घंटियां नहीं, रेल भवन में दशकों से बैठे गुरु-घंटाल हैं रेल सेफ्टी के दुश्मन!

रेल सिस्टम के असली दुश्मन हैं #VVIP – #KMG और #AIDS, जब तक इनको उखाड़ा नहीं जाएगा, रोटेशन नहीं किया जाएगा, तब तक सेफ्टी और सिस्टम इंप्रूवमेंट की बात करना बेमानी है!

यह वह नहीं जो घंटी बजाने के लिए मंत्री जी के टारगेट पर हैं, रेल के असली #VVIP वह गुरु घंटाल हैं, जिन्होंने पूरी रेल व्यवस्था का घंटा बजा रखा है, और आज से नहीं, दशकों से!

यह वह हैं जिन्हें रेल के दबे-कुचले कर्मियों ने #AIDS (ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस) और #KMG (खान मार्केट गैंग) की संज्ञा दी है!

माननीय मंत्री जी, रेल का मनोबल घंटियां उखाड़ने से नहीं बढ़ेगा, रेल का मनोबल बढ़ेगा विश्वसनीय लीडरशिप से!

हाल ही में हुए कुछ डिरेलमेंट्स के कारण रसातल में गई रेल सेफ्टी के चलते पूर्व सीआरबी साहब के बाद नए वालों ने भी सेफ्टी ड्राइव चलवा दी है। पूरा सिस्टम अब नित-नए फॉर्मेट में सेफ्टी ड्राइव करवा रहा है और रिपोर्ट कर रहा है। एक ही कांटा स्टोर्स से लेकर पर्सनल, एकाउंट्स, टेक्निकल विभागों और ट्रैफिक के अधिकारियों द्वारा इंस्पेक्ट हो रहा है, और रेल में समरसता का सूचक बन गया है। मजे की बात यह कि एक ही गेट, एक ही स्टेशन, एक ही कांटा केवल इंस्पेक्ट होता है, उसकी अनेक इंस्पेक्शन रिपोर्ट बनती हैं, और असल काम करने वाला रोज नए-नए अधिकारियों को इंस्पेक्ट करवाता है, वही इंस्पेक्शन नोट बनवाता है, और वही इन सबकी इंस्पेक्शन रिपोर्ट का कंप्लायंस भी बनाता है।

बस, इस प्रक्रिया में एक ही चीज छूट जाती है, वह है, काम! खैर, काम की चिंता तो किसी को नहीं है, कागज दुरुस्त होने चाहिए और इसमें मजाल कोई कमी निकाल दे!

#Railwhispers ने कहा था: जहां चाशनी होगी, वहां ‘खान मार्केटिए’ निश्चित ही सक्रिय होंगे! यहां हमने, 1 दिसंबर, 2022 को आदरणीय अटल बिहारी बाजपेई जी की कविता को उद्धृत किया था:

“मंत्री जी और सीआरबी साहब की सारी इंद्रियों पर #KMG का ही कब्जा है – क्या दिखाया जा रहा है, क्या पढ़ाया जा रहा है, क्या सुनाया जा रहा है, कैसे #KMG सब कुछ कंट्रोल किए हुए है, ये हमारे चार्ट से सुस्पष्ट हो गया। रेल के सीनियर मैनेजमेंट का मनोबल बल्लारशाह के एफओबी की तरह धराशाई हो गया है। आदरणीय अटल जी, जिनके साथ आपने काम किया था मंत्री जी, ने लिखा था- ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता!’ आपकी #KGM टीम ने तो आपको, सबको और पूरे सिस्टम को ही न केवल छोटा कर दिया, बल्कि तोड़-मरोड़कर रख दिया है।”

रेल की सबसे बड़ी ‘अनसेफ प्रैक्टिस’ अधिकारियों का मनोबल पूरी तरह से टूटना है। आप अगर #AIDS या #KMG से जुड़े हैं, तो आपको किसी चीज की चिंता नहीं करनी। काम करेंगे बेवकूफ किस्म के अधिकारी, होशियार तो ‘सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट’ में आकंठ डूबे हैं। ये इस सरकार में ही नहीं, पहले भी मंत्री ही निबटे हैं, लेकिन अधिकारी शीर्षस्थ स्तर पर पहुंचे।

हमें दिया गया उलाहना

हमें कहा गया कि आप कहां की बात करते हैं? कोई #KMG या #AIDS नहीं है यहां, हमने ग्राफिक के जरिये बताया कि कैसे मंत्री और सीआरबी बदलते गए और कीमत चुकाते रहे, लेकिन, ये परजीवी रेल भवन में ही डटे रहे!

#KMG और #AIDS के इस चार्ट का गहराई से अध्ययन किया जाए!

फिर ये बोला गया कि #AIDS जैसी कोई बात नहीं है यहां, तो हमें बताना पड़ा: #KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!

हमने यह भी बताया कि कैसे इसी सरकार के दो रेलमंत्री और हाल ही के दो सीआरबी के जाने के बाद उनके दिए आदेश न केवल निरस्त हुए, बल्कि उन्हें पलटकर #AIDS का वर्चस्व और गहरा गया।

फिर हमें केएमजी, मंत्री, सीआरबी, महाप्रबंधकों की तरफ से नेता, अधिकारी, कांट्रेक्टरों ने अप्रोच किया। हमें बताया गया कि हम बेकार ही कुछ लोगों के कहने से कुछ विशेष लोगों के पीछे पड़े हैं! जबकि यह सच नहीं है, हम बिना किसी पूर्वाग्रह, बिना किसी व्यक्तिगत ईर्ष्या-द्वेष के, केवल और केवल सिस्टम की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, और रेल के जनमानस का मंतव्य प्रकट कर रहे हैं।

अब सुनिए, #AIDS का कड़वा सच-

20 अगस्त 1995, आज का L-16 और L-17 तब #JAG में हुआ करता था, देश के इतिहास की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में सुबह 3 बजे होती है, देखें- Firozabad Rail Disaster कैटल रनओवर से खड़ी कालिंदी एक्सप्रेस के पीछे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस टकरा जाती है, 358-400 लोग मारे जाते हैं!

अब हम आपको उस समय प्रकाशित एक प्रतिष्ठित मैगजीन ‘इंडिया टुडे’ के गहरे विश्लेषण को यहां उद्धृत कर रहे हैं: पढ़ें- India may witness more railway tragedies as only a fraction goes towards safety measures! September 15, 1995.

Victims of Negligence:

“Our system is foolproof, not idiot-proof,” says K. K. Gupta, Indian Railways’ executive director (safety), as he sums up the lessons of the recent collision of the Purushottam Express with the Kalindi Express at Firozabad. “A single mistake cannot cause an accident. Unless a person makes a series of errors or two or more people collaborate to do something wrong, it would be impossible”.

बावजूद इसके #Khatauli हुआ!

“Self-serving though it may sound, Mr Gupta could be right. Only the group that now stands accused is not the minions who held charge of the station that fateful night but the bureaucrats who comprise the Railway Board and their master, Railway Minister C.K.Jaffer Sharief.”

हम इस बात को बार-बार कहते रहे हैं कि सेफ्टी और बढ़ते भ्रष्टाचार की जवाबदेही रेल भवन के उच्चतम स्तर पर जाती है!

हाल में ही एक महाप्रबंधक ने #Railwhispers को कहा कि किसी #ASM की गलती का जवाब #DRM क्यों देगा? #DRM उसके लिए कैसे जिम्मेदार है? कृपया ‘इंडिया टुडे’ की उपरोक्त खबर को पढ़ें, इसे हमने नहीं लिखा था। कार्य-संस्कृति को बनाना और बिगाड़ना सीनियर मैनेजमेंट और लीडरशिप का काम है। इस तरह पल्ला झाड़ना उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस के लक्षण हैं।

यह भी पढ़िए:

“So pervasive have such considerations become that it has virtually crippled the senior management and bred cynicism and demoralisation in the ranks”, says a senior railway official: “Favouritism, collusion and arbitrariness characterise senior appointments.”

Twelve of the Railways’ 19 General Managers are only officiating for their former bosses. And, in at least two cases – South Central Railway and the Wheel & Axle Plant near Bangalore – the incumbents are too junior to hold these posts.

– Graft and favouritism are taking a toll on the morale of the senior management.

– Poor supervision and disregard for rules are jeopardising operational safety.

“The Railways don’t want disruption”, says Anand. “We would rather proceed gradually. Our strength lies in the loyalty and commitment of the workforce to the organisation”.

With 14,000 trains being run each day, it is becoming increasingly obvious from the safety record that the entire system is gradually being stretched to the limit. Crucial investments are being foregone and serious deviations from Standard Operating Procedures countenanced for extremely short-term gains. Under such circumstances, it is quite likely that we will witness many more errors of judgement of the sort that made a tragedy like Firozabad possible.

यह भी पढ़ें- September 15, 1995, India’s worst train accident reveals Railways’ disregard and neglect of safety norms! यह भी हमने नहीं लिखा था!

इसी अंक में प्रकाशित इस लेख के कोट्स भी देखें:

One driver did not signal, another did not heed a signal, the switchman was callous and the instruments were faulty.

Even as the gruesome task of cremating the dead in mass pyres was underway, the Railway Ministry began the task of inquiring into the cause of the accident. Based on the information supplied by officials, Prime Minister P.V. Narasimha Rao told Parliament that human error was the most likely cause.

What Rao didn’t mention was that last fortnight’s Firozabad tragedy was an accident waiting to happen. And that the rot that had set in the world’s largest railway service extended from those who manned the controlling cabins of Firozabad station right up to the boardroom of Rail Bhavan in Delhi.

That the accident was symptomatic of the deeper malaise afflicting the Railways was evident as results of the initial investigations became known.

#Khatauli दुर्घटना – जिसमें 23 यात्री मारे गए थे, और डेढ़ सौ से अधिक घायल हुए थे – के मूल में बिना ब्लॉक लिए ट्रैक काटकर मेंटेनेंस चालू था। ट्रैक प्रोटेक्ट नहीं था। नेशनल मीडिया कवरेज देखें: खतौली ट्रेन हादसा: ये लापरवाही नहीं हत्या है!

2017 का #Khatauli, 1995 के #फिरोजाबाद के कालिंदी-पुरुषोत्तम की दुर्घटना से बहुत समान था। 1995 में जो ऑपरेटिंग स्टाफ की गलत कार्य प्रणाली से हुआ, वह 2017 में इंजीनियरिंग स्टाफ द्वारा की गई ‘कैजुअल वर्क एथिक’ थी। इसकी जिम्मेदारी सीनियर मैनेजमेंट और लीडरशिप की ही है, इसे नकारा नहीं जा सकता!

प्रधानमंत्री #मोदीजी ने बहुत से निर्णय लेकर यह संदेश दिया कि सेफ्टी से ऊपर कुछ नहीं, और ऐसी कार्य संस्कृति – जहां रेल सेफ एंड सिक्योर न हो – वह बदलनी होगी। लेकिन अगर आप 1995 की कवरेज देखें, उस समय के ब्रांच ऑफिसर (बीओ-जेएजी अधिकारी) उसे ऐसे कैसे भूल सकते हैं? फिरोजाबाद दुर्घटना स्टार्टर-एडवांस स्टार्टर के बीच की दूरी एक ट्रेन लेंथ से कम करने के निर्णय की नींव मानी गई। हर ट्रेनिंग में, हर डिस्कशन में यह बातें की जाती हैं। यह आवश्यक इसीलिए भी है, क्योंकि एक ही गलती को दोहराना नितांत मूर्खता है।

टूटा मनोबल

इन रिपोर्ट में कहा गया:

“So pervasive have such considerations become that it has virtually crippled the senior management and bred cynicism and demoralisation in the ranks. Says a senior railways official: “Favouritism, collusion and arbitrariness characterise senior appointments.”

Twelve of the Railways’ 19 general managers are only officiating for their former bosses. And in at least two cases – South Central and the Wheel & Axle plant near Bangalore – the incumbents are too junior to hold these posts.

As the Prakash Tandon Committee, set up in 1993 to develop a corporate strategy for the Railways, observed: “Tenures are too short, especially at the senior and decision-making levels, to make nearly impossible any serious planning and implementation of change and innovation.. Succession is not transparently planned and announced well in advance, vacancies lie unfulfilled for months”.

In his four-year term, Sharief has outlasted six Railway Board chairpersons. “In any case, what powers does the CEO have?” asks a former board member. “Whether it is tariffs, wage – scales, postings or tenders, all these are the prerogative of the Minister”.

The result, experts say, is that the work culture in the Railways has been seriously compromised.

ध्यान दें, यह 1995 की रिपोर्ट है, और इसमें भी रेल के वरिष्ठ स्तर से सेवानिवृत्त हुए अधिकारियों को कोट किया गया है, यह आज के रेल भवन से कैसे भिन्न है? अर्थात तब से लेकर आज लगभग 30 सालों में स्थिति जस की तस ही है, तब बदला क्या है! केवल मंत्री! केवल सरकार! सैकड़ों हत्याएं, सैकड़ों अपराध करके भी अफसरशाही मजे कर रही है, लोग/यात्री मर रहे हैं, ट्रैकमैन, सिग्नलमैन, कीमैन, चाबीमैन, गेटमैन, खलासी, पीडब्ल्यूआई, सीएलआई इत्यादि मर रहे हैं, अफसरशाही मजे में है, उसको टाइमबाउंड प्रमोशन मिल रहे हैं, और इस तरह उत्तरदायित्वविहीन रेल की अफसरशाही 20-25-30 साल एक ही जगह एक ही शहर में बैठ मंत्री, सरकार और जनता को मुंह चिढ़ा रही है!

#KMG के मुखिया और उनके दो सिपहसालार

इसका जवाब #KMG और #AIDS में है! अपनी गलतियों का जवाब मंत्री और प्रधानमंत्री से दिलवा देना इनकी फितरत रही है, देखें: Based on the information supplied by officials, Prime Minister P.V.Narasimha Rao told Parliament that, “human error was the most likely cause”.

और जैसा महाप्रबंधक महोदय ने हमें बताया, “लाइन स्टाफ की गलती उसी स्तर की है, इससे डीआरएम का कोई सरोकार नहीं!”

#Railwhispers यह मानता है कि #Modiji की कार्य-संस्कृति ये नहीं है:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मार्च 2016 को संसद में सांसदों को अपने संबोधन में जो यह कहा था कि, “अफसरशाही की एकाउंटेबिलिटी खत्म होती जा रही है, लोकतंत्र में हम हर पांच साल में जनता को हिसाब देंगे, यह सिलसिला चलता रहेगा, लेकिन एक्जीक्यूटिव का हिसाब लेने के लिए यही संसद ही एक जगह है। इस संसदीय प्रणाली में संसद का कोई सदस्य प्रधानमंत्री से कम नहीं है, इसलिए यह विचार करना आवश्यक है कि हमारे एक्जीक्यूटिव्स की एकाउंटेबिलिटी हम कैसे बढ़ाएं। यह जब तक हम सब मिलकर तय नहीं करेंगे, तब तक यह संभव नहीं होगा। एक सरकार जाएगी, दूसरी सरकार आएगी, उनका मजा लेना बंद नहीं होगा, हमारे सामने यह एक बड़ी चुनौती है। यह मैं मानता हूं, और इस चुनौती को पूरा करने का हमें सामूहिक प्रयास करना पड़ेगा। लाखों मुलाजिम हैं, अरबों-खरबों का वेतन जा रहा है, योजनाओं की कमी नहीं है, सवाल यह है कि हम उस एकाउंटेबिलिटी को कैसे लाएं!”

माननीय प्रधानमंत्री का यह बयान ही रेलवे की अफसरशाही का उत्तरदायित्व (एकाउंटेबिलिटी) तय करने के लिए मेरे लेखन का प्रेरणा स्रोत है। यहां स्वयं सुनें प्रधानमंत्री का वह संबोधन-

रेल सेफ्टी की सबसे बड़ी आवश्यकता #रोटेशन है, और उन लोगों का सम्मान, जिन्हें काम आता है, न कि बगैर कुछ किए रेल के भाग्य-विधाता बने #KMG और #AIDS, जिनका ‘सेंस ऑफ एंटाइटलमेंट’ इतना बड़ा है कि उन्हें केवल दिल्ली में ही रहना है, दिल्ली में ही पूरी सर्विस करना है, बिना ऐसा कुछ काम किए जिसके लिए यूपीएससी ने उन्हें रेल के लिए भर्ती किया था, साथ ही उच्चतम स्तर पर जाने की उत्कट चाह भी पाली हुई है!

मंत्री जी, आपसे आग्रह है कि अपने हस्ताक्षर से अगली पोस्टिंग जब आप करें, तो जरा यह देख लीजिएगा कि #UPSC ने जिसके लिए इन #VVIP की भर्ती की थी, वैसा कुछ उन्होंने कभी किया कि नहीं!

मंत्री जी, रेल का मनोबल घंटियां उखाड़ने से नहीं बढ़ेगा, रेल का मनोबल बढ़ेगा विश्वसनीय लीडरशिप से! कृपया इसे एक बार पुनः पढ़ें- ट्रांसफार्मेशन के लिए क्रैडिबल लीडरशिप आवश्यक है, लेकिन क्षमा करें मंत्री जी! आपके सलाहकार समूह के पास कोई ‘क्रैडिबिलिटी’ नहीं है! क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी