सुरक्षित नौकरी की गारंटी देती है कामचोरी और कदाचार को बढ़ावा!

रेलकर्मियों अनुपयोगी पद होंगे सरेंडर!

अनुपयोगी अधिकारियों का क्या? निकम्मे, कामचोर, कदाचारी अधिकारियों के पद भी किए जाएं सरेंडर?

रेल की स्थापना से लेकर अब तक स्टेशनों और दफ्तरों में कार्य करने वाले सहायक, कुक, बिल पोस्टर, टाइपिस्ट, माली, दफ्तरी, बढ़ई, खलासी, पेंटर तथा कारखानों में ब्वायलर आदि कर्मी रेलवे के लिए अनुपयोगी हो गए हैं। अंग्रेजों के समय से चली आ रही इस व्यवस्था में अब इन पदों पर कार्यरत कर्मी रेल की आवश्यकता के हिसाब से दूसरे विभागों/कार्यस्थलों पर समायोजित किए जाएंगे। समीक्षा के बाद इन पदों को समाप्त अर्थात सरेंडर कर दिया जाएगा। भविष्य में इन पदों पर भर्तियां नहीं होंगी। कर्मचारियों से खाली होने वाले विभागों के कार्य आउटसोर्स किए जाएंगे।

सीआरबी ने लिखा जोनल महाप्रबंधकों को पत्र

रेलवे बोर्ड का मानना है कि बढ़ते तकनीकी कौशल में इन पदों पर तैनात कर्मियों के पास अब पर्याप्त काम नहीं रह गया है। जबकि जिन कार्यस्थलों पर कर्मचारियों की आवश्यकता है, वहां आउटसोर्सिंग से काम चलाया जा रहा है। इसके चलते रेलवे का खर्चे बढ़ रहा है। मानव संसाधन के मद में हो रहे खर्च को कम करने के लिए चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड विनय कुमार त्रिपाठी ने 18 अप्रैल 2022 को सभी जोनल महाप्रबंधकों को डीओ (नं. ई(एमपीपी)/2022/1/1) लिखा है।

सीआरबी ने उक्त डीओ लेटर में रेल के खर्चों को कम करने पर जोर दिया है। उन्होंने लिखा है कि रेल की कुल कमाई का 67% खर्च मानव संसाधन पर होता है। इसके लिए जोनल रेल प्रशासन द्वारा कम कामकाज वाले पदों पर तैनात कर्मियों को दूसरे कार्यों एवं कार्यस्थलों पर समायोजित किया जाए। खाली हो रहे पदों को सरेंडर कर आवश्यक कार्य आउटसोर्स से पूरे कराए जाएं। कार्यस्थलों के पदों और कार्यों की रिपोर्ट तथा आउटसोर्स के लिए प्रस्ताव तैयार कर रेलवे बोर्ड को भेजा जाए, ताकि खर्चों को कम करने के आवश्यक उपाय सुनिश्चित किए जा सकें।

जोनल रेलों ने शुरू किया पदों का सरेंडर

जोनल रेलों ने सीआरबी के उपरोक्त डीओ लेटर में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुपालन में कार्यवाही शुरू कर दी है। पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने पदों को सरेंडर करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है। पूर्वोत्तर रेलवे के – लखनऊ, वाराणसी, इज्जतनगर – तीनों मंडलों में सहायक लोको पायलटों के 434 पदों को समाप्त करने की तैयारी है।

इसी प्रकार पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा स्वास्थ्य विभाग में सफाईकर्मियों के 120 पद, रेलवे स्कूलों के टीजीटी/पीजीटी के 100 पद तथा यांत्रिक कारखाना, गोरखपुर में 50 पदों सहित करीब 1300 पदों को सरेंडर करने की प्रक्रिया पूरी करके इसकी रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी गई है। यह तब है जब पूर्वोत्तर रेलवे के विभिन्न श्रेणियों में स्वीकृत 60 हजार कर्मचारियों के पदों के सामने 14,329 पद खाली हैं। इसी प्रकार सभी जोनल रेलों में कुल मिलाकर रेलकर्मियों के लगभग ढ़ाई लाख पद वर्षों से खाली हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या संरक्षा कोटि के पदों की है।

काम और कमाई कम, अधिकारी ज्यादा!

इसके विपरीत, रेलवे में अधिकारियों की संख्या काफी ज्यादा है। खासतौर पर एसएजी (सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड) और हायर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एचएजी) में तो अफसर इफरात हो गए हैं। इनमें अधिकांश संख्या उन अफसरों की है, जो केवल अपनी जन्मतिथि के आधार पर रेल के लिए बिना किसी प्रकार का योगदान किए यहां तक पहुंचे हैं।

अगर उक्त दोनों श्रेणियों के वर्तमान अफसरों के अब तक के सर्विस रिकॉर्ड की गहन समीक्षा की जाए, तो इनमें से ज्यादातर संख्या उन अधिकारियों की मिलेगी, जिनका ओपन लाइन में काम करने का रिकॉर्ड लगभग नगण्य है। ये अब तक अधिकांशतः साइड पोस्टिंग में रहकर बिना कोई निर्णय लिए, बिना कोई फाइल साइन किए यहां तक पहुंचे हैं।

ट्रैफिक, पर्सनल एवं एकाउंट्स डिपार्टमेंट के इफरात और निकम्मे अधिकारियों के नाम सबको पता हैं। परंतु एसएंडटी, स्टोर, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और सिविल इंजीनियरिंग विभागों में ऐसे अधिकारी ज्यादा हैं, जिनकी वास्तव में रेल कोे आवश्यकता नहीं है। यही नहीं, फ्रंट लाइन के बजाय ऑफ लाइन में काम करके एसए और एचए ग्रेड तक पहुंचे अधिकारियों की संख्या भी इन पांच बैक सपोर्टिंग विभागों सहित सभी विभागों में है, जबकि इनके अनुपात में कुल कर्मचारी कम हैं।

जोन-वार अधिकारियों की संख्या में विसंगति

इस सबके अलावा जोन-वार एसए/एचए ग्रेड के अधिकारियों की तैनाती में भी बहुत बड़ी विसंगति देखने को मिलती है। जिस जोन में कुल कर्मचारी संख्या 70-80 हजार भी नहीं है, उसमें 25-30 और इससे भी ज्यादा एसए/एचए ग्रेड के अधिकारियों की तैनाती है, जबकि उक्त कर्मचारी संख्या या इससे ज्यादा के अनुपात में अन्य जोनल रेलों में इन दोनों ग्रेड के अधिकारियों की संख्या बमुश्किल 12-15 है। जबकि गहराई से देखा जाए, तो इनमें काम भी ज्यादा है और फ्रेट लोडिंग तथा अर्निंग भी अधिक अधिकारी संख्या वाले जोनों से अधिक है।

इसका अर्थ यह है कि ज्यादा अधिकारी बैठाकर कम कमाई करने वाले जोनों में अधिकारियों की संख्या अधिक और अनावश्यक है। ऐसे में प्रश्न यह उठते हैं कि जब कम अधिकारियों पर कुछ जोन ज्यादा काम और कमाई कर रहे हैं, तब कम कमाई करने वाले जोनों में ज्यादा अधिकारी क्यों हैं? और वे वहां क्या कर रहे हैं? वे वहां किसके निकम्मेपन के कारण बैठे हैं? अथवा किसकी शह पर बैठे हैं, या बैठाए गए हैं? उन्हें जहां उनकी आवश्यकता है, वहां क्यों नहीं लगाया जा रहा है?

जोन-वार/कमाई-वार आवश्यक है समीक्षा

अतः जोन-वार और कमाई-वार न केवल एसए/एचए ग्रेड के, बल्कि ब्रांच अफसर (बीओ) लेवल के अधिकारियों की भी संख्या की समीक्षा अत्यंत आवश्यक है। न केवल रेल अधिकारियों, बल्कि रेलकर्मियों के कामकाज और आउटपुट की तुलना निजी क्षेत्र के समान स्तर के पदाधिकारियों के कार्यभार और आउटपुट से किए जाने की नितांत आवश्यकता है, क्योंकि वेतन-भत्ते और सुविधाएं निजी क्षेत्र की अपेक्षा सरकारी क्षेत्र में ज्यादा हैं। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि सुरक्षित नौकरी की गारंटी निकम्मेपन, कामचोरी और कदाचार को बढ़ावा देती है।

रेलमंत्री सहित चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड के संज्ञान में यह भी लाए जाने की आवश्यकता है कि कुछ जोनों में जीएम इसलिए भी अपना यथोचित आउटपुट नहीं दे पा रहे हैं, क्योंकि उनके मातहत कुछ तथाकथित प्रधान विभाग प्रमुख (पीएचओडी) न तो जीएम के साथ सहयोग कर रहे हैं, न ही उनके द्वारा कहे/बताए गए काम को यथासमय निपटा रहे हैं। ऐसे कई एचओडी/पीएचओडी के नाम भी यहां उजागर किए जा सकते हैं, मगर रेलमंत्री ही उनकी शिनाख्त करें, फिलहाल यही उचित होगा। एक बोर्ड मेंबर तो जीएम के दैनंदिन कामकाज और अधिकार क्षेत्र में सीधे हस्तक्षेप कर रहा है, रेलमंत्री को इस। पर भी निगाह रखने की आवश्यकता है।

अतः उपरोक्त संपूर्ण परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यह समीक्षा अवश्य और अविलंब की जानी चाहिए तथा अनावश्यक अधिकारियों की छंटनी कर कर्मचारी संख्या के अनुपात में उनके भी पद सरेंडर किए जाने चाहिए। यही समय की मांग भी है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी