क्या है एम्पैनल्ड रेफरल अस्पताल का औचित्य?

रेलवे के डॉक्टर अब डॉक्टर कम अफसर ज्यादा हो गए हैं। अब उन्हें रेलकर्मियों का इलाज करने में शर्म और संकोच महसूस होता है। ऐसे में इनका एक ही इलाज है कि हर तीन साल में इनका भी तबादला इंटर जोनल होना चाहिए। तभी इनकी भर्राशाही पर कुछ लगाम लग पाएगी!

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के पीसीएमडी ने 5 नवंबर को एक पत्र सीएमएस, रायपुर को लिखकर हिदायत दी है कि केवल अत्यंत इमरजेंसी केस ही एम्पैनल्ड रेफरल अस्पताल को रेफर किए जाएं।

उन्होंने लिखा है कि बाकी जो गैर इमरजेंसी केसेस हैं, और जिन्हें रेफरल अस्पताल में भेजे जाने की आवश्यकता है, उन्हें केंद्रीय अस्पताल बिलासपुर भेजा जाए।

इसके साथ ही उन्होंने पत्र में यह भी कहा है कि जो भी इमरजेंसी केसेस हैं, उन्हें रेफरल अस्पताल में भेजे जाने से पहले उनकी पूर्व अनुमति ली जानी चाहिए।

अब ऐसे में जब तक पीसीएमडी की अनुमति लेने की कवायद पूरी की जाएगी, तब तक तो जो मरीज पहले से ही सीरियस कंडीशन में वह तो मर ही जाएगा।

कर्मचारियों का कहना है कि यदि रेलकर्मियों को अपने शहर में रेफरल अस्पताल होने के बाद भी सेंट्रल हॉस्पिटल जाने को कहा जाता है, तो इसका अर्थ है कि केवल अधिकारियों और उनके चहेते लोगों को ही रेफरल का लाभ मिलेगा।

जबकि अधिकारीगण अपने तिकड़मों से अपने इलाज का खर्च वहन करने में सक्षम हैं।

उनका कहना है कि ऐसे में रेलकर्मी सेंट्रल हॉस्पिटल में जाकर परेशान होने के बजाय अपने खर्च पर निजी अस्पताल में इलाज करवाना पसंद करेंगे।

वैसे भी अधिकतर लोग निजी अस्पतालों में ही जाकर छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज कराते हैं।

रेलवे अस्पताल की भर्राशाही से परेशान होकर आखिर रेलकर्मी करें तो क्या करें?

ऐसे में रेलवे के इन सफ़ेद हाथियों (अस्पतालों) को पालने का क्या औचित्य है?

उनका कहना है कि रेलवे के डॉक्टर अब डॉक्टर कम अफसर ज्यादा हो गए हैं। अब उन्हें रेलकर्मियों का इलाज करने में शरम और संकोच महसूस होता है। ऐसे में इनका एक ही इलाज है कि हर तीन साल में इनका भी तबादला इंटर जोनल होना चाहिए। तभी इनकी भर्राशाही पर कुछ लगाम लग पाएगी।