क्या होनी चाहिए विजिलेंस की अनुशासनहीनता की सजा?

“रेलवे बोर्ड विजिलेंस की निरंकुशता पर क्या रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव लगाएंगे लगाम?”

रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जीएम पैनल के एक वरिष्ठ अधिकारी के केस में मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (#MTRS) और मेंबर फाइनेंस (#MF) ने लिखा कि “इस केस में कोई विजिलेंस एंगल नहीं है।”

तथापि रेलवे बोर्ड के एक मामूली विजिलेंस इंसपेक्टर ने भारत सरकार के दो सचिव स्तर के अधिकारियों को ओवर रूल कर दिया।

“ऐसी अनुशासनहीनता की क्या सजा होनी चाहिए? क्या एक सामान्य विजिलेंस इंस्पेक्टर, अनुशासनिक अधिकारी (डिसिप्लिनरी अथॉरिटी – डीए) से बड़ा है? क्या वह डीए की फाइंडिंग्स अथवा ओपीनियन को ओवर रूल कर सकता है? यदि नहीं, तो मंत्री को ऐसी स्थिति में क्या कदम उठाने चाहिए”, यह सवाल रेलवे बोर्ड के हर गलियारे में चर्चा का विषय हुए हैं।

#Railwhispers द्वारा ट्विटर और सोशल मीडिया पर यह खबर डालते ही बहुत से रेल अधिकारियों और कर्मचारियों ने लिखा कि “जब तक विजिलेंस इंस्पेक्टरों पर ऐसी मनमानी के लिए उचित अनुशासनिक कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक ये सुधरने वाले नहीं हैं। सैकड़ों रेलकर्मी और अधिकारी इनकी मनमानी के भुक्तभोगी हैं और इसी के खिलाफ कोर्टों में सैकड़ों मामले लंबित हैं। अगर रेल प्रशासन और रेलमंत्री इस मामले में आवश्यक कदम उठाते हैं, तो रेल की प्रगति में बाधक इन दुष्ट तत्वों को नियंत्रित किया जा सकता है।”

एक रिटायर्ड प्रिंसिपल एचओडी ने लिखा, “यह विजिलेंस का स्थापित सत्य है, कुछ अपवादों को छोड़कर, क्योंकि विरले ही वरिष्ठ विजिलेंस अधिकारी उसे ओवररूल करने की हिमाकत करते हैं। सामान्यतया विजिलेंस इंस्पेक्टरों के अहं के टकराव और मनमानी तथा पूर्वाग्रह से बनाए गए विजिलेंस मामलों के विरुद्ध प्रशासनिक निर्णय न लेने का साहस, प्रशासनिक और अनुशासनिक अधिकारियों को कमजोर और बौना बनाता है।”

इसके अलावा एक अन्य कार्यरत विभाग प्रमुख (एचओडी) ने लिखा, “Vigilance Officers simply write that reply is unacceptable but why? No one question it from bottom to top even UPSC.”

“In a case, tender schedule was vetted by finance but no action against them. Simply written that ‘what you have put them they vetted, so they are not guilty.’ It is communicated by Railway Board. Even not questioning then why rule for vetting has been made?” He writes.

कुछ वरिष्ठ रेल अधिकारियों ने इस बात की भी आशंका जताई है कि संबंधित विजिलेंस इंस्पेक्टर ने यह काम अपने तौर पर नहीं, बल्कि पीईडी/विजिलेंस के कहने पर या उनकी शह पाकर ही किया होगा, क्योंकि इससे पहले भी वह जीएम पैनल के पांच वरिष्ठ अधिकारियों को अटकाकर उनसे पहले स्वयं जीएम बनने की कोशिश कर चुके हैं।

इन अधिकारियों का यह भी कहना है कि हालांकि पीईडी/विजिलेंस की उक्त तमाम कोशिशें पहले भी बेकार साबित हुई थीं और अब यह उनकी अंतिम कोशिश रही है, तथापि अब भी इनका कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि अब उनकी जीएम के लिए आवश्यक मियाद खत्म हो गई है।

एक अन्य वरिष्ठ रेल अधिकारी का कहना है कि “यह समझ से परे है कि पीईडी/विजिलेंस को निर्धारित कार्यकाल से ज्यादा समय तक रेलवे विजिलेंस की प्रमुख बनाए रखने की आखिर रेलमंत्री और चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड की क्या मजबूरी है? उनका कहा कि सीवीसी भी इस अनियमितता और अपनी गाइडलाइंस को रेल मंत्रालय द्वारा इग्नोर करने की धृष्टता की अनदेखी आखिर क्यों कर रहा है?”

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