रेलवे कार्मिक सेवा का हुआ कबाड़ा!
“भले ही किसी और सर्विस के अच्छे दिन आए हों, मगर आईआरपीएस के तो अच्छे दिन भी बुरे दिनों में बदल गए हैं!”
ज्यादातर आईआरपीएस अधिकारी निजी स्वार्थों और मनपसंद पोस्टिंग की जुगाड़ में लगे रहते हैं, जबकि अब तक पैरेंट पोजीशन में पहुंचे इस सर्विस के लोग भी इसी सब को बढ़ावा देने में लगे रहे। इसका खामियाजा तो आखिर उनकी ही पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा!
आज सोमवार, 3 जनवरी 2022 को अंडर सेक्रेटरी (ओ एंड एम) रेलवे बोर्ड वी. एन. सिंह ने एएम/एचआर एवं एएम/स्टाफ की वैकल्पिक व्यवस्था से संबंधित एक ऑफिस आर्डर नं. 01/2022 (पत्र सं. 2022/ओएंडएम/7/1) जारी किया है।
इस पत्र में कहा गया है कि एएम/एचआर और एएम/स्टाफ की सेवानिवृत्ति की स्थिति में कार्मिक निदेशालय में इन दोनों पदों से संबंधित फाइलें, लीव आदि सभी मामले पीईडी/आईआर के समन्वय (माध्यम) से निपटाए जाएंगे। इसके अलावा जिन मामलों में रेलवे बोर्ड (सीआरबी) के अप्रूवल की आवश्यकता है, वह भी अगले आदेश तक पीईडी/आईआर के माध्यम से प्रस्तुत किए जाएंगे।
कई वरिष्ठ कार्मिक अधिकारियों का कहना है कि सबसे पहले बोर्ड से मेंबर स्टाफ की पोस्ट खत्म की गई। इसके बाद 1 अप्रैल 2021 को खाली हुई डीजी/एचआर की पोस्ट पर सुनील शर्मा, जीएम/एनएफआर/कंस्ट्रक्शन के दावे के बावजूद यह पोस्ट भी नहीं भरी गई।
अब एएम/स्टाफ की पोस्ट भी पिछले चार महीने से खाली पड़ी है। और अब 1 जनवरी 2022 को एएम/एचआर की पोस्ट भी खाली हो गई है। अब इन सबका काम पीईडी/आईआर देखेगा। अर्थात एक अधिकारी के मत्थे पूरी भारतीय रेल के कार्मिकों का भार मढ़ दिया गया है।
ऐसे में वरिष्ठ कार्मिक अधिकारियों का कहना है कि “इसमें युवा लोगों की भर्ती करके उनका भविष्य खराब करने से तो अब अच्छा यही होगा कि इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस (आईआरपीएस) को ही खत्म कर दिया जाए, क्योंकि अब वह भी सोच रहे हैं कि सिविल सर्विस पास करके और रेलवे में आकर उन्होंने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है।”
उनका यह भी कहना है कि “दुर्भाग्य यह है कि यह सब एक डायनेमिक रेलमंत्री के रहते हो रहा है, जहां केवल इंजीनियर्स की बादशाहत चल रही है।” उन्होंने कहा कि इतना बड़ा अन्याय तो कांग्रेस के राज में भी कभी नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि “भले ही किसी और सर्विस के अच्छे दिन आए हों, मगर आईआरपीएस के तो अच्छे दिन भी बुरे दिनों में बदल गए हैं।”
हालांकि इनमें से कुछ कार्मिक अधिकारियों का यह भी कहना है कि “इस सब के लिए काफी हद तक कार्मिक अधिकारी स्वयं भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर अधिकारी निजी स्वार्थ साधने और मनपसंद पोस्टिंग पाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं, जबकि अब तक पैरेंट पोजीशन में पहुंचे इस सर्विस के लोग भी कैडर के भले के लिए कुछ करने के बजाय इसी सब जोड़-तोड़ को बढ़ावा देने में लगे रहे। इसका खामियाजा तो आखिर उनकी ही पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।”
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