रेल ट्रैफिक को रोड की तरफ कैसे मोड़ा जाए, यह सीखें रेलवे से!
अपने कस्टमर को कैसे तोड़ा जाता है, और रेलवे ट्रैफिक को रोड से जाने के लिए कैसे मजबूर किया जाता है, यह सिखाते हैं रेलवे के विजिलेंस इंस्पेक्टर!
मध्य रेलवे का नासिक रोड रेलवे स्टेशन अनेक औद्योगिक कंपनियों के लिए अत्यंत महत्व का स्टेशन है। यहां से देश के अनेक स्टेशनों/शहरों के लिए बड़े पैमाने पर पार्सल/माल की बुकिंग होती है। इनमें अंगूर, फल और सब्जियां प्रमुख हैं। यहां से व्यापारियों द्वारा बड़े पैमाने पर माल की बुकिंग की जाती है। कुछ कंपनियां अपना माल दोपहर को, तो कुछ शाम को, जिसकी जैसी सुविधा होती है, उस हिसाब से यहां अपना माल लेकर आती हैं और निर्धारित गंतव्य को बुक करके भेजती हैं।
कंपनियों का यह माल, पार्सल कार्यालय के बाहर रखा/इकट्ठा किया जाता है। सारा माल इकट्ठा हो जाने के बाद व्यापारी उसकी बुकिंग करता है। लेकिन जो माल बुकिंग के लिए लाया जाता है, वह पार्सल कार्यालय के बाहर रखा होने के बावजूद उस पर वॉरफेज चार्ज किया जाता है। इस स्थिति में व्यापारियों के सामने समस्या खड़ी हो रही है कि वॉरफेज भी भरें और बुकिंग के समय भाड़ा भी दें। ऐसे में जो कम भाड़े के लोभ में रेलवे की तरफ रुख करते हैं, वह इस दोषयुक्त प्रक्रिया के कारण रोड ट्रांसपोर्ट की ओर मुड़ रहे हैं।
इस प्रक्रिया में स्पष्ट नियम क्या हैं, यह यहां किसी पार्सल बाबू को नहीं मालूम कि माल आने के बाद कितने समय की छूट है? कितने समय बाद उसे वॉरफेज रजिस्टर में दर्ज करना है? क्योंकि जब माल पार्सल कार्यालय के बाहर पड़ा है, और उसे तौला या गिना नहीं गया है, और न ही नियमानुसार ऐसा करना संभव है। तब वॉरफेज की मद में उसे कैसे लिया जा रहा है? और अगर ले लिया, तो लेने के बाद उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है?
ऐसे में अगर व्यापारी यह कह दे कि उसके दो पैकेज गायब हैं, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? और उसके क्लेम की क्या प्रक्रिया है, तथा विजलेंस वालों को जब कुछ नहीं मिलता, तो वे बाहर पड़े इस माल/सामान पर पार्सल कर्मचारियों के विरुद्ध केस बना देते हैं। इस प्रक्रिया में यहां के एक पार्सल इंचार्ज का ट्रांसफर भी हाल ही में किया गया है।
यहां के पार्सल कर्मचारियों का कहना है कि हाल ही में हुए जीएम इंस्पेक्शन के दौरान पीसीसीएम ने इस वॉरफेज रजिस्टर का अवलोकन किया था और कर्मचारियों को फटकार भी लगाई थी कि “जब व्यापारी अपना माल बुकिंग के लिए लाएगा, तो उसके माल की बुकिंग करने से पहले ही अगर इस प्रकार से उसे ट्रीट किया जाएगा, तो वह रेलवे में आएगा ही नहीं।” यह कहकर उन्होंने इस औघड़ प्रक्रिया को बंद करने का निर्देश दिया था।
कर्मचारियों का कहना है कि पीसीसीएम के उक्त निर्देश पर यह अवैध प्रक्रिया कुछ दिनों तक तो बंद रही, लेकिन पिछले दिनों विजलेंस इंस्पेक्टरों ने जांच के दौरान जब बाहर जाकर देखा और कहा कि यहां यह जो माल पड़ा है, इसे वॉरफेज में लिया जाए, तब इंचार्ज द्वारा उन्हें पीसीसीएम के दिए गए उपरोक्त निर्देश के बारे में बताया गया, तो विजिलेंस इंस्पेक्टरों का कहना था कि क्या पीसीसीएम साहब ने राइटिंग में दिया है? या तुमने पीसीसीएम से राइटिंग में लिया है क्या? उन्होंने कहा कि अब इन विजिलेंस इंस्पेक्टरों को कौन बताए कि पीसीसीएम से राइटिंग में देने को कौन कह सकता है!
ज्ञातव्य है कि अब यहां कर्मचारियों के सामने दुविधा यह है कि वे क्या करें? पीसीसीएम के निर्देश या आदेश पर अमल करें, या फिर विजिलेंस वालों की बात मानें? इसलिए पहले अपनी नौकरी बचे, रेलवे बाद में! अतः उन्होंने पीसीसीएम के निर्देश को एक तरफ रखकर विजिलेंस वालों की बात पर अमल करना शुरू कर दिया है। अब जैसे ही माल आता है, उसी समय उसकी इंट्री वॉरफेज रजिस्टर में कर ली जाती है। इस प्रकार माल बुकिंग करने वाले व्यापारियों को दोहरी मार पड़ रही है और वे इसीलिए रेल के बजाय रोड की तरफ मुड़ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि रेलवे के नियमानुसार वॉरफेज की गणना डिलीवरी हेतु आए हुए सामान पर एक निर्धारित समय की छूट के बाद डिलीवरी लेने पर, तथा बुकिंग हेतु लाए गए सामान को रेलवे के माल गोदाम में सुरक्षित रखने पर की जाती है।
व्यापारियों के साथ ही यहां के समस्त पार्सल स्टाफ का भी यही कहना है कि रेल प्रशासन द्वारा इस विषय पर नियम और दिशा-निर्देश स्पष्ट किए जाएं! ताकि विजिलेंस के डर से वॉरफेज लेने के कारण रेल के माल/पार्सल ट्रैफिक को रोड की तरफ मुड़ने से रोका जा सके।
इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि प्रशासन द्वारा यह भी स्पष्ट किया जाए कि पीसीसीएम के आदेश/निर्देश का पालन करना है, या विजिलेंस इंस्पेक्टरों के! क्योंकि उन्होंने भी राइटिंग में कुछ नहीं दिया है। इसके साथ ही धौंसबाजी करके, अथवा वाणिज्य कर्मचारियों को दबाव में लेकर उनसे वसूली करने के विजिलेंस इंस्पेक्टरों के उद्देश्य पर भी लगाम लगाई जानी चाहिए।