विनय कुमार त्रिपाठी बने सीआरबी! जो हुआ, अच्छा हुआ!

सीआरबी की कुर्सी पर बैठकर सरकार या रेलमंत्री की प्राथमिकताओं पर पूरा ध्यान देते हुए सीआरबी का पूरा जोर आंतरिक व्यवस्था को सुधारने और उत्पादकता बढ़ाने पर होना चाहिए, यही उसकी रणनीति होनी चाहिए, क्योंकि काम से ही आदमी का नाम रोशन होता है तथा पद की गरिमा बनी रहती है!

पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विनय कुमार त्रिपाठी को नया चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड बनाया गया है। शुक्रवार, 31 दिसंबर को लगभग साढ़े तीन बजे एसीसी का अप्रूवल आया और आते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इससे जाहिर है कि रेलकर्मियों और अधिकारियों को यह बात पसंद आई कि एक गैर विवादित अधिकारी – जो कहीं चर्चा में भी नहीं था, सीआरबी बनने के लिए कहीं कोई लॉबिंग या कोई प्रयास भी नहीं कर रहा था – को सीआरबी बनाए जाने से वह अत्यंत खुश हुए हैं।

यह सही है कि श्री त्रिपाठी ने सीआरबी बनने के लिए अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की। एसीसी का नोटिफिकेशन आने के बाद उठी, “उ.प्र. विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार द्वारा लिया गया निर्णय”, जैसी चर्चाओं का भी कोई आधार साबित नहीं हुआ, बल्कि रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में जितने भी जीएम हैं – मेंबर ओबीडी सहित – सबकी कार्यप्रणाली योग्यता क्षमता और पूरी प्रोफाइल जांची-परखी गई, तब श्री त्रिपाठी का चयन फाइनल किया गया, क्योंकि सब में वही एक न्यूट्रल और नॉन-कंट्रोवर्शियल थे।

सूत्रों का यह भी कहना था कि श्री त्रिपाठी की ऐसी कोई महत्वाकांक्षा भी नहीं पाई गई। वह इस रेस में कहीं नहीं थे, और न ही उन्हें किसी प्रकार की कोशिश करते देखा गया। उनकी इसी क्वालिटी पर उनका चयन किया गया। इसके साथ ही यह भी देखा गया कि रेलवे में एईई में ज्वाइन करने से लेकर अब तक एडीआरएम मुंबई सेंट्रल, डीआरएम प्रयागराज, सीईएलई पश्चिम रेलवे, एजीएम पश्चिम रेलवे, एडीशनल मेंबर/रेलवे बोर्ड और जीएम पूर्वोत्तर रेलवे इत्यादि जहां-जहां उन्हें पोस्टिंग मिली, उन्होंने उन सभी पदों की जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभाई।

इसके अलावा, सूत्रों का कहना था कि वह कभी किसी विवाद में नहीं रहे। मिलनसार व्यक्तित्व और सौम्य प्रकृति के चलते उन्होंने कभी कोई महत्वाकांक्षा पाली हो, अथवा किसी खास पद पर पोस्टिंग के लिए कोई कोशिश की हो, ऐसा उनके बारे में कहीं देखने में नहीं आया। उन पर कभी कोई जोड़-तोड़ या लेन-देन करने का आरोप लगा हो, ऐसा भी कहीं पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि कार्य के प्रति निष्ठा और ईमानदारी की उनकी पहचान ही उनके सीआरबी बनने का आधार बनी है।

यह सही है कि श्री त्रिपाठी अपने काम में न केवल सक्षम हैं, बल्कि प्रशासनिक रूप से भी रेलवे की वर्किंग को बखूबी अंजाम देना जानते हैं। 30 दिसंबर की आधी रात को जब एक लाइन का यह मैसेज रेलवे बोर्ड के खास सूत्र से मिला कि “जीएम/एनईआर पहले नंबर पर हैं!” तब एक सुखद अनुभूति यह सोचकर हुई कि “चलो, अच्छा है, कम से कम ‘गुड फॉर नथिंग’ और ‘मॉरली एंड बेसिकली करप्ट एंड करेक्टरलेस’ में से कोई लाइन में नहीं है!” और इसी के अनुरूप जब 31 दिसंबर को दोपहर बाद रिजल्ट सामने आया, तब सभी को ऐसा ही अहसास हुआ। उपरोक्त तमाम तथ्य श्री त्रिपाठी के सरल स्वभाव से तब मेल खाते दिखाई देते हैं जब वह “बधाई स्वीकार करते हुए कहते हैं कि यह कैसे हुआ, हमको तो अभी तक यकीन ही नहीं हो पा रहा है!”

तथापि श्री त्रिपाठी की राह आसान नहीं है। उनके प्रशासनिक कौशल की असली परीक्षा तो अब होने वाली है। बहुत तेजी से अपनी संपूर्ण प्रशासनिक क्षमता का उपयोग करते हुए सबसे पहले उन्हें रेलवे की बिगड़ी हुई आंतरिक व्यवस्था को सुधारना होगा। सर्वप्रथम उन्हें डीआरएम की अटकी हुई पोस्टिंग फाइनल करना है – वह भी जन्मतिथि और 52 साल की क्राइटेरिया को दरकिनार करके सक्षम एवं योग्य अधिकारियों को ही डीआरएम बनाना होगा। इसके साथ-साथ ही उन्हें जीएम पैनल भी यथाशीघ्र तैयार करना है, क्योंकि पूर्व तट रेलवे पहले से ही खाली है। अब पूर्वोत्तर रेलवे भी खाली हो चुकी है। इसके बाद मार्च में मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर और मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक की पोस्ट भी खाली होने जा रही हैं।

इसके अलावा उन्हें वंदेभारत ट्रेनों का प्रोडक्शन शेड्यूल भी गतिमान करना है। इसके साथ ही लंबे समय से एक ही जगह, एक ही शहर में बैठे अधिकारियों को यथाशीघ्र दर-बदर करने पर भी उन्हें विचार करना होगा, क्योंकि इन तालाबों में जमे हुए करप्शन के गंदे पानी से तेज दुर्गंध उठ रही है। इसी तरह ओएस/चीफ ओएस, स्टेनो/टाइपिस्ट, कांफिडेंसियल असिस्टेंट्स स्तरीय कर्मचारियों के मामले में भी कदम उठाना होगा। उद्वेलित सुपरवाइजर कैटेगरी की ग्रुप ‘बी’ का दर्जा देने की मांग को कैसे एडजस्ट करना है, इस पर भी विचार करना पड़ेगा।

टीएडीके रिस्टोर करके हतोत्साहित और लगभग पूरी तरह से उत्साहविहीन हो चुके अधिकारियों का मनोबल बढ़ाना होगा। तभी उनसे आवश्यक उत्पादकता की अपेक्षा की जा सकती है। अब उन्हें अपने परिवार की न केवल देखभाल करनी पड़ती है, बल्कि ड्यूटी पर रहते उनका सारा ध्यान भी उसी पर होता है। यह बहुत कुछ रेलमंत्री को उचित तरीके से कन्विंस करने की उनकी कन्विंसिंग क्षमता और योग्यता पर निर्भर करेगा। रेलवे अस्पतालों की बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के साथ ‘उमीद’ से नाउम्मीद और ‘निवारण’ से निर्वाण को प्राप्त हो रहे रेलकर्मियों को यथाशीघ्र उबारने की कोशिश करनी होगी।

अन्य सभी विभागीय अधिकारियों के समान रेलवे के निरंकुश डॉक्टरों का भी एक निर्धारित समय पर पीरियोडिकल ट्रांसफर सुनिश्चित करना होगा, तभी मेडिकल डिपार्टमेंट में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकेगी। इसके साथ ही सरकार को कन्विंस करके डॉक्टरों को भी 62 साल के बाद तथाकथित क्लीनिकल प्रैक्टिस से हटाकर अन्य सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की भांति 60 साल में अंतिम तौर पर सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए, क्योंकि अब ये सर्वज्ञात है कि यह काम नहीं करते और सीनियर होने के नाते काम करने के लिए मातहत रह चुका इनका कोई जूनियर इनसे कुछ कह नहीं पाता।

अवैध/अनधिकृत वेंडरों/हाकरों को बनाए रखने को हमेशा तरजीह देने और उनके उन्मूलन का योग्य प्रयास न करने वाले आरपीएफ अधिकारियों की मनमानी और धींगामुश्ती पर लगाम कसते हुए मृतप्राय पड़ी ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन को पुनर्जीवित करने के लिए उपयोगी प्रयास करना होगा। तभी आरपीएफ जवानों को इन अहंमन्य आरपीएफ अधिकारियों के उत्पीड़न, अमानवीय व्यवहार और अत्याचार से कुछ राहत मिल पाएगी।

विनोद कुमार यादव, रमेश कुमार झा, राहुल जैन और तत्कालीन रेलमंत्री की चौकड़ी के अन्याय का जो अधिकारी एवं कर्मचारी शिकार हुए हैं, उनके साथ न्याय करने का भी उन्हें प्रयास करना होगा। इसके अलावा किसी घटना-दुर्घटना के लिए सुपरवाइजर के साथ ही उसके ब्रांच अफसर को भी जिम्मेदार ठहराना होगा, तभी डिरेलमेंट, टक्कर, आगजनी जैसी अनपेक्षित रेल दुर्घनाओं में कमी लाई जा सकेगी।

रेलवे की कमाई घट गई है। यह अब सर्वज्ञात है और रेलमंत्री के साथ-साथ कार्यरत रेलकर्मियों एवं अधिकारियों को अपने वेतन तथा पेंशनर्स को अपनी पेंशन की चिंता सताने लगी है। इसके लिए सर्वप्रथम फ्रेट लोडिंग बढ़ानी होगी। हालांकि इस पर ही फिलहाल रेलमंत्री का सबसे ज्यादा जोर है। इसके लिए सर्वप्रथम नॉन-फेयर रेवेन्यू (एनएफआर) की कमाई पर ज्यादा जोर देना होगा, और इसके लिए पार्सल सर्विस को निजी हाथों में सौंपने से परहेज नहीं किया जाना चाहिए। इसके व्यापक लाभ होंगे।

इससे एक तरफ स्पेयर स्टाफ को अन्य आवश्यक कार्यों पर लगाया जा सकेगा, तो दूसरी तरफ इसमें जमीन के नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार और यूनियनों की धींगामुश्ती से छुटकारा मिलेगा। सालभर में जितना राजस्व पार्सल से एक जोनल रेलवे को मिलता है, उससे ज्यादा निजी कंपनियां दे देंगी। यह प्रयोग टिकट बुकिंग, चेकिंग, आरक्षण, कैटरिंग सहित अवैध वेंडर्स को नियंत्रित करने सहित रेल अस्पतालों तथा अन्य विभागों के कार्यों में भी किया जाना चाहिए। इसके पहले सभी रेलगाड़ियों को 23 मार्च 2020 की पूर्ववत स्थिति में लाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

जानकारों का मानना है कि सीआरबी की कुर्सी पर बैठकर सरकार या रेलमंत्री की प्राथमिकताओं पर पूरा ध्यान देते हुए सीआरबी का पूरा जोर रेल की आंतरिक व्यवस्था को सुधारने और उत्पादकता बढ़ाने पर होना चाहिए। यही उनकी रणनीति होनी चाहिए, क्योंकि काम से ही आदमी का नाम रोशन होता है तथा पद की गरिमा बनी रहती है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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