मचारियों का संगठन होना चाहिए, लेकिन जिस प्रकार से इन दोनों मान्यताप्राप्त रेल संगठनों के नेताओं की मजदूर विरोधी और ढ़ुलमुल नीतियों के चलते मजदूर आंदोलन का पराभव हुआ है, वह हमें इनको हटाने के लिए मजबूर कर रहा है।

साथियो, रेल कर्मचारी ऐसे ही मौकापरस्त नेताओं के कारण 22 लाख से घटकर 12 लाख पर आ गया है। पीपीपी, एफडीआई आने से करीब 80% से ज्यादा रेलवे का निजीकरण पहले ही हो चुका है। नई पेंशन योजना लागू कर दी गई, लेकिन हमारे नेता सोते रहे। छोटे से छोटा कर्मचारी बेहाल हो गया।

जहां रनिंग कर्मचारी आज सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, वहां अब रेलवे से गार्डों को खत्म करने की साजिश हो रही है। ट्रेकमेनों को प्रमोशन के कोई अवसर नहीं हैं। ऐसा ही हाल अन्य कर्मचारियों का भी है। केवल चैन से वही लोग हैं, जो या तो यूनियन के नेता हैं ,या उनके पिछलग्गू!

साथियो, आखिर हम कब तक अपनी आंखें बंद करके जिंदा मक्खी निगलते रहेंगे? क्या लाखों रेलकर्मियों में ऐसा कोई नहीं है, जो हमें नेतृत्व दे सके? हम इतने डरपोक क्यों हैं? आखिर हमें इन सेवानिवृत और अपने भरोसे चलने को भी तरसते इन नेताओं को ढ़ोते रहने की क्या मजबूरी है??

जो नेता यूनियन का सदस्य भी नहीं बन सकता, उसके नेतृत्व में हम क्या सुरक्षित रहेंगे? आखिर ये कब तक कायरों की तरह बैसाखियों का सहारा लेकर नेतागीरी करते रहेंगे? साथियो, अपनी आंखें खोलो और हकीकत को पहचानो, नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी! हम सभी रेलकर्मी हैं, हम सभी के परिवार हैं, परंतु रेलवे को बचाने की हमारी भी जिम्मेदारी है, हम सब कायर नहीं हैं!!

सोचिए- भारतीय रेल के कर्मचारीगण सोचिए इस पर!!!

-एक रेल कर्मचारी

#सोशलमीडिया से साभार