राजपुरा-बठिंडा दोहरीकरण प्रोजेक्ट में ₹1700 करोड़ का घाेटाला
डिरेलमेंट की बढ़ती घटनाओं से रेल प्रशासन कोई सबक नहीं ले रहा है। जब तक सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का एक निर्धारित समय पर पीरियोडिकल ट्रांसफर सुनिश्चित नहीं किया जाएगा, तब तक न तो भ्रष्टाचार पर, और न ही यूनियनों की धींगामुश्ती पर, लगाम कसी जा सकेगी!
हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव को पत्र लिखकर पूरे मामले की गहन जांच कराने की मांग की है, इसके चलते संबंधित रेल अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं!
अंबाला मंडल, उत्तर रेलवे के अंतर्गत राजपुरा-बठिंडा सेक्शन में अब पटरी की फिजिकल जांच होने के बाद ही सच सामने आएगा, क्योंकि कांट्रैक्ट द्वारा कराई गई गिट्टी (बलास्ट) की टेस्ट रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह मामला रेल संरक्षा से जुड़ा होने कारण काफी गंभीर है।
राजपुरा-बठिंडा सेक्शन के दोहरीकरण प्रोजेक्ट में अमानक बलास्ट का घोटाला कर यात्रियों की जान संकट में डालने वाले रेल अधिकारियों को किसी की जान की परवाह नहीं है। हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने एक स्थानीय दैनिक में प्रकाशित खबर का संज्ञान लेकर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को चिट्ठी लिखी है। प्रदेश के मंत्री अनिल विज के ऐक्शन मोड में आने से अब कुछ भ्रष्ट रेल अधिकारियों की नाक में नकेल पड़ सकती है। रिजेक्टेड बलास्ट को ट्रैक पर बिछाकर करोड़ों रुपये की पेमेंट प्राइवेट कंपनी को कर दी गई।
जानकारों का कहना है कि ट्रैक और स्लीपर्स को जकड़कर रखने वाली बलास्ट मानक के अनुरूप नहीं है। ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया गया है। अंबाला मंडल के अंतर्गत इस सेक्शन में अब पटरी की फिजिकल जांच होने के बाद ही सच सामने आएगा। यह मामला रेल एवं यात्री संरक्षा से जुड़ा होने के कारण अत्यंत गंभीर है। इसलिए प्रदेश के मंत्री की चिट्ठी के बाद रेल मंत्रालय द्वारा उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) के अतिरिक्त महाप्रबंधक ने भी बलास्ट को रिजेक्ट कर दिया था। करीब 8 माह तक रिजेक्टेड बलास्ट पटरी के किनारे पड़ी रही। बाद में मिलीभगत कर उसे ही ट्रैक पर डालकर करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया। उधर, आरवीएनएल/चंडीगढ़ के अधिकारी इस बलास्ट को मानक के अनुसार बता रहे हैं। टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद ही कंपनी को भुगतान जारी करने की बात भी अब कही जा रही है।
“₹1700 करोड़ के इस डबलिंग प्रोजेक्ट में घोटाला, रिजेक्ट रोड़ी बिछाकर आफत में डाली यात्रियों की जान” शीर्षक से स्थानीय दैनिक में घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद प्रदेश के मंत्री अनिल विज ने रेलमंत्री को पत्र लिखा था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 170 किमी के इस दोहरीकरण प्रोजेक्ट का कार्य आरवीएनएल को सौंपा गया था। अभी भी इस प्रोजेक्ट का कुछ कार्य बाकी है। 11 दिसंबर 2019 को आरवीएनएल के एडीशनल जीएम रविंद्र सिंह ने प्रोजेक्ट मैनेजर को पत्र लिखकर कहा था कि ट्रैक पर बिछाई बलास्ट मानक के अनुरूप नहीं है। एलसी गेट नं. 12 पर राउंड शेप में पड़ी बलास्ट मानक के अनुरूप नहीं पाई गई थी। तब इसकी कुछ फोटो भी मौके से लिए गए थे।
राउंड शेप बलास्ट काे हटाकर मानक के अनुसार बलास्ट डाली जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। तीसरा पत्र 12 दिसंबर 2019 को लिखकर इसमें पिछले पत्रों का भी हवाला दिया गया था। इसके बाद प्राइवेट कंपनी का भुगतान राेक दिया गया और फिर खेल कर लगभग आठ माह बाद इंजीनियरिंग विभाग के एक रिटायर्ड अधिकारी को मोहरा बनाकर भुगतान कर दिया गया। बताते हैं कि यह मामला आरवीएनएल के सीएमडी प्रदीप गौड़ तक भी पहुंचा था, लेकिन फिजिकल जांच फिर भी नहीं की गई।
आश्चर्यजनक किंतु सत्य यह भी है कि उपरोक्त प्रोजेक्ट से संबंधित घोटाले पर हरियाणा के एक मंत्री का ध्यान गया, परंतु इससे भी बड़ा घोटाला रोहतक-मेहम-हांसी रेल लाइन के निर्माण में हुआ है, उस पर अब तक प्रदेश के न किसी मंत्री की और न ही मुख्यमंत्री की, किसी की भी निगाह नहीं गई है। रेलवे बोर्ड और उत्तर रेलवे के सभी संबंधित अधिकारियों को सब पता है। सीवीसी सहित सभी जांच एजेंसियों को इसकी लिखित शिकायतें भी भेजी गई थीं, परंतु कुछ नहीं हुआ! “लूट जब संगठित होती है, तब यही होता है”, यह कहना है जानकारों का!
उल्लेखनीय है कि बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस की 13 जनवरी को हुई भीषण रेल दुर्घटना, वृंदावन-भूतेश्वर सेक्शन, आगरा मंडल में 20 जनवरी की रात को हुआ मालगाड़ी का डिरेलमेंट, और जोधपुर मंडल, उत्तर पश्चिम रेलवे में आज सुबह हुए मालगाड़ी के डिरेलमेंट जैसी घटनाओं से रेल प्रशासन सहित रेल कर्मचारी और अधिकारी कोई सबक नहीं ले रहे हैं।
इसका प्रमुख कारण रेल की जड़ों तक व्याप्त भ्रष्टाचार तो है ही, परंतु उससे भी ज्यादा बड़ा कारण यूनियनों के चलते तमाम रेलकर्मियों और रेल प्रशासन के ढ़ीले-ढ़ाले रवैए के चलते अधिकारियों का एक ही जगह लंबे समय तक जमे रहना है। जब तक सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का एक निर्धारित समय पर बिना भेदभाव, बिना दयाभाव और बिना पक्षपात के पीरियोडिकल ट्रांसफर सुनिश्चित नहीं किया जाएगा, तब तक न तो रेल में भ्रष्टाचार पर, और न ही यूनियनों की धींगामुश्ती पर, लगाम कसी जा सकेगी।
साभार: इनपुट दैनिक जागरण, अंबाला
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