जीएम पैनल और पोस्टिंग: सिस्टम में इतना अविश्वास, इतनी तिकड़म, इतनी अपारदर्शिता क्यों है?

सिस्टम में जो खामियां हैं, उनको ठीक करना रेलमंत्री और सीआरबी का काम है, मगर इसे करने की इच्छाशक्ति के दर्शन अब तक नहीं हुए हैं, बिना प्रशासनिक सुधार के रेल रिफॉर्म की बात करना बेमानी है। माननीय रेलमंत्री के विचारों में जो विचलन आजकल दिखाई दे रहा है, वह खान मार्केट गैंग के एजेंडे का ही हिस्सा है। ‘सौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की तर्ज पर हो थोड़ा रहा है, दिखाया बहुत जा रहा है, मगर इस आंड़ में अपना-अपना एजेंडा चल रहा है। क्या मंत्री महोदय इस सब पर स्वत: कोई संज्ञान लेंगे!

क्या आईआरएमएस के नए नियमों के तहत जीएम की पोस्टिंग बड़ी खबर है? तो दुबारा सोचें, 8 लोगों के एम्पैनलमेंट और उनकी पोस्टिंग से बड़ी खबर है- एसीसी द्वारा जारी जीएम पैनल और पोस्टिंग आर्डर के पैरा-III में! वह है – 122 एचएजी अफसरों का एम्पैनलमेंट न होना और इस निर्णय पर एसीसी की मुहर! केंद्र सरकार के वरिष्ठतम स्तर के 122 अधिकारी नापास हुए हैं, यह बहुत बड़ी संख्या है! और बहुत बड़ी चिंता का विषय भी!

अगर भारत सरकार के ये 122 वरिष्ठ अधिकारी नाकारा हैं, इनकी निष्ठा संदिग्ध पाई गई है, अथवा इनकी विश्वसनीयता संदेह से परे नहीं है, सिस्टम को इन पर भरोसा नहीं है, जो इनके एम्पैनल न होने से जाहिर है, तो प्रश्न यह उठता है कि अब वीआरएस या फोर्स रिटायरमेंट देकर क्या इन्हें सिस्टम से बाहर किया जाएगा?

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कुछ विचारणीय बिंदु निम्नवत् हैं:

– ये क्यों नहीं एम्पैनल हुए? क्या ‘डाउटफुल इंटीग्रिटी’ की बात है, जो कि चर्चा में है, या इनमें व्यावहारिकता, कार्यशैली की कमी? ये सब 30 साल से ज्यादा की नौकरी किए अधिकारी हैं, हर साल इनकी इंटीग्रिटी के कॉलम में ‘इंटीग्रिटी बियोंड डाउट’ लिखा गया। इन्हें इस स्तर का माना गया कि इनको 30 साल लगातार पदोन्नतियां मिलीं।

– 360 डिग्री रिव्यू में ऐसा क्या हुआ कि इनकी सत्यनिष्ठा पर सवाल उठ गए? या फिर इन्हें इतना नाकारा समझा गया कि इनके जूनियर इन्हें बाईपास कर गए? न केवल इन पर, बल्कि इनके कैरियर पर देश की सबसे बड़ी संस्था ने पूर्ण विराम लगा दिया!

– क्या एपीएआर (अपार) की व्यवस्था इतनी नाकारा है कि इनकी इंटीग्रिटी और कार्यशैली पर विश्वास नहीं किया जा सकता?

– ये कहा जाएगा कि मेरिट को ऊपर रखा गया। चलिए माना, लेकिन कहीं ये भी नहीं कहा गया कि इस प्रक्रिया से चयनित जीएम्स की परफॉरमेंस को कैसे मापा जाएगा? कितने दिन बाद इसका पुनरावलोकन होगा?

– जो चुने गए हैं, उनके क्या अचीवमेंट हैं कि इतने बड़े ग्रुप को पीछे छोड़ गए? ये बहुत मार्मिक सवाल है। इन्होंने क्या बनाया? व्यवस्था में क्या परिवर्तन किया? हाई प्रेशर एनवायरमेंट में इन्होंने क्या अचीव किया? यह सब तथ्य सार्वजनिक होने चाहिए।

– जो लोग बाईपास हो गए हैं अथवा जिनके कैरियर पर पूर्ण विराम लग गया है, क्या वे रेल के लिए किसी उपयोग के रह गए हैं? क्या उनको 56जे में वीआरएस दिया जाएगा?

– जिस पैनल ने इनको बाईपास करने की संस्तुति की है, क्या उसका असेसमेंट सार्वजनिक होगा? अथवा क्या इस चयन पैनल के चारों सदस्यों का 360 डिग्री रिव्यू सार्वजनिक किया जाएगा?

– 122 रिजेक्शन और 8 सेलेक्शन में इमोशनल इंटेलिजेंस का स्कोर और 360 डिग्री रिव्यू का क्या-क्या कंट्रीब्यूशन है? 360 डिग्री रिव्यू कैसे मेनीप्युलेट हो रहा है, ये हमने लिखा था। कैसे कुछ अधिकारियों के प्रति पूर्वागृह से यह रिव्यू करवाया गया, ये भी दबे स्वरों में बात हो रही है। पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत लाग-डाट के चलते जिनका दुबारा 360 कराया गया, वह भी किसी से छिपा नहीं है।

– बी. जी. माल्या कैसे रिजर्व लिस्ट में हैं, इससे सब अचंभित हैं – ये कैसा 360 डिग्री रिव्यू है जिसमें यह अत्यंत पॉपुलर, हाई परफॉरमेंस कंट्रीब्यूटर, काम से बचने वाले सुरक्षित स्थानों पर रहने वालों से पीछे रह गया? क्यों शुभ्रांशु जैसे सिस्टम में पॉपुलर अधिकारी एम्पैनल नहीं हुए? किस क्राइटेरिया से ये ओवरलूक हुए? क्या यह सब सार्वजनिक होगा?

– अगर इमोशनल इंटेलिजेंस स्कोर का उपयोग स्क्रीनिंग में हुआ है, तो वह क्या प्रक्रिया है जिससे ऑफिसर आश्वस्त हो सकें कि इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट मेनीप्युलेट नहीं हुआ? ये किसने सर्टिफाई किया? क्या इस टेस्ट की मान्यता और इसके असेसमेंट की विश्वसनीयता की प्रोसेस का ऑडिट हुआ है या अब करवाया जाएगा?

– केंद्र सरकार के 122 एचएजी ऑफिसर्स के कैरियर पर पूर्ण विराम लगना बहुत बड़ी बात है। ये बात अलग है कि रेलवे में अधिकारी इफरात हो गए हैं और अधिकतर उदासीन हो गए हैं – क्यों न इन्हें 56J के तहत घर भेज दिया जाए?

– वह क्या प्रावधान किए गए जिससे अधिकारी आश्वस्त हो सकें कि 360 डिग्री प्रक्रिया मेनीप्युलेट नहीं हुई। स्टेब्लिशमेंट ऑफिसर ने व्यक्तिगत कारणों से कुछ अधिकारियों को टारगेट किया, ये भी दबे स्वरों में बात हो रही है।

– यह भी चर्चा में है कि सेलेक्शन पैनल के चार में से एक सदस्य को किसी से यह कहते सुना गया कि उनसे – अर्थात पैनल से – आठ लोगों को सेलेक्ट करने को कहा गया, तो वह क्या करते! यह बात कहां तक सही है, क्या इसकी निशा-खातिर मंत्री जी स्वयं करके इसे सार्वजनिक करेंगे?

– इस पूरी चयन प्रक्रिया में इतनी अधिक अपारदर्शिता क्यों है? अथवा क्या इसका अर्थ अब यह निकाला जाए कि यह सब केवल दिखावे का प्रहसन है, जो मंत्री जी या उनके कथित सलाहकार कहेंगे, जो इशारा करेंगे, वही होगा? जैसा कि पैनल के साथ फोटो खिंचवाने पर पहले भी लिखा जा चुका है। क्या समय के साथ मंत्री अब मंत्री के तौर पर नहीं, बल्कि एक बोर्ड मेंबर की ही तरह सोचने और करने लगे हैं, जैसा कि उसी पैनल के एक अन्य सदस्य पहले ही कह चुके हैं कि मंत्री को हम लोग दो-चार महीनों में ही अपने स्तर पर उतार लेते हैं?

– ऐसी क्या हड़बड़ी थी कि सर्वथा पहली बार जीएम पैनल का अप्रूवल और इसके साथ जीएम की पोस्टिंग भी एसीसी से करवाई गई? क्या जीएम की पोस्टिंग के आदेश भी निकालने का माद्दा रेलवे बोर्ड में बाकी नहीं रह गया है? यह चालबाजी क्यों है? किसलिए है? किसके साथ की जा है? और कौन कर रहा है? क्या सरकार को अपने ऊपर, और अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर इतना भी भरोसा नहीं रहा?

– जब चार डिफर – या डफर – लोगों के नाम एसीसी के अप्रूवल आदेश में दिए गए, तो उन 122 बाईपास हुए लोगों के नाम भी उसी में दिए जाने चाहिए थे! यही एसीसी के अप्रूवल की अब तक की पारदर्शी और घोषित परंपरा रही है। ये अपारदर्शिता क्यों बरती गई? एक तरफ मोदी जी आधुनिक तकनीक के जरिए सरकार के समस्त कामकाज में अधिकतम पारदर्शिता लाने के पक्षधर हैं, तो दूसरी तरफ 11 वरिष्ठों की एपीएआर खराब करवाने वाले केएमजी सरगना के प्रभाव में रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव भावमंड क्यों हैं!

– यह भी बताया जाना चाहिए कि उत्तर मध्य रेलवे से कोर में प्रमोद कुमार की, और आईसीएफ से आरडब्ल्यूएफ में ए. के. अग्रवाल की लेटरल शिफ्टिंग का कारण क्या रहा है? यह तो इन दोनों जीएम का एक तरह से डिमोशन किया गया है, जबकि प्रमोद कुमार अच्छा काम कर रहे थे, और अग्रवाल जी केएमजी सरगना के सीधे आदेश पर ढ़ेरों एसएलटी किए थे? जो कि इस पर डेढ़ महीने तक आरटीआई का कोई रिप्लाई नहीं दिया!

केएमजी का नया गेम प्लान

रेल मंत्रालय में अब खान मार्केट गैंग (#KMG) का नया गेम प्लान शुरू हुआ है। जीएम में एम्पैनलमेंट से वंचित हुए उन 122+4 लोगों से 10.12.2022 तक उनका ज्ञापन, अगर उनकी कोई ग्रीवांस है तो, देने को कहा गया है। इस तरह इन लोगों को कोर्ट जाने से कम से कम एक महीने तक के लिए तो रोक ही दिया गया है, और एक-दो माह प्रक्रिया में निकल जाएगा, इस तरह इनका खेल फाइनली खत्म कर दिया गया माना जा रहा है!

संयुक्त प्रश्न यह उठता है कि जिन लोगों पर सिस्टम का भरोसा नहीं रहा, तिकड़म से उन्हें बाहर कर दिया गया, और जिन्हें सिस्टम से न्याय नहीं मिला, न ही मिलने की कोई उम्मीद है, क्या ऐसे लोगों को तुरंत फोर्स रिटायरमेंट नहीं दे देना चाहिए, या उन्हें स्वयं अब तक वीआरएस अप्लाई नहीं कर देना चाहिए था?

प्रश्न यह भी है कि इस बीच इन मूक-बधिरों को कम से कम तीन कार्य-दिवस (वर्किंग डे) मिले, इन तीन दिनों में उन्होंने कोर्ट का रुख क्यों नहीं किया? अथवा स्वयं आगे बढ़कर सीआरबी को चिट्ठी लिखने या वीआरएस देने की मर्दानगी क्यों नहीं दिखाई? अब क्या अचीव करना बाकी रह गया है उन्हें? या फिर, क्या वे यह चाहते हैं कि उनके अधिकार की लड़ाई कोई और आकर लड़े और वे अखाड़े के बाहर अपना सुथना संभालते बैठते रहें?

जो भी होता है, अच्छा होता है!

इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि जो होता है, वह अच्छे के लिए ही होता है, फिर भले ही कर्ता कोई भी क्यों न हो! क्योंकि राहुल गौतम एजीएम/एनएफआर, ए. के. सिन्हा, पीसीपीओ/म.रे., ए. के. गुप्ता, पीसीएमई/म.रे. (सीबीआई द्वारा हाल ही में धरे गए), आलोक सिंह, एजीएम/म.रे., सीमा कुमार, एएम/टीएंडसी/रे.बो., पुनीत चावला/पीसीएसटीई/उ.प.रे., जयदीप गुप्ता, एजीएम/पू.रे., पी. एम. सिकदर, पीसीएसटीई/द.पू.रे., राहुल अग्रवाल, एएम/सिग्नल/रे.बो., एस. के. पंकज, नायर, एस. के. मिश्रा, पीसीई/आरई, आर. के. झा, एडीजी/इरिसेन, दिनेश कुमार, पीसीई/पू.म.रे. और शोभन चौधुरी, एजीएम/प.म.रे. इत्यादि जैसे अहंमन्य लोग जीएम बनते तो न ये धरती पर रहते, न इनकी फेमिली अपने जामे में रह पाती! यह और ऐसे अन्य कई लोग जो बाईपास हुए हैं, केवल सुविधाभोगी ही नहीं, कदाचारी, कर्महीन और अव्यावहारिक भी हैं, जो इतने लोक-लाज विहीन हैं कि इनसे स्वत: वीआरएस देने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती!

नैतिकता और गरिमा बचाए रखने का तकाजा

इसके अलावा, वह भी अब तक पद बने हुए हैं, जो लुकिंग ऑफ्टर जीएम थे, और जीएम एम्पैनलमेंट से वंचित रह गए, और वह भी कितने बेशर्म हैं कि बोर्ड मेंबर का लुकिंग ऑफ्टर चार्ज देखते हुए जीएम के लिए अप्लाई किया मगर धकेलकर बाहर कर दिए गए, फिर भी पद पर आसीन हैं। यह केवल इन सबकी व्यक्तिगत नैतिकता और शुचिता का मुद्दा नहीं है, इनको किसी भी कारण से बाईपास किया गया हो, मगर सच यही है कि व्यवस्था का इन पर विश्वास नहीं रहा, जो कि इनके सार्वजनिक अपमान का विषय है, जिसके प्रायश्चित स्वरूप इन्हें सिस्टम से बाहर निकल जाना चाहिए, नैतिकता का तकाजा और अपनी यत्किंचित गरिमा बचाए रखने का तरीका भी यही है, वरना अपने बच्चों, नाती-पोतों को क्या मुंह दिखाएंगे, और क्या मुंह लेकर अपने सहकर्मियों, मातहतों के बीच कुर्सी पर बैठ पाएंगे!

‘अपार’ सिस्टम में अपार खामियां

बहरहाल, जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण तो है, मगर यह भी सच है कि इनमें से अधिकांश लोग केवल अपनी जन्मतिथि की बदौलत यहां तक पहुंचे, अपनी योग्यता, क्षमता की बदौलत नहीं! यह भी सही है कि इनमें से अधिकांश लोग यहां तक केवल इसलिए पहुंच पाए, क्योंकि इनकी ‘अपार’ में लगातार आउटस्टैंडिंग, एक्सीलेंट लिखा गया बिना इनकी निष्ठा और विश्वसनीयता का सही आकलन किए, इसका और क्या अर्थ निकाला जाए! यानि कि ‘अपार’ सिस्टम में अपार खामियां हैं।

अब यह खामियां ठीक करना माननीय रेलमंत्री और सीआरबी का काम है, मगर ऐसा लगता है कि रेल रिफॉर्म का केवल डंका बजाया जा रहा है, इसे करने की इच्छाशक्ति के दर्शन अब तक रेलकर्मियों, अधिकारियों को तो हुए नहीं हैं, जनता अर्थात रेलयात्रियों को कौन पूछता है! मगर इन्हीं लोगों का यह मानना है कि बिना प्रशासनिक सुधार के रेल रिफॉर्म की बात करना बेमानी है। माननीय रेलमंत्री के विचारों में जो विचलन आजकल दिखाई दे रहा है, वह भी खान मार्केट गैंग के एजेंडे का ही हिस्सा बताया जा रहा है। ‘सौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की तर्ज पर हो थोड़ा रहा है, दिखाया बहुत जा रहा है, मगर इस आंड़ में अपना-अपना एजेंडा चल रहा है। क्या मंत्री महोदय इस सब पर स्वत: कोई संज्ञान लेंगे! क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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