रेलवे का निजीकरण करके किया जा रहा है यात्रियों की संरक्षा और सुरक्षा के साथ बहुत बड़ा समझौता
कैडर मर्जर और निजीकरण का एजेंडा लागू करने के लिए सोशल मीडिया में चलाई जा रहीं हैं भ्रामक खबरें
रेल प्रशासन की चालबाजी में फंसे रेलवे के किंकर्तव्यविमूढ़ मान्यताप्राप्त संगठन!
#Railway is #essentially a #safety based #transportation #organization. Any #neglect or #superfluous #approach to it, will #lead to #disaster on #safety front
मोदी सरकार अब खुलकर रेलवे का निजीकरण करने पर उतरू हो गई है। निजी ऑपरेटरों को 100 रेलमार्गों पर 150 निजी ट्रेनों के परिचालन की अनुमति दे दी गई है। सरकारी न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार निवेश को लेकर ‘निजी भागीदारी: यात्री रेलगाड़ियां’ शीर्षक से एक डिस्कशन पेपर लाया गया है। इसमें कहा गया है कि इन 100 मार्गों पर निजी ट्रेन ऑपरेटर्स को 150 गाड़ियों के परिचालन की अनुमति देने से 22,500 करोड़ रुपये का निवेश आएगा। हालांकि आंकड़ा यह संदिग्ध है।
विशेष बात यह है कि इन प्राइवेट ऑपरेटर्स को अपनी गाड़ियों में बाजार के अनुसार किराया वसूल करने की छूट होगी। वे इन गाड़ियों में अपनी सुविधा के हिसाब से विभिन्न श्रेणियों की बोगियां लगाने के साथ-साथ रूट पर उनके ठहराव वाले स्टेशनों का भी चयन कर सकेंगे।
अब तक तेजस में प्राइवेट आपरेटर्स को किराया तय करने के अलावा ट्रेन के भीतर अपना टिकट चेकिंग स्टाफ तथा कैटरिंग एवं हाउसकीपिंग स्टाफ रखने की छूट दी गई है।
रेलवे अपने इंफ्रास्ट्रक्चर एवं रनिंग स्टाफ का उपयोग करने के लिए प्राइवेट आपरेटर्स से हॉलेज शुल्क वसूल रहा है, लेकिन अब जो 150 ट्रेनों को संचालित करने की योजना बनाई गई है, इसमे रेलवे बोर्ड निजी आपरेटर्स के साथ सीधे कंसेशन एग्रीमेंट करने जा रहा है।
अब प्राइवेट आपरेटर्स को रोलिंग स्टॉक के चयन में भी छूट मिलने जा रही है। प्राइवेट ऑपरेटर्स चाहें तो विदेशों से ट्रेनसेट्स का आयात कर संचालन कर सकते हैं। उस पर भारतीय रेल के कारखानों में बने ट्रेनसेट्स लेने और उनका उपयोग करने की शर्त लागू नहीं होगी।
यानी इसका मतलब यह है कि देश के बड़े-बड़े और सालों से स्थापित रेलवे के कारखानों पर भी जल्दी ही ताला लगने की नौबत आने वाली है।
सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में पहली प्राइवेट ट्रेन ‘तेजस एक्सप्रेस’ के नाम से दिल्ली और लखनऊ के बीच चलाई जा रही है। इस ‘तेजस एक्सप्रेस’ के मुनाफे के बारे में झूठी और मनगढ़ंत खबरें पालतू मीडिया के माध्यम से चलाई गईं।
कहा गया कि ‘तेजस’ को एक महीने में ही 70 लाख रुपये का मुनाफा हुआ, लेकिन असलियत कुछ दिनों बाद ही संसद में उठाए गए सवाल से ही बाहर आ गई, जिसमें बताया गया कि तेजस को 447.04 लाख रुपये की कुल आमदनी हुई और 439.31 लाख रुपये का खर्च हुआ। इसका अर्थ यह है कि इसे मात्र 7.73 लाख रुपये का मुनाफा एक महीने में हुआ था।
यही नहीं, इस दरम्यान ‘तेजस’ का ऑक्यूपेंसी लेवल भी मात्र 62 प्रतिशत रहा, जबकि इसी रूट पर चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस का ऑक्यूपेंसी लेवल 90 से 100% के बीच रहा है। ऐसे में रेलवे द्वारा चलाई जा रही शताब्दी एक्सप्रेस रेलवे के लिए फायदेमंद और यात्रियों के लिए किफायती रही है, या तेजस एक्सप्रेस! इस बारे में रेल प्रशासन चुप्पी साधे हुए है।
तेजस को शुरू करने से पहले रेलमंत्री कह रहे थे कि दिल्ली-लखनऊ के बीच तेजस एक्सप्रेस को प्रायोगिक आधार पर चलाया गया है, यदि यह सच है तब तेजस एक्सप्रेस का प्रयोग तो असफल हो गया है।
ऐसे में फिर कैसे 150 निजी ट्रेनों को चलाने की अनुमति दी जा रही हैं? इस सवाल का कोई जवाब रेल मंत्रालय अथवा रेलमंत्री देने को तैयार नहीं हैं। वह सिर्फ सोशल मीडिया में रेलवे की फालतू बातों का प्रचार करने में लगे हुए हैं।
उधर रेल अधिकारी भी अपने भविष्य को लेकर सशंकित हो रहे हैं। जबकि रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठन रेल प्रशासन के चालबाजी भरे आश्वासनों पर सरकार की ही तरह या तो रेलकर्मियों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं अथवा उन्हें इस बात का डर है कि कहीं उनकी ही जमीन न खिसक जाए। यही कारण है कि वे भी केवल धरना-प्रदर्शन और सेमिनार और एनसी-जेसीएम बैठक का बायकॉट करने के अलावा चक्का जाम जैसा कोई कड़ा कदम उठाने से हिचक रहे हैं। इसके चलते रेलकर्मियों का भी मोह इन मान्यताप्राप्त रेल संगठनों से बुरी तरह भंग हो चुका है।
#Railway is #essentially a #safety based #transportation #organization. Any #neglect or #superfluous #approach to it, will #lead to #disaster on #safety front.
A #logic #against #merger of #services.
#निजीकरण #रेलवे