Railgate-4: ‘मोदी-सेंस’ पर भारी पड़ा ‘सुधीर-सेंस’ का परिणाम!

आदरणीय मोदीजी, लगातार तीसरी जीत और लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की हार्दिक बधाई!

लेकिन मोदी जी, इतने विकास कार्यों के बाद आई ये थोड़ी कमतर जीत, हम सबको कुछ परेशान करने वाली भी है।

“ये चुनाव रुझान बता रहे हैं कि @BJP4India को लगे इस झटके में सबसे बड़ा योगदान रेल का है! 12.50 लाख #रेलकर्मी, 14 लाख रेल #पेंशनर, और रेल में रोज चलने वाले 3 करोड़ #रेलयात्री, ये सब ही असंतुष्ट रहे रेलमंत्रियों और उनकी सलाहकार मंडली की मनमानियों से!”

उपरोक्त ट्विट के तुरंत बाद रेल भवन के अधिकारी और एमआर सेल सक्रिय हो गए, और ट्विट डिलीट करने के लिए हमें फोन आने लगे। इसी से समझा जा सकता है कि दुखती रग पर उंगली पड़ गई।

इसमें लगभग 70,000 आरपीएफ कर्मियों और उनके परिजनों ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया, क्योंकि उनकी मान्यता प्राप्त एसोसिएशन को अकारण निष्क्रिय करके रखा गया है। उनका भीषण उत्पीड़न हो रहा है, और कोई सुनने वाला नहीं है। एमआर सेल को यह सब बताया गया, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल जैसे कई वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों ने भी रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को फोन किया, पर उन्होंने उनकी बात भी नहीं सुनी। परिणाम सामने है।

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में असम रेलवे पैसेंजर्स एसोसिएशन के महासचिव दीपांकर शर्मा कहते हैं – बुजुर्गों की रियारत छीन ली गई। देश के करोड़ों वरिष्ठ नागरिकों की रेल किराये में छूट को समाप्त कर दिया गया, इसका भी परिणाम भाजपा का वोट कम करने का कारण बना।

लोकसभा चुनाव आते-आते भी कई हजार स्टापेज पुनर्बहाल नहीं किए गए। हजारों स्टापेज जो कोरोना काल में समाप्त कर दिए गए थे, रिस्टोर नहीं किए गए। रेलमंत्री ने किसी भी सांसद/मंत्री की एक नहीं सुनी, जबकि इससे रेल के अलावा कोई विकल्प न होने से कम दूरी की यात्रा करने वाले लाखों गरीब लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कोरोना काल को आपदा में अवसर बनाकर जनहित की कई ट्रेनों को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। कोरोना काल से पहले की सैकड़ों ट्रेनों को आजतक रिस्टोर नहीं किया गया। देशभर के विभिन्न स्टेशनों पर रूकने वाली ट्रेनों के लगभग दस हजार ठहराव को निरस्त कर दिया गया।

जनरल/स्लीपर कोच कम करके जबरदस्ती एसी कोच थोपे गए। लगभग पाँच सालों तक कोराना सरचार्ज जबरदस्ती वसूला गया। आम एवं दैनिक यात्रियों के लिए DRM/GM कार्यालय के दरवाजे बंद हो गए। दीपांकर शर्मा कहते हैं कि आखिर ये कौन लोग थे जो इतने जनविरोधी निर्णय लेते रहे और रेलमंत्री स्वीकृत करते गए? हालाँकि करोड़ों भारतीयों की जीवनरेखा भारतीय रेल को कारपोरेट रेल बनाने में पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल का भी अहम रोल रहा है। शर्मा कहते हैं ये सब आर्टिकल में अवश्य लिखियेगा, जिससे आगे मोदी जी को भगवान सुमति दें!

निष्कर्ष यह है कि आईआरएमएस जैसी अपारदर्शी नीति-नियम विहीन रिक्रुटमेंट पॉलिसी के चलते असंतुष्ट रेल अधिकारियों के साथ ही लाखों रेल कर्मचारियों, पेंशनरों, वरिष्ठ नागरिकों और करोड़ों यात्री/जनता ने भाजपा को वोट देने में कोताही कर दी।

मोदी जी, इस देश की 140 करोड़ जनता तथा रेल में प्रतिदिन यात्रा करने वाले लगभग तीन करोड़ यात्रियों पर आपका लगातार आभार रहा है, क्योंकि आपने जिस स्तर पर रेल में दस सालों में निवेश किया, वह अभूतपूर्व है। लेकिन क्यों ये जनता को सीधे छूने वाला, सीधे प्रभावित करने वाला निवेश वोट में नहीं बदला? रोज तीन करोड़ लोग पूरे भारतीय रेल नेटवर्क पर चलते हैं। रोज इन तीन करोड़ यात्रियों के सामने रेल मंत्रालय की कलई परत-दर-परत खुलती है।

ज्यादा खर्च कर कम पाने की स्ट्रेटेजी को हमने #SudheerSense का नाम दिया था। मोदीजी यहाँ आपसे निश्चित रूप से चूक हुई है। राज्य सभा के रास्ते से आए अश्विनी वैष्णव के नेतृत्व में भ्रष्ट रेलकर्मियों और अधिकारियों को मिलने वाला प्रोटेक्शन रिकॉर्ड बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँच गया। “कार्यवाही से बचने के लिए उनके एमआर सेल में मिलकर एडजस्टमेंट कर आइये और बच जाइए”, यह सीधा सिस्टम बन गया। ऐसा ही कुछ सिस्टम इससे पहले पीयूष गोयल के समय भी रहा।

लेकिन आइये हम आपको बताते हैं कि कैसे #ModiSense को छोड़ने या साइड लाइन करने से आपको रेल में किया गया निवेश कोई लाभ नहीं दिलवा पाया। उल्टा खराब और अक्षम (#incompetent) नेतृत्व के चलते युवाओं का रोष झेलना पड़ा।

आखिर क्यों #ModiSense को छोड़कर अश्विनी वैष्णव को #SudheerSense अपनाना मोदीजी आपको ही भारी पड़ा है?

सरकारी योजनाओं का लाभार्थी वर्ग ट्रेन में जनरल या स्लीपर कोच, यानि नॉन-एसी डिब्बों में चलता है, इस गरीब वर्ग को रेलवे स्टेशनों पर लगे ग्रेनाइट/मार्बल से कोई मतलब नहीं होता। रेल व्यवस्था यातयात के लिए है, यह बात मंत्री जी के कथित आधुनिकीकरण (#modernisation) प्रोग्राम में गौण हो गई। क्रिकेट खेलने आए खिलाड़ी यदि अपनी छवि चमकाने और विज्ञापनों के इंडोर्समेंट में लग जाएँगे तो खेलेंगे कैसे? ऐसा ही कुछ भारतीय रेल के साथ भी हुआ।

आपके इतने भारी-भरकम निवेश के बाद भी रेलवे की लाइन कैपेसिटी नहीं बढ़ पाई, ये माल ढुलाई में पिछड़ना और यात्री ट्रेनों में कमी बताती है। प्रति ट्रेन एसी डिब्बे बढ़ा दिए गए। लाभार्थी वर्ग, जिसके वोट के प्रति आप आश्वस्त थे, उसी वर्ग को जानवरों की तरह रेल में ट्रीट करना चालू कर दिया गया।

यह ऐसा सच है जो वन्दे भारत के हाई डेफिनिशन वीडियो देखकर, इस सच को भोगने वालों के सामने रेल की या यूँ कहें कि आपकी सरकार के रेल मंत्रालय की कलई रोज तीन करोड़ यात्रियों के सामने खोल रहा है।

मंत्री जी द्वारा दिए गए इंटरव्यू में रेल के जानकार बताते हैं कि उन्होंने गलत बयानी की, कि “ट्रेनों में नॉन-एसी सीटें कम नहीं हुई हैं।” यह वास्तव में सरासर झूठ था। आप स्वयं ट्विटर अर्थात् एक्स पर अथवा किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस सच को आज भी देख सकते हैं।

मोदीजी जितना पैसा आपने रेल में लगाया उतने के अंश मात्र में आपकी नल से जल और हर घर सोलर, हर घर बिजली योजना सफल हुई, और पीएम आवास योजना से करोड़ों गरीबों के घर बन गए।

हमारी मुहिम के बाद रेल मंत्रालय को अमृत भारत ट्रेन लानी पड़ी, लेकिन देर हो चुकी थी, अमृत भारत की कैपेसिटी ज्यादा, मात्र 60 करोड़ के दाम पर, ट्रैक पर वही परफॉर्मेंस देती है, बल्कि ₹130/165 करोड़ की वन्दे भारत से बेहतर देती है। लेकिन यही तो है सुधीर सेंस, अधिक दाम में कम लेने की जुगत, जो रेल मंत्रालय का तीसरा फ्लोर करने में व्यस्त है।

वहीं, चितरंजन और बनारस की लोको फैक्ट्री 12000 हॉर्सपावर के इंजन 20 करोड़ में बना रही हैं और मंत्री जी की मधेपुरा फैक्ट्री वही इंजन (WAG-12) 35 करोड़ से अधिक में ले रही है, जो 30% कम माल खींचने की क्षमता रखता है। ज्यादा दाम में कम लेने का यह सुधीर सेंस का दूसरा ज्वलंत उदाहरण है।

इस प्रकार के निर्णय बताते हैं कि कैसे रेल भवन के अधिकारी पूरी तरह से #incompetent हैं। इन निर्णयों से रेल के सक्षम और अनुभवी अधिकारी इतने हतोत्साहित हो गए कि कहने लगे हैं कि “कब तक काले को सफेद बताया जाएगा!”

वहीं, इसी अक्षमता (#incompetency) के चलते जब #NTPC केटेगरी के लिए हो रहे #RRB एग्जाम में देश के युवा भड़के, तब रेल मंत्रालय में कोई #DGHR नहीं था। पहले RRB के माध्यम से एग्जाम साल भर होते थे, ये मैनेज करना आसान था, लेकिन पूरे देश में एक ही एग्जाम कई साल में एक बार करवाना व्यवस्था के बूते से बाहर हुआ और पढ़ाई करने वाले युवा और उनके परिवार इससे बहुत प्रभावित हुए। क्या ये रेल भवन के जुगाड़ू खान मार्केट गैंग (#KMG) के सदस्य अधिकारियों को समझ में नहीं आया?

मोदीजी, आपने #KMG सरगना को रेल व्यवस्था, रेल भवन से निकालकर बहुत बड़ा काम किया, लेकिन रेल मंत्रालय में जमे उसके चेलों को आपके मंत्रियों ने बहुत संरक्षण दिया। यह सच है! और यह भी सच है कि आपके द्वारा सलाहकार महोदय को निकाला जाना आपके मंत्री जी को रास नहीं आया, क्योंकि वह आज भी यह मानते हैं कि उनके सलाहकार के साथ अन्याय हुआ, और यही कारण है कि वह उसे आज भी अप्रत्यक्ष रूप से अपने साथ बनाए हुए हैं।

रेल के शीर्ष नेतृत्व को रिएंगेजमेंट पर रखना, छह महीने की सर्विस पर छह महीने और एक महीने की सर्विस पर ग्यारह महीने का रिएंगेजमेंट देना, सिस्टम को मजाक बनाकर रख दिया गया। यह परंपरा ही सिरे से गलत थी, और इसीलिए गलत, अनुपयोगी साबित हो रही है। लालू-मुलायम परिवार के सदस्य-विनोद कुमार यादव जैसे नालायक-निकम्मे पैराशूटर अधिकारी को सीआरबी बनाकर रेल भवन को जातिगत राजनीति का अड्डा बना दिया गया। रेल भवन, समाजवादी पार्टी के दौर का उत्तर प्रदेश बन गया। रिएंगेजमेंट पीरियड के बाद अन्य सरकारी संस्थाओं में उनका पुनर्वास करने से भी बहुत गलत मैसेज गया। जानकार बताते हैं कि यह सब एक डील के तहत हुआ।

#Modisense बनाम #Sudheersense के उदाहरणों में एक्सल काउंटर की परचेज का स्कैम भी है। कैसे खरीदने के तरीके अर्थात् पॉलिसी को बदलकर उसी आइटम को कई गुना अधिक कीमत पर खरीदा गया। दूसरा बड़ा उदाहरण टर्न-की पॉलिसी बदलने का स्कैम है। और ऐसे कई स्कैम कथित रूप से रेल के तीनों मंत्रियों के संरक्षण में हुए, जिनका खुलासा हम समय-समय पर करेंगे!

वहीं, डिवीजन स्तर को भी पूरा चरमरा दिया गया। डीआरएम अब रेल परिचालन और सेफ्टी, सिक्योरिटी, पंक्चुअलिटी तथा पैसेंजर एमिनिटी को छोड़कर कंस्ट्रक्शन को मॉनिटर करने लगे हैं। क्यों ये गति-शक्ति के काम कंस्ट्रक्शन विभाग को नहीं दिए गए? क्या गति-शक्ति के कार्य कंस्ट्रक्शन से भिन्न हैं, क्यों #DRM के फोकस को दैनंदिन ट्रेन ऑपरेशन और सेफ्टी से अलग किया गया?

मोदीजी, आज रेल का शीर्ष नेतृत्व पूरा टूट गया है। आपको समर्थन इंजीनियरिंग अफसरों से बहुत मिला, लेकिन रेल ने इंजीनियरों की भर्ती बंद करके इसकी गर्भनाल जड़ से काट दी। ये तब है जब सारा निवेश एसेट्स पर हुआ है, फिर क्यों ये बात नहीं उठेगी कि रेल बेचने की तैयारी है?

Conflict of interest की बात भी हमने बताई कि कैसे रेलमंत्री के सलाहकार ने एक विदेशी कंपनी को सिंगल टेंडर पर इमोशनल इंटेलिजेंस के प्रोप्राइटरी टेस्ट का टेंडर दिया, रेल अधिकारियों का मनोवैज्ञानिक डाटा नियम विरुद्ध विदेशी सर्वरों में रख दिया गया। #RTI में पब्लिक के पैसे से किए गए टेंडर की जानकारी देने से मना कर दिया गया। इसी कंपनी के भारतीय प्रतिनिधि के गाइडेंस में मंत्री जी के महाजुगाड़ू सलाहकार महोदय अपनी पीएचडी कर रहे हैं!

वहीं नवीन कुमार, जिन्होंने विद्युत कर्षण में कभी पाँच मिनट भी काम नहीं किया, उन्हें उत्तर प्रदेश मेट्रो का डायरेक्टर बना दिया गया! विजिलेंस की भ्रष्ट त्रिमूर्ति – आर. के. झा, आर. के. राय, अशोक कुमार – जिसने रेल के कर्मठ अधिकारियों के खिलाफ झूठे केस बनाए, और न केवल भरपूर उगाही की, बल्कि रेलवे विजिलेंस में फाइलें उठाकर अवैध उगाही की परंपरा भी डाली। उन्हें पूरा समर्थन, प्रोत्साहन और प्रोटेक्शन दिया गया, और बाद में मंत्री जी ने उन्हें अपने ही मातहत टेलीकॉम डिपार्टमेंट में प्रतिनियुक्ति देकर अभय प्रदान कर दिया! जितेंद्र सिंह, मनीष तिवारी जैसे अधिकारी अब पुनः वापस दिल्ली आने की तैयारी में हैं। क्या आपने पता किया कि कैसे आपकी सरकार के विरुद्ध मुखर ये अधिकारी डीआरएम बन गए, जॉइंट सेक्रेटरी बन गए, रिटायरमेंट के बाद उन्हें नौकरियाँ भी मिलीं।

क्यों #AMRS, जो बिना ड्यू प्रोसेस के विदेश गए और वहाँ रिसोर्टों का आनंद लिया, पूरी हॉस्पिटैलिटी-गाड़ी, होटल इत्यादि अपने अधीनस्थों से ली, भारती-गणेश जैसे अधिकारी, जिन्होंने रेल के अधिकारिक पदों पर बैठकर रेल से व्यवसाय किया, आज भी इसी रेल सिस्टम में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। ये सब जानकारी हमने मंत्री जी के एमआर सेल और स्वयं उन्हें भी सामने बैठकर दी, लेकिन हमारी जानकारी का उपयोग, संबंधितों को बुला-बुलाकर “एडजस्टमेंट” में किया गया।

रेल भवन की अक्षमता (#incompetence) का ये हाल था कि जब महिला पहलवान आंदोलन कर रही थीं, तब हमने ये लिखा और बताया कि आप रेल के अधिकारियों को भेजिए, क्योंकि ये पहलवान रेलकर्मी हैं, और अंत में वही काम आया, तथापि एमआर सेल से संबंधित अधिकारी की डील हो गई। इसीलिए कार्यवाही कहीं विलुप्त हो गई। हालाँकि तब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हो चुकी थी। क्यों स्पोर्ट्स की डायरेक्टोरेट, उत्तर रेलवे के पीसीपीओ और महाप्रबंधक ने उचित समय पर कार्यवाही नहीं की? यह आपको अवश्य पूछना चाहिए!

रेल में #रोटेशन लाना बहुत ही आवश्यक है, नहीं तो आप पैसा अंधे कुएँ में डालेंगे। जिसके चलते अब तक का किया गया लाखों करोड़ का निवेश अंधे कुएँ में ही गया है। हालाँकि रोटेशन की बात से आपके रेलमंत्री जी बहुत-बहुत सहमत थे, और यह भी माना था कि इससे करप्शन नब्बे प्रतिशत तक घट सकता है, तथापि इस पर किया कुछ नहीं!

मोदीजी, आपके संसदीय क्षेत्र बनारस में आपकी व्यक्तिगत जीत का मार्जिन कम होने का एक बड़ा कारण बनारस लोकोमोटिव वर्क्स में वर्षों से जमे सपाई/बसपाई अधिकारी और सुपरवाइजर रहे हैं, और वहाँ के दोनों मंडलों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी इसका एक बड़ा कारण है, जिसके बारे में हम पहले भी लिख चुके हैं, और शीघ्र ही फिर लिखेंगे।

अंत में..

चुनावी दौर में हमने अपने बहुत आर्टिकल नहीं प्रकाशित किए, क्योंकि हम अपने काम का राजनैतिक इस्तेमाल नहीं चाहते थे। लेकिन आपसे अब अनुरोध है कि हमारे फीडबैक पर कार्यवाही करें।
 
मोदीजी, रेल में #Modisense की आवश्यकता है। इसे #Sudheersense से बचाइए! क्रमशः..