रेलवे के प्रत्येक प्रोजेक्ट की समीक्षा की जाए!
रेलवे प्रोजेक्ट्स से जुड़े हर अधिकारी की कार्यप्रणाली, योग्यता, क्षमता के साथ ही उनकी माली-हालत की भी समीक्षा होनी चाहिए!
जिस तरह रेल परियोजनाएं विलंबित हो रही हैं, उनकी लागत सैकड़ों गुना बढ़ रही है, जनता की गाढ़ी कमाई का लाभ उचित समय पर जनता को ही नहीं मिल पा रहा है, जिस स्तर पर सार्वजनिक राजस्व का अपव्यय हो रहा है, इस सबको देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि रेलवे के प्रत्येक प्रोजेक्ट की कड़ी समीक्षा की जानी चाहिए। यह समीक्षा दो स्तर पर होनी चाहिए।
पहले स्तर पर केंद्रीय गृहसचिव, वित्तसचिव और मेंबर इंफ्रा रेलवे बोर्ड की तीन सदस्यीय समिति यह समीक्षा करे, जिसकी समरी रिपोर्ट केंद्रीय कैबिनेट सचिव के स्तर पर बनाई जाए।
तत्पश्चात कैबिनेट सचिव की उक्त समरी रिपोर्ट दूसरे स्तर की गृहमंत्री, वित्तमंत्री और रेलमंत्री की उच्च स्तरीय समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाए और तीनों मंत्रियों द्वारा इसकी समीक्षा की जाए!
इसके साथ ही हर प्रोजेक्ट से जुड़े हर अधिकारी की कार्यप्रणाली, योग्यता, क्षमता के साथ ही उनके रेलवे में आने से लेकर अब तक की उनकी माली-हालत की भी समीक्षा की जानी चाहिए। उनके आय-व्यय की विवेचना का यह काम अलग-अलग केंद्रीय जांच एजेंसियों को सौंपकर उनके माध्यम से करवाया जाए।
उपरोक्त दो उच्च स्तरों पर दोनों समितियां अपने-अपने विवेक के अनुसार संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित करें, क्योंकि जिस स्तर तक नीचे विभाग प्रमुखों, मंडल रेल प्रबंधकों एवं महाप्रबंधकों को वित्तीय अधिकार सहित अन्य अधिकार सौंपे गए हैं, उस स्तर तक अगर उनका अनुपालन नहीं हो रहा है और तमाम रेलवे प्रोजेक्ट्स की प्रारंभिक लागत बढ़ते-बढ़ते हजारों करोड़ तक पहुंच जाती है, तो इसका कारण केवल संबंधित विभागों के बीच समन्वय की कमी अथवा प्राकृतिक अड़चनें नहीं हैं, बल्कि संबंधित अधिकारियों में इच्छाशक्ति का अभाव, उनकी अक्षमता, अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार है।
यह केवल अकोला-खंडवा-इंदौर के बीच गेज कन्वर्जन प्रोजेक्ट का मामला नहीं है, जिसमें पांच साल से ज्यादा का कीमती समय नष्ट हो चुका है और लागत ₹1400 करोड़ से बढ़कर ₹4500 करोड़ से ऊपर जा रही है, मगर फिर भी प्रोजेक्ट का आधा काम भी पूरा नहीं हो हुआ है, यह देश भर में चल रही वह सभी रेल परियोजनाओं का हैं, जिनमें सरकारी/सार्वजनिक राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है।
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