सरकार का सामाजिक दायित्व और लोकतंत्र की विसंगति
सांसदों/विधायकों को भारी भरकम वेतन-भत्ते और मोटी पेंशन मिल रही है, इनमें लगातार मनमानी वृद्धि भी हो रही है, फिर आम आदमी की गाढ़ी कमाई से काटे गए टैक्स से इनको मुफ्त की सुविधाएं देकर ‘जीरो टॉलरेंस’, ‘सामाजिक सरोकार’ और ‘आम आदमी की हितैषी सरकार’ जैसे स्लोगन देना, न केवल अप्रासांगिक है, बल्कि लोकतंत्र का भारी माखौल उड़ाना भी है!
भारतीय लोकतंत्र की यही सबसे बड़ी विडंबना है कि एक तरफ सरकार खर्चों का हवाला देकर वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली रियायतों को खत्म कर अपने सामाजिक सरोकार से पल्ला झाड़ लेती है, तो दूसरी तरफ वर्तमान और पूर्व सांसदों तथा उनके परिवारों को मुफ्त में अपर क्लास में रेल और हवाई यात्रा की अनुमति देती है। सरकार के सामाजिक दायित्व और लोकतंत्र के बीच की यह एक बड़ी विसंगति नहीं तो क्या है?
ज्ञात हो कि कोरोना महामारी के घोर संकट के दौर (2020-21) में भी वर्तमान और पूर्व सांसदों द्वारा रेल की मुफ्त यात्रा की गई, जिसकी लागत लगभग ₹2.5 करोड़ के आसपास थी।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों – 2017-18 से 2021-22 – के दौरान वर्तमान और पूर्व सांसदों की रेल यात्राओं पर सरकार ने लगभग ₹62 करोड़ खर्च किए हैं। यह पैसा आम आदमी के टैक्स का था।
लोकतंत्र और लोकप्रिय सरकार के कार्य-व्यवहार की यह कितनी बड़ी विसंगति है कि एक तरफ रेगुलर इनकम से वंचित और साधनविहीन वरिष्ठ नागरिकों की छूट समाप्त की जा रही है, तो दूसरी तरफ सर्वथा सक्षम, सर्वसुविधासंपन्न सांसदों की न केवल तमाम रियायतें जारी हैं, बल्कि उनमें उनके वेतन-भत्तों सहित लगातार और मनमानी वृद्धि होती जा रही है।
यहां रियायतों को समाप्त करने का विरोध नहीं है, लेकिन ये रियायतें फिर किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि सब अपनी-अपनी सेवा या काम का वेतन-भत्ता पाते हैं। सांसदों और विधायकों को तो कत्तई कोई छूट नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि एक तो ये लोग आम जनता के सेवक कहलाते हैं मगर जनता के ही खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से दिए गए टैक्स से अपनी मुफ्त की सुविधाओं का राजसी भोग करते हैं। ऊपर से अवैध गतिविधियों से अकूत धन-संपत्ति अर्जित करते हैं, वह अलग!
माना कि आपने बुजुर्ग यात्रियों को मिलने वाली रियायत रेल को हो रहे नुकसान का नाम देकर बंद कर दिया, लेकिन सांसदों की मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा अभी तक क्यों जारी है? इनके ऊपर हो रहे खर्चों का हिसाब-किताब क्यों नहीं बताया गया? सोशल मीडिया पर पुरजोर तरीके से उठाए जा रहे जनता के इन सवालों का जवाब कौन देगा?
एक बात और, विदित हो कि सांसदों के पास पर एक ही दिन में एक ही गंतव्य के लिए कई-कई गाड़ियों में आरक्षण करा लिया जाता है और प्रायः इन सभी बर्थों पर सांसद के प्रतिनिधि, कार्यकर्ता, रिश्तेदार इत्यादि लोग यात्रा करते हैं। ये शिकायतें अनेकों बार चेकिंग स्टाफ संबंधित रेल अधिकारियों को मौखिक रूप से बता चुका है, लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? जनप्रतिनिधियों अर्थात सांसदों की इस बेलगाम मनमानी और अधिकार के भीषण दुरुपयोग पर लगाम कौन कसेगा?
वर्तमान सांसदों को पत्नी के साथ फर्स्ट क्लास एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलती है। इसी तरह पूर्व सांसदों को अकेले फर्स्ट क्लास एसी तथा पत्नी के साथ सेकेंड एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा है, और यह सुविधा आजीवन – अनलिमिटेड है।
उधर लगभग बीस लाख वरिष्ठ नागरिकों को बहला फुसलाकर और दिग्भ्रमित कर राष्ट्रवाद के नाम पर “गिव अप” की अपील करके सैकड़ों करोड़ की बचत की गई, मगर यही अपील सांसदों, विधायकों से नहीं की गई! और न ही उनमें से कोई अपनी सुविधा या छूट छोड़ने को तैयार है, न ही इन्हें खत्म करने अथवा वापस लेने की सरकार में कोई इच्छाशक्ति दिखाई दे रही है!
कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार, आप आम आदमी को कोई रियायत नहीं देना चाहते हैं, तो न दें, लेकिन सुविधासंपन्न और हर तरह से सक्षम सांसदों को दी जा रही मुफ्त रियायतों को भी तो बंद करने का साहस सरकार को दिखाना चाहिए! जबकि केवल वरिष्ठ नागरिकों की रेल किराए में छूट को खत्म करके 2020-21 और 2021-22 में सरकार ने लगभग ₹2000 करोड़ कमाए हैं।
सांसदों/विधायकों को भारी भरकम वेतन-भत्ते और मोटी पेंशन की सुविधा मिल रही है। इसमें लगातार मनमानी वृद्धि भी हो रही है। फिर आम आदमी की गाढ़ी कमाई से काटे गए टैक्स से इनको मुफ्त की सुविधाएं देकर ‘जीरो टॉलरेंस’ ‘सामाजिक सरोकार’ और ‘आम आदमी की हितैषी सरकार’ जैसे स्लोगन देना, न केवल अप्रासांगिक है, बल्कि लोकतंत्र का भारी माखौल उड़ाना भी है।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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