आरपीएफ को किसने दिया अनधिकृत वेंडर्स को रोजगार दिलाने का अधिकार?

आरपीएफ कानून का पालन करवाने वाली फोर्स है, या अनधिकृत वेंडर्स का पालन-पोषण करने और रोजगार दिलाने वाली एजेंसी!

गाजियाबाद आरपीएफ पोस्ट पर आरपीएफ ने आयोजित किया अनधिकृत वेंडर्स के लिए ‘जॉब मेला’

सीनियर डीएससी, दिल्ली मंडल, उत्तर रेलवे की अगुवाई में सोमवार, 6 जनवरी को गाजियाबाद आरपीएफ पोस्ट पर अनधिकृत वेंडर्स को रोजगार दिलाने के लिए आरपीएफ द्वारा ‘जॉब मेला’ का आयोजन किया गया। आरपीएफ गाजियाबाद द्वारा जारी सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार इस मेले में करीब 160 अनधिकृत वेंडर्स को प्रतिमाह 10,000 रुपये और कमीशन के साथ आईआरसीटीसी के मातहत आने वाली निजी कैटरिंग फर्मों- अंबुज कैटर्स, दून कैटरर्स, दीपक कैटर्स, एक्सप्रेस फूड सर्विसेज, सिंह कैटरर्स, कृष्णा इंटरप्राइजेज और साईराम कैटर्स में नौकरी पर लगवाया गया।

ये है रेलवे में शुरू हुआ ‘गैरकानूनी राज’ का एक नमूना, जिसको कुछ नमूने लोग इसके निहितार्थ और इससे होने वाले दूरगामी परिणाम को सोचे-समझे बिना वाहवाही करेंगे और जिसकी अंतिम परिणति रेलमंत्री के ‘वेल डन’ 👍 ट्वीट से होगी।

क्या कोई पूछने वाला है कि रेलवे के किस नियम के तहत यह ‘अवैध वेंडर्स का रोजगार मेला’ लगाया गया? कार्मिक विभाग का जो काम है, उसे करने का आदेश आरपीएफ को कब से मिल गया? इसके अलावा वाणिज्य विभाग और रेलवे बोर्ड के सर्कुलर का तो कोई मतलब ही नहीं रह गया!

अवैध को जो गारंटी रोजगार योजना मोदी जी भी नहीं दे पाए, वह आरपीएफ ने कर दिया। किरण बेदी और आईपीएस ऑफिसर्स भी जो महान सुधार कार्य नहीं कर पाए वह आरपीएफ ने कर दिया।

अभी तक जो काम चोरी-छिपे होता था, आरपीएफ ने उसे आर्गनाइज सर्विस बनने के बाद खुलेआम डंके की चोट पर करना शुरू कर दिया।

अब रेलवे में दो तरह से लोगों की एंट्री होगी, (1) वैध तरीके की कार्मिक विभाग द्वारा (अगर अस्तित्व बचा तो) और (2) अवैध लोगों की आरपीएफ रिक्रूटमेंट सेल द्वारा। आरपीएफ के ये लोग सुनिश्चित करेंगे कि निजीकरण की तरफ बढ़ रही रेलवे में अधिकांश काम ठेकेदार ही करेंगे और ठेकेदार किसकी बहाली करेगा, उसे आरपीएफ अधिकारी अपने डंडे और ब्लैकमेलिंग के जोर पर डिक्टेट करेगा।

सनद रहे कि रेलवे के नियम-निर्देश अनधिकृत वेंडर्स को लेकर बहुत स्पष्ट हैं, जिसमें यह भी प्रावधान है कि समय समय पर कमर्शियल डिपार्टमेंट अकेले या आरपीएफ के साथ मुहिम चलाकर अवैध वेंडर्स को पकड़ेगा, लेकिन जब भी कमर्शियल डिपार्टमेंट के कर्मचारी अवैध वेंडर को पकड़कर आरपीएफ को जूडिशियल कार्यवाही के लिए सौंपता है, आरपीएफ वाले मना कर देते हैं और उल्टे अवैध वेंडर्स को प्रमोट करने के लिए वैध लाईसेंसी वेंडर/ठेकेदारों को परेशान करते हैं तथा रेल कर्मचारियों के विरुद्ध अवैध वेंडर्स से ही शिकायत करवाकर उनके विरुद्ध मुकदमा करना शुरू कर देते हैं।

अगर भारतीय रेल में अवैध वेंडर्स के बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने और चलने का इतिहास देखा जाए, तो आरपीएफ को जब से अवैध वेंडर्स को पकड़ने का अधिकार मिला, तब से भारतीय रेल में अवैध वेंडर्स का वर्चस्व हो गया। आरपीएफ अधिकारियों की बड़े पैमाने पर अवैध कमाई का एक सबसे बड़ा स्रोत अवैध वेंडर्स ही हैं। वस्तुत: ये खुद अवैध वेंडर पैदा करते हैं और उन्हें ट्रेनों एवं प्लेटफार्मों पर चलाते हैं। यह एक सच्चाई है।

भारतीय रेल में खानपान की गुणवत्ता की गिरावट का भी मुख्य कारण यही रहा है। रेलवे के वैध वेंडर्स के लिए जब अवैध वेंडर्स के चलते कारोबार करना मुश्किल होने लगा, तो फिर वे गुणवत्ता पर समझौता कर इसकी भरपाई करने लगे। रेलवे बोर्ड की नीतियां भी एक तरह से वैध वेंडर्स के लिए काफी अनुत्साहित करने वाली हैं, जिसका फायदा आरपीएफ ने अपना ‘अवैध वेंडर साम्राज्य’ बढ़ाकर उठाया और अब इस दुस्साहस पर पहुंच गए हैं कि रोजगार मेला लगाकर एक समानांतर बहाली व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।

भारतीय रेल जैसी सरकारी संस्था में किसी भी अवैध को समायोजित करने का संभवतः यह पहला उदाहरण है।

भारतीय रेल में गाजियाबाद जैसे और बहुत से ऐसे सेक्शंस हैं, जहां पर अधिकांश अवैध वेंडर्स वे ही लोग हैं, जिनके पास शायद “वैध भारतीय नागरिकता” का सघन जांच करने पर प्रमाण पत्र भी नहीं मिलेगा। यह तो सर्वथा जग-जाहिर है कि अधिकांश अवैध वेंडर अपराधिक प्रवृत्ति एवं अपराधिक पृष्ठभूमि के होते हैं।

ऐसे लोगों को ठेकेदारों पर जोर देकर उनके ऊपर लगभग जबरन थोपकर उनके पास रोजगार दिलाकर यात्रियों और ठेकेदार की भी सुरक्षा को खतरे में डाला जा रहा है। इस तरह खानपान ठेकेदारों को ब्लैकमेल होने के लिए भी तैयार रहने को कहा जा रहा है।

क्या इस तरह से बहाल कराए गए अवैध वेंडर्स के किसी भी अपराधिक और असामाजिक कृत्य की जिम्मेदारी कोई आरपीएफ का अधिकारी लेगा? इससे अवैध वेंडिंग की समाप्ति की गारंटी क्या कोई आरपीएफ अधिकारी लेने को तैयार होगा?

सबको पता है कि यही अनधिकृत वेंडर्स कुछ आरपीएफ इंस्पेक्टरों और अधिकारियों के घरों पर काम करने से लेकर उनकी कमाई का सबसे बड़ा अवैध स्रोत हैं, तो फिर ये लोग ऐसी कोई गारंटी लेने को तैयार क्यों होंगे!

माजरा तो तब समझ में आएगा, जब एक तरफ अवैध वेंडर्स भी बढ़ते चले जाएंगे और दूसरी तरफ अवैध वेंडर के नाम से बहाल होने वालों की लिस्ट भी बढ़ती जाएगी।

क्या इस रोजगार मेला के लिए रेलवे बोर्ड से कोई दिशा निर्देश जारी किया गया था? अगर नहीं, तो जिस काम के लिए पीसीपीओ तक अधिकृत नहीं है, उसे आरपीएफ इंस्पेक्टर अथवा सीनियर डीएससी कैसे कर रहा है? यह जांच का विषय है और यह भी कि इतने भव्य और वृहद आयोजन, जिसमें कम से कम लाख से उपर ही खर्च हुआ होगा, वह किसके पावर में सेंक्शन हुआ अथवा इसके लिये इतना पैसा कहां से आया? इसकी भी जांच होनी चाहिए, तभी असल कहानी पता चलेगी।

कायदे से इतने लोग अगर अवैध वेंडर हैं, तो यह संबंधित आरपीएफ अधिकारियों की इनएफिसियंसी (अयोग्यता) का सबसे बड़ा और नग्न उदाहरण है। इसके अलावा, इसकी जांच होनी चाहिए कि जितने भी लोग फोटुओं में दिख रहे हैं, उन पर आरपीएफ ने कितनी बार सख्त धाराओं में कार्यवाही की है?

इनके पांच साल का इन्वेस्टिगेशन ही इस चीज को एक्सपोज कर देगा कि इनमें से कितनों पर, कितनी बार, किस तरह की कार्यवाही की गई है? कितनों को कितनी बार सिर्फ मामूली हजार दो हजार का अर्थ दंड लगाकर छोड़ा गया है या जेल भी कुछ माह या अधिकतम समय के लिए भेजे गए हैं।

जो लोग कई बार जेल जाने के बाद भी यदि अवैध वेंडिंग का काम नहीं छोड़ते हैं, तो आरपीएफ द्वारा स्थानीय पुलिस या जीआरपी से समन्वय करके उन्हें हिस्ट्रीशीटर डिक्लेयर क्यों नहीं करवाया गया? या फिर अन्य कोई सख्त निरोधात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की गई?

दूसरी बात यह कि अगर ये अनधिकृत वेंडिंग के आदतन अपराधी हैं, तो आरपीएफ को तो इनका फोटो सभी स्टेशनों और ट्रेनों में चस्पा करवाना चाहिए था, न कि इनके लिए ‘रोजगार मेला’ लगाकर खुलेआम व्यवस्था का मजाक उड़ाना चाहिए था।

मगर यहां हो यह रहा है कि जब किसी को यह पता होता है कि रेलवे में लगभग सब जाहिल हैं, तभी वह ऐसा दुस्साहस करता है, जिससे उसका स्वार्थ भी सिद्ध हो जाता है और सस्ती लोकप्रियता भी उसे तुरंत मिल जाती है। यही इस कथित रोजगार मेले के जरिए करने की कोशिश की गई है।

आप कल्पना करें कि दंगा कर दूकान लूटने वालों को वहां की पुलिस जेल भेजने की जगह और कानून की सख्त धाराओं में कड़ी कार्यवाही करने के बजाय उन्हें दुकान आवंटन करना शुरू कर दे, तो फिर क्या होगा? और जब यही उद्दात्त नीति अपनानी है, तो फिर पुलिस, आरपीएफ या वर्दी वालों की आवश्यकता ही क्या रह जाती है? इस कार्य को करने के लिए तो नेता या साधु ही काफी हैं।

देखें, खुद आरपीएफ की सोशल मीडिया से प्राप्त पोस्ट:

Sir, On 06.01.2020 RPF/GHAZIABAD Inspector Shri PKGA NAIDU organised a JOB MELA for Ghaziabad Railway station area unauthorized venders for authorized employment in seven (Doon caterers, Ambuj Caters, Express food services, Deepak caterers, Singh Caterers, Krishna enterprises & Sairam Caters) IRCTC Rly. catering services under supervision of Dr. A. N. JHA Sr.Divisinal Security Commissioner/ RPF, Delhi Division, Northern Railway and ASC/Ghaziabad Shri Yogender Singh. In this Mela 160 Unauthorized venders were joined in above firms, who will get above 10,000/- salari per month and Commission, and in future they will be promoted as supervisor, manager etc. This is the first time in INDIA in Indian Railways to organised such program for unauthorized venders. Also RPF GHAZIABAD going to provide a SKILL DEVELOPMENT TRAINING through PM Koshal yogana scheme.. RPF take a step towards Unauthorized vender free Rly.stn, GHAZIABAD.

कोई भी ईमानदार और रेलवे के हित में काम करने वाला आरपीएफ अधिकारी जब सख्ती करना चाहेगा, तो सख्त धारा/धाराओं को लगाकर रेलवे मजिस्ट्रेट से जो महत्तम दंड होगा, वह सुनिश्चित करवाएगा, जिसके लिए आरपीएफ को मैनपावर से लेकर हर तरह की सुविधा दी गई है।

चलिए, मान लेते हैं कि पहली बार पकड़े जाने पर अर्थ दंड देकर छुड़वा दिया गया, लेकिन दूसरी बार तो अवैध वैंडिंग को बंद करवाने के लिए सही मंशा होने पर उन्हें जेल भेजना बनता है। तीसरी बार तो 3-4 माह और चौथी बार पूरे एक साल (रेलवे ऐक्ट की धारा 144 के तहत अधिकतम जेल की सजा) का दंड मिलना तो बनता ही है।

https://wr.indianrailways.gov.in/print_section.jsp?lang=0&id=0,6,629,638

और तब भी यदि कोई नहीं सुधरता है, तो रेल हित सर्वोपरि रखने वाला आरपीएफ अधिकारी धारा 144 के अलावा धारा 137, 138 और 141 भी लगाकर इनके खिलाफ कम्पाउंडिंग मैक्जिमम पनिशमेंट का केस मजबूती से तैयार करेगा, न कि इनके लिए ‘जॉब मेला’ लगाएगा। कोई भी जांच एजेंसी यदि इसी आधार पर जांच कर ले, तो इनकी तथाकथित दयानतदारी की सारी असलियत सामने आ जाएगी।

जब यूपीएससी से आए आरपीएफ अधिकारी भी यदि कबायली मानसिकता से काम करते हैं, तो यही होता है कि जिस पर रोना चाहिए, उस पर उत्सव मनाते हैं और उस पर रेल के ये कुंठित और पिद्दी से लोग ऐसे उछलते हैं जैसे कि इन्होंने कोई नोबेल पुरस्कार पाने योग्य काम कर किया है। ध्यान रहे, ऐसा तभी होता है, जब ‘अंधेर नगरी, चौपट राजा’ वाली व्यवस्था काम कर रही होती है। यही दुर्भाग्य है भारतीय रेल का!

वर्तमान केंद्र सरकार की भी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि जनमानस में अपनी ‘चौपट राजा’ वाली छवि न बनने दे। किसी का भी मूल्यांकन और किसी भी कार्य का आकलन बौने और कुंठित लोगों के कहने पर न करे, वरन अपने स्व-विवेक का प्रयोग कर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भविष्य को देखते हुए ही करे।

आरपीएफ ने ऐसा करके स्वयं परिभाषित सिस्टम को वैधता देने की कोशिश की है, न कि भारत सरकार के द्वारा निर्देशित सिस्टम को। आरपीएफ का यह कृत्य घोर असंवैधानिक है, जो पूरी तरह से भारत सरकार के स्थापित और परिभाषित नीति-निर्देशों के निहितार्थ की अवहेलना करता है। यदि इसको वैधानिक मानकर सरकारी/गैर-सरकारी संस्थाएं काम करने लग जाएंगी, तो पूरी व्यवस्था में चौतरफा अराजकता आ जाएगी।

सतही तौर पर देखने से यह एक बड़ा भारी इंसानियत वाला काम और डिफरेंट टाइप का लगने वाला मामला लगता है। परंतु इसकी तह में जाने पर ही पता चलता है कि ये वास्तव में कितनी बड़ी कबीलाई मंशा और मानसिकता वाला मामला है।

इसमें जानने योग्य एक रोचक तथ्य यह भी है कि रेलवे बोर्ड की तरफ से आरपीएफ को इस कथित ‘जॉब मेला’ के आयोजन की कोई अनुमति नहीं दी गई थी। तो क्या आईआरसीटीसी की तरफ सीएमडी या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने अपने मातहत निजी कांट्रेक्टर्स को इसकी अनुमति दी थी?

आईआरसीटीसी के सूत्रों के अनुसार आईआरसीटीसी में जबसे जीजीएम/सिक्योरिटी की नई बनी पोस्ट पर जो साहब आए हैं, तभी से वह पूरे नार्थ जोन पर अपनी धौंस जमाने की कोशिश कर रहे हैं और आईआरसीटीसी के सभी कांट्रेक्टर्स को इतने कम समय में वे यह मैसेज देने में सफल रहे हैं कि आईआरसीटीसी रूपी पानी का बड़ा मगरमच्छ सीएमडी नहीं, बल्कि वे खुद हैं और पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता।

कई कांट्रेक्टर्स ने नाम गुप्त रखने की दुहाई पर बताया कि “वे कई बार आईआरसीटीसी के कर्मचारियों और अधिकारियों से भी अपना दुखड़ा रो चुके हैं कि जीजीएम सिक्योरिटी साहब तो बोलते हैं कि तुम लोगों के साथ मुरव्वत करना सीएमडी की मजबूरी होगी, क्योंकि उसे आईआरसीटीसी चलाना है, और जबाव देना है, लेकिन यह इन लोगों से यानि कि कांट्रेक्टर्स से मुरव्वत करना उनकी मजबूरी नहीं है, जो उनकी बात नहीं मानेगा, वह भुगतेगा!”

जबकि आईआरसीटीसी के लोगों का कहना है कि यहां आरपीएफ की कोई जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि जिसके चलते रेलवे में कैटरिंग बर्बाद हुई, वह बीमारी अब यहां भी आ गई है। वैसे भी आईआरसीटीसी में पहले ही क्या कम बीमारी थी, लेकिन अब तो इनसे भगवान ही बचाए।

कहा जा रहा है कि उपरोक्त कुछ कैटरिंग कांट्रेक्टर्स जीजीएम/सिक्योरिटी के दबाब/प्रभाव के चलते मजबूरी में ही उक्त तथाकथित ‘जॉब मेले’ में गए थे। अब इस पर कार्यवाही कौन करेगा? यह तो रेलमंत्री ही जानें।

रेल कर्मचारियों और रेलवे के अन्य वेंडर्स में भी इसकी काफी चर्चा है और आक्रोश भी। इंजीनियरिंग विभाग के एक कर्मचारी ने कहा, अब तो ये हमारे ठेकेदारों को भी ऐसे ही परेशान करेंगे। कुछ खुराफाती आरपीएफ इंस्पेक्टर तो लेबर इंस्पेक्टर की तरह लेबर लॉ को लेकर ब्लैकमेल करने लगे हैं। हालांकि कई कर्मचारी तो इसके लिए अपने मंडल अधिकारियों को ही दोष दे रहे थे कि जिस चीज का उनको ऐक्शन लेना चाहिए, उस पर वे बेखबर बने हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि 160 से ज्यादा अवैध वेंडर जिस स्टाइल में वहां उपस्थित थे, जो कि फोटुओं में भी साफ दिख रहा है, वो एक संगठित गिरोह द्वारा तय की गई पटकथा की तरह ही है जिसके सभी पात्रों के चेहरे पर अभाव, भय और दीनता का तो सर्वथा अभाव है ही, परंतु उनमें भरपूर आश्वस्तता के साथ ही अटूट याराना का भी यलगार और दीप्ति स्पष्ट है।

यह है आरपीएफ का सीएए!

यह भी कहा जा रहा है कि इस कथित ‘जॉब मेला’ के आयोजन के लिए आरपीएफ ने अवैध वेंडरों से ही अलग से उगाही की है, जिसमें अवैध वेंडर कम हैं, लेकिन उनके द्वारा उनके जानने वाले और नौकरी के नाम पर कांट्रेक्टर्स की पैंट्रीकारों में काम/नौकरी दिलाने के नाम से लाए गए वो लड़के हैं, जिनसे नौकरी दिलाने के नाम बैकएंड पर काम करने वालों ने बड़ी वसूली की है। इसका भंडाफोड़ फिलहाल तो नहीं, लेकिन आने वाले समय में यही लड़के खुद करेंगें।

इन अवैध वेंडर्स के एक साल के रिकॉर्ड में सजा पाए लोगों के नाम के साथ मिलान करने पर इसकी सत्यता उजागर हो जाएगी।

एक और मजेदार, किंतु गंभीर एवं दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि रेलवे के लाईसेंसी वेंडर और अन्य कांट्रेक्टर्स, जिनके पास जो हेल्पर/वेंडर/लेबर होते हैं, उनका पुलिस वेरीफिकेशन अनिवार्य होता है, जिससे कि रेल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और किसी भी अपराधिक रिकॉर्ड का आदमी या व्यक्ति इस छेत्र में गलती से भी न आ जाए, यह पूरी तरह से सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। यह रेलवे के नियमों, नीतियों और प्रत्येक सरकारी कामकाज तक में स्पष्ट होता है।

आरपीएफ स्वयं पुलिस वेरीफिकेशन प्रमाणपत्र के लिए रेलवे सहित इसके लाईसेंसी वेंडर्स/कांट्रेक्टर्स तक को तंग और ब्लैकमेल करती रही है। अब दीगर प्रश्न यह है कि उक्त स्थिति में जिन अवैध वेंडर्स को, जो कोर्ट से भी सजायाफ्ता हैं, अर्थात जिनका अपराधिक रिकॉर्ड है, उन्हें कैसे और किस नियम के तहत ढ़ोल पीटकर उन्हीं कांट्रेक्टर्स को उनको नौकरी देने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जो रेलवे की ही पालिसी के तहत पुलिस वेरीफिकेशन कराकर क्लीन प्रमाणपत्र वाले बिना अपराधिक रिकॉर्ड के व्यक्ति को ही रखने को बाध्य हैँ?

Who has given #authority to #RPF to provide #Job to #unauthorized #vendors?

Has any #permission taken by SrDSCDelhiDivn from #RlyBd for this #illegal_work?

#SrDSCDelhiDivn say, he doesn’t need any permission form anyone, is that means he is a self authority?

Pls inquire the total case bcoz RPF isn’t a Job providing agency and how they can force the caterers to recruit the recorded & habitual offenders, which is against the Rly Act.

DGP/UP सुलखान सिंह का पत्र गौर से पढ़ें, जिसमें पैरा 1, 2 और नीचे के पैराग्राफ में यात्री सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस वेरीफिकेशन की बात स्पष्ट रूप से कही गई है। इसी पत्र के आधार पर IG/CSC/RPF/NR संजय किशोर ने भी नीचे लगा पत्र निकाला था। अब इसी पत्र की मूल आत्मा को सीनियर डीएससी, दिल्ली मंडल ए. एन. झा ने मार दिया है।

हमें किसी की भी इजाजत लेने की जरूरत नहीं है – डॉ ए.एन. झा, सीनियर डीएससी/दिल्ली मंडल, उत्तर रेलवे

इस मामले में जब सीनियर डीएससी/दिल्ली मंडल, उत्तर रेलवे डॉ ए. एन. झा से उनके मोबाइल पर कॉल करके दरयाफ्त किया गया कि गाजियाबाद में आरपीएफ द्वारा अनधिकृत वेंडर्स के लिए ये जो जॉब मेला लगाया गया, यह किस आधार पर लगाया गया था, इस पर उन्होंने कहा कि इसका कोई प्रमाणिक सोल्यूशन हम लोग ढ़ूंढ़ रहे हैं, उसी में से एक यह भी है।

उन्होंने यह भी कहा कि होता यह है कि अनधिकृत वेंडिंग पर तो लगातार कार्रवाई होती रहती है, गिरफ्तार होते रहते हैं, फाइन देते रहते हैं, दुबारा आ जाते हैं, फिर गिरफ्तार होते हैं, ऐसे जो आदतन वेंडर हैं, उनको एक स्थाई जगह दी जाए।

इस पर उन्हें टोकते हुए जब उनसे फिर यह पूछा गया कि अनधिकृत वेंडर्स को जॉब अथवा रोजगार दिलाने का अधिकार या अथॉरिटी आरपीएफ को किसने दिया? इसके अलावा इस बारे में रेलवे के नियम बहुत स्पष्ट हैं कि जिनके विरुद्ध कोई अपराध दर्ज होता है, उन्हें नियुक्त नहीं किया जाता, पर यहां आप खुद इसकी अनुशंसा कर रहे हैं, और क्या इसके लिए रेलवे बोर्ड ने कोई अनुमति दी गई थी?

इसके जवाब में डॉ झा ने कहा कि अच्छा आप उस ऐंगल से पूछ रहे हैं, आगे उन्होंने कहा कि ये छोटे-छोटे अपराध हैं, इनको हम लॉ-ब्रेकर बोलते हैं, इनको हम क्रिमिनल नहीं कहते, इनको हम ऑफेंडर बोलते हैं। इस पर जब यह कहा गया कि यहां रेलवे ऐक्ट की बात करें, तब उन्होंने ज्ञान देते हुए कहा कि इसके लिए आपको एक बार पूरा इन्फर्मेटिव क्रिमिनल सिस्टम पढ़ना पड़ेगा।

उनका यह भी कहना था कि इसमें भारत में वर्तमान में लागू किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। इस पर जब उनसे पुनः पूछा गया कि इसके लिए रेलवे बोर्ड से पूर्व अनुमति ली गई थी या नहीं, इस पर उन्होंने नमस्कार कहते हुए बात को खत्म करने के इरादे से कहा कि हमें इसके लिए किसी की भी इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।

इस पूरी बातचीत में सीनियर डीएससी की आवाज और लहजे में दम्भ, दुःसाहस, अज्ञानता या अल्पज्ञता और चौधराहट तथा घबराहट ये सभी चीजें परिलक्षित हो रही हैैं। 😡 जाहिर है कि ये कबिलाई मानसिकता वाले लोगों के लक्षण हैं। बाकी रेल प्रशासन और सरकार तय करें कि इनका क्या करना है। हां एक बात और, अगर यही काम किसी सीनियर डीपीओ या सीनियर डीसीएम अथवा अन्य किसी ब्रांच अफसर ने किया होता, तो अब तक विजिलेंस से लेकर सीबीआई तक सभी एजेंसियां छापा मार चुकी होतीं और मूढ़ सीआरबी भी अब तक उनका ट्रांसफर अन्यत्र कर चुके होते।