किसके पास है रेलवे बोर्ड की असली सत्ता!

रेलमंत्री, सीवीसी, डीओपीटी और पीएमओ की आखिर क्या मजबूरी है कि निर्धारित समय-सीमा और नियम को दरकिनार कर कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी आर. के. झा को पीईडी/विजिलेंस के पद पर बनाए रखा गया है?

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) की अंदरूनी राजनीति बहुत गजब की है। यहां वह ताकतवर नहीं है, जो सीआरबी की कुर्सी पर विराजमान है, बल्कि वह ज्यादा ताकतवर है, जो रेल भवन के कमरा नंबर 529 में बैठा है।

इस पर भी अगर कोई सीआरबी निहायत निकम्मा, ना-लायक और अकर्मण्य हो – जो कि वर्तमान में है – तो फिर कहना ही क्या!

जिस प्रकार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री एक कठपुतली है, और असली सत्ता सेनाप्रमुख कमर जावेद बाजवा के हाथ में है, उसी प्रकार चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड (सीआरबी) सुनीत शर्मा मात्र एक रबर स्टैंप हैं और भारतीय रेल की असली सत्ता पीईडी/विजिलेंस आर. के. झा के पास है।

शायद यही वजह है कि चालू वित्तीय वर्ष की सीक्रेट लिस्ट आज तक फाइनल नहीं हुई और अंततः उसे इस साल के लिए पूरी तरह से स्थगित कर दिया गया है। इसमें पीईडी/विजिलेंस को सीआरबी का भी पूरा सहयोग मिला है, इसीलिए तो वह उन्हें ज्यादातर समय अपने चैंबर में ही बैठाए रखते हैं।

कौन और कब जीएम बनेगा, किसे फँसाकर रोका जाएगा, किस पर अनुग्रह होगा, किस-किस की फाइलें उठानी हैं, किनकी फाइलें रोकनी हैं, और उन्हें कब तक रोककर रखना है, किस ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा, किसे ठेका मिलेगा, यह सब रेल भवन के कमरा नंबर 529 में तय होता है।

यह सर्वज्ञात है कि इस कमरा नंबर 529 में पीईडी विजिलेंस रमेश कुमार झा साहेब बैठते हैं। ऐसा लगता है कि यह कुर्सी सीवीसी, डीओपीटी और पीएमओ ने उनके नाम कर दी है, क्योंकि तमाम शिकायतों-नियमों के बावजूद निर्धारित कार्यकाल का कोई नियम-कानून उन पर लागू नहीं हो रहा है।

यहां तक कि सीवीसी में इनके विरुद्ध लिखित शिकायत दर्ज है। यह बात अलग है कि तमाम प्रयासों के बाद ही सीवीसी में इनके विरुद्ध उक्त शिकायत दर्ज हुई है, वरना वहां भी भ्रष्टों को फेवर करने वाले जोड़-तोड़बाजों की कोई कमी नहीं है।

उल्लेखनीय है कि हर साल जनवरी में प्रत्येक सरकारी अधिकारी और कर्मचारी को अपनी अर्जित संपत्ति का ब्यौरा घोषित करके सरकार के पास जमा कराना पड़ता है। यह नियम है और इस नियम का पालन नहीं करने पर कड़े दंड का प्रावधान भी है।

परंतु रमेश कुमार झा जैसे महान खिलाड़ियों पर ऐसा कोई नियम-कानून लागू नहीं होता, क्योंकि इन्हें सत्ता और शासन दोनों प्रतिष्ठानों को एक साथ साधने में महारत हासिल होती है। सब जानते हैं कि यह ‘महारत’ पैसे की बदौलत हासिल होती है, जो कि ऐसे लोगों के पास इफरात में आता है।

उल्लेखनीय है कि रमेश कुमार झा उर्फ आर. के. झा ने हाल ही में अपनी संपत्ति का जो तीन साल का ब्यौरा जमा कराया है, वह न केवल गलत है, बल्कि सरकार की आंखों में धूल झोंकने वाला है।

जानकारों का कहना है कि “इसमें उन्होंने कई महंगी संपत्तियों का उल्लेख नहीं किया है, जबकि उनके पास कई अन्य संपत्तियां बेनामी हैं। यदि इस बात पर भरोसा न हो, तो सरकार इनकी और इनके परिवार सहित नाते-रिश्तेदारों की सभी संपत्तियों का जमीनी सत्यापन करवाए!”

उनका कहना है कि जोड़-तोड़, उगाही और भ्रष्टाचार के तमाम विवादों में लगातार विवादित चल रहे आर. के. झा में ऐसी क्या खास बात है, या फिर सीआरबी की कोई नब्ज दबी है, अथवा उनमें ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं कि रेलमंत्री, सीवीसी, डीओपीटी और पीएमओ इत्यादि निर्धारित समय-सीमा और नियम-कानून को दरकिनार कर कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उन्हें पीईडी/विजिलेंस के पद पर बनाए हुए हैं? क्रमशः

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