सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ के 50% पद ग्रुप ‘बी’ को हुए ट्रांसफर, विभाग प्रमुखों की हुई चांदी

ग्रुप ‘बी’ जूनियर स्केल में सेलेक्शन के लिए खिल गईं विभाग प्रमुखों की बांछें

बिना किसी फ्यूचर मॉडेलिटी के आनन-फानन में जारी हुआ आदेश

रेलवे बोर्ड के इस विवादास्पद निर्णय से निकट भविष्य में पैदा होगी वरीयता निर्धारण करने में परेशानी

आज भी लंबित हैं ग्रुप ‘ए’ और ग्रुप ‘बी’ के बीच परस्पर वरीयता निर्धारण के सैकड़ों मामले!

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) अपनी अकर्मण्यता की वजह से लगातार तीन वर्षों – 2019, 2020 और 2021 – तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का चयन कराने में अक्षम रहा है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि रेलवे बोर्ड द्वारा एक सोची-समझी साजिश के तहत ऐसा किया गया।

पहले सीधी भर्ती से ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को नहीं लिया, यानि सीधी भर्ती जूनियर स्केल के लिए यूपीएससी को तीन साल तक लगातार इंडेंट नहीं भेजी गई। फिर जूनियर स्केल में रिक्त पदों का रोना रोकर, सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ के 25% पदों को ग्रुप ‘बी’ यानि प्रमोटी खेमे को ट्रांसफर कर दिया, और अब यह कोटा बढ़ाकर 50% कर दिया गया है, जिससे विभाग प्रमुखों की भी बांछें खिल गई हैं।

जानकारों का कहना है कि अनपढ़-गंवार लोगों को अफसर बनाने, दिमाग से पैदल लोगों का रुतबा बढ़ाने, अपने खास चापलूसों को ओब्लाइज करने, अवैध कमाई से अपनी जेबें भरने और विभागीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की नीयत से यह सारी कवायद की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें कुछ कार्मिक अधिकारियों की भूमिका भी अत्यंत दुष्टतापूर्ण बताई जा रही है।

उनका यह भी कहना है कि खूब सोच-समझकर बनाई गई रणनीति है यह, क्योंकि जब इस पूरी विभागीय चयन प्रक्रिया को एकीकृत करके रेलवे बोर्ड स्तर पर केंद्रित किया गया था, तभी से कुछ विभाग प्रमुखों के चेहरे लटके हुए थे और वे लगातार इस कोशिश में लगे रहे कि यह चयन किसी भी तरह से जोनल रेलवे स्तर पर ही बना रहे। उनकी यह कोशिश तब कामयाब हुई जब एक उद्देश्यहीन अधिकारी बतौर सीआरबी, रेलवे बोर्ड पहुंचा था।

बहरहाल, इस पूरे खेल को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

1. इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस बनने के बाद यूपीएससी को इंडेंट देने में जानबूझकर की गई देरी:

कई विभागों के प्रबंधन से मुक्ति पाने के चक्कर में रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने वर्ष 2019 में एक नई सर्विस “आईआरएमएस” की खोज किया। परंतु रिक्रुटमेंट रूल बनाने में जानबूझकर देरी की गई, और लगभग तीन साल बाद इसकी भावी प्रकिया जारी की गई, वह भी आधी-अधूरी। नए रिक्रुटमेंट रूल में बहुत बड़ी खामी है, वह यह कि यदि किसी ग्रुप ‘बी’ अधिकारी की पदोन्नति ग्रुप ‘ए’ में होती है, तो सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ और प्रमोटी अधिकारियों के बीच परस्पर वरीयता का निर्धारण करते समय एंटी-डेटिंग का नियम क्या रहेगा! इस पर नया रिक्रुटमेंट रूल कुछ नहीं कहता है।

रिक्रुटमेंट रूल बनाने में देरी की वजह से यूपीएससी द्वारा ग्रुप ‘ए’ में तीन साल तक लगातार सीधी भर्ती नहीं की गई, इस महत्वपूर्ण तथ्य को दरकिनार करके, और मैनपावर की कमी बताकर अप्रत्यक्ष्य रूप से यूपीएससी का पावर डायल्यूट करके विभाग प्रमुखों के हाथों में सारा विभागीय चयन सौप दिया गया। जानकारों का कहना है कि इस तथ्य पर गौर करने से रेलवे बोर्ड में बैठे कुछ अधिकारियों की धूर्तता का अंदाजा आसानी से हो जाता है।

2. सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ के कुल रिक्त पदों में से, वर्ष 2020 में 25% तथा वर्ष 2022 में 50% काटकर प्रमोटी कोटे में बिना समीक्षा के ट्रांसफर कर दिया:

यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि यदि सीधी भर्ती के 50% पद प्रमोटी कोटे में डायवर्ट कर दिए गए, तो यह कब वापस किए जाएंगे? और कैसे होंगे? इस पर कहीं कोई स्पष्टता नहीं है। दूसरा प्रश्न यह है कि जो 50% अधिकता में ग्रुप ‘बी’ अधिकारी चयनित होंगे, उनकी वरीयता ग्रुप ‘ए’ में निर्धारित करते समय कैसे और कहां एडजस्ट की जाएगी?

जानकारों का कहना है कि 50% अधिकता में या अतिरिक्त चयनित हुए ये ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारी निर्धारित समय पर प्रमोशन की मांग करेंगे, जबकि इनका चयन तो सीधी भर्ती वाले कोटे पर हुआ है। तब रेलवे बोर्ड क्या करेगा? इस पर भी उक्त दोनों आदेशों में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। इस प्रकार क्लीयर कट रूल (स्पष्ट नियम) नहीं बनाया जाना, निश्चित रूप से एक सोची-समझी साजिश की तरफ इशारा करता है।

ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का दोतरफा नुकसान

उनका कहना है कि ऐसे गलत नियम से सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को दोतरफा चोट पड़ेगी, एक तो उनके 50% पद गए और दूसरे उनके रिक्त पदों पर चयनित होने वाले प्रमोटी अधिकारी की ग्रुप ‘ए’ में वरीयता निर्धारण में ऊपर रहेगी। अतः रेलवे बोर्ड द्वारा 20 जून 2022 को और इससे पहले जारी किया गया पत्र अपूर्ण है। इससे रेलवे बोर्ड की कार्य-कुशलता और नीयत पर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।

ग्रुप ‘बी’ का प्रत्येक चयन होता है विवादित

जानकारों का कहना है कि ग्रुप ‘बी’ जूनियर स्केल में होने वाला प्रत्येक चयन विवादग्रस्त होता है। यह प्रत्येक जोनल रेलवे में होता है। उनका कहना है कि सभी विभाग प्रमुख गैर-निष्ठावान हैं, बेईमान हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं है, मगर उनमें से ज्यादातर ऐसे ही हैं, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है।

हालांकि आज तक किसी भी जोनल रेलवे में ऐसा एक भी विभागीय चयन नहीं हुआ, जो विवादित न हुआ हो। #Railwhispers को आज भी ऐसे कई पीएचओडीज के नाम याद हैं, जिन्होंने 5-10 लाख नहीं, बल्कि 15-20 लाख लेकर कई दिमाग से पैदलों को अफसर बनाया। इनमें से कुछ रिटायर हो गए हैं, तो कुछ एजीएम/जीएम स्तर पर पहुंचे हुए हैं।

केंद्रीकृत हो ग्रुप ‘बी’ का चयन

यही सबसे बड़ी वजह है कि ज्यादातर अधिकारियों के साथ #Railwhispers का भी हमेशा यह मानना रहा है कि या तो सभी जोनल रेलों से सभी विभागीय रिक्तियां एकत्रित करके इनका रेलवे बोर्ड स्तर पर केंद्रीयकृत चयन किया जाए, या फिर सीधे यूपीएससी के माध्यम से इन विभागीय पदोन्नतियों को सीधे ग्रुप ‘ए’ में चयनित करवाया जाए। ग्रुप ‘बी’ का झंझट हमेशा के लिए खत्म किया जाए। अर्थात जो भी प्रक्रिया अपनाई जाए, उसमें जोनल विभाग प्रमुखों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।

अभी नहीं, तो फिर कभी नहीं!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को अगर विभागीय भ्रष्टाचार, भेदभाव और पक्षपात खत्म करना है, या कम से कम न्यूनतम करना है, तो उन्हें इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, क्योंकि अगर वह यह काम नहीं कर पाते हैं, तो उनके बाद आने वाले किसी भी अन्य प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से यह अपेक्षा, यह उम्मीद नहीं की जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि रेलवे बोर्ड द्वारा पहले भी इस तरह के विवादास्पद निर्णय लिए गए हैं, जिनके चलते ऐसे कई मामले सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचे हैं। कोई भी व्यवस्था पुख्ता नहीं होती, यह मान्य है, परंतु व्यावहारिक रूप से सुस्पष्ट नीति और सुस्पष्ट नीयत के अभाव में व्यवस्था का व्यापक नुकसान तो होता ही है, बल्कि उसकी देखरेख के लिए बतौर पहरेदार बैठे व्यक्ति की भी नीति और नीयत पर संदेह पैदा होने लगता है। इस सब से बचने के लिए आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर पर ही सब कुछ ठीक कर लेने की भरपूर कोशिश की जाए। अगर उद्देश्य स्पष्ट है, तब सब कुछ स्पष्ट होगा!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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