समय पर निर्णय न लेने से होता है व्यवस्था का अगणित नुकसान!

“आदेश के अनुपालन में कोताही के मामलों में जीएम को भी बिना किसी हिचकिचाहट के संबंधित अधिकारियों को “डिस्प्लेजर नोट” देने सहित “कारण बताओ नोटिस” थमाने में देरी नहीं करनी चाहिए।”

कुछ जोनल रेलों द्वारा अभी भी पार्सल स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। जबकि कुछ जोनल रेलों ने इन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया है।

जबकि कुछ जोनल रेलों के अधिकारी इन्हें बंद करने के बारे में अभी-भी आगे-पीछे कर रहे हैं और निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। अर्थात अपनी अकर्मण्यता और अयोग्यता के चलते अनिर्णय का शिकार हैं।

यहां तक कि बताते हैं, जीएम के कहने के बावजूद कुछ रेलों के संबंधित वाणिज्य अधिकारी इस बारे में जीएम के आदेश की अनदेखी कर रहे हैं।

जानकारों ने इसका कारण बताते हुए कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि संबंधित वाणिज्य अधिकारियों का निहितस्वार्थ उनके निर्णय के आड़े आ रहा है। जबकि एक इंजन पर प्रतिघंटा 10-12 हजार रुपये की लागत आ रही है। बाकी खर्चों को भी अगर जोड़ा जाएगा, तो यह पार्सल स्पेशल चलाना पूरी तरह घाटे का सौदा साबित होगा।

उन्होंने बताया कि 5-6 वीपी की पार्सल स्पेशल चलाने का कोई औचित्य नहीं है। एक महीने में अगर ऐसी 8-10 पार्सल स्पेशल चलाई जा रही हैं, तो उनसे रेलवे को कुल-मिलाकर लगभग 50-60 लाख रुपये की अर्निंग हो रही है।

उनका कहना है कि प्रति पार्सल स्पेशल संबंधित वाणिज्य अधिकारियों को 15 से 20 लाख रुपये की कमाई हो रही है। यही उनका निहित स्वार्थ है, जो उन्हें अनिर्णय का शिकार बनाए हुए है।

उनका कहना है कि जिन कुछ जोनल रेलों द्वारा यह पार्सल स्पेशल चलाई जा रही हैं, वहां के जीएम ने संबंधित वाणिज्य अधिकारियों को इन्हें बंद करने का आदेश लगभग महीने भर पहले दिया था, परंतु वह जीएम के आदेश का पालन करने में अब तक हीलाहवाली कर रहे हैं।

इसके अलावा, कुछ जोनल रेलों में कुछ पीएचओडी ऐसे भी हैं, जो जीएम के आदेश के बावजूद समय पर न कोई निर्णय लेते हैं, और न ही संबंधित फाइलें क्लीयर करके भेजते हैं। इस संदर्भ में जानकारों का स्पष्ट कहना है कि ऐसे विभाग प्रमुखों (पीएचओडी) को तुरंत रिप्लेस करने का अधिकार जीएम को होना चाहिए।

उनका यह भी कहना है कि “आदेश के अनुपालन में कोताही के मामलों में जीएम को भी बिना किसी हिचकिचाहट के संबंधित अधिकारियों को “डिस्प्लेजर नोट” देने सहित “कारण बताओ नोटिस” थमाने में देरी नहीं करनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि जब तक जीएम/डीआरएम सहित ऊपर बैठे सभी अधिकारी “कारपोरेट कल्चर” अपनाकर “प्रोफेशनल” तरीके से समयानुसार डिसीजन नहीं लेंगे, तब तक रेल की कार्य-पद्धति और कार्य-संस्कृति में सुधार संभव नहीं होगा।

इस सबके अलावा, जानकारों ने यह भी सुझाव दिया कि सभी रेलों में पार्सल का निजीकरण कर दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि किसी एक जोन की पार्सल अर्निंग अगर ₹150 करोड़ सालाना है, और कोई निजी पार्टी अगर ₹155 – ₹160 करोड़ देने को तैयार है, तो यह सारा काम निजी पार्टी को ओपन टेंडर के माध्यम से सौंप दिया जाना चाहिए।

उन्होंने इसके बहुत सारे फायदे भी बताए हैं। जैसे – सर्वप्रथम प्रशासन का बोझ कम हो जाएगा। स्टाफ का उपयोग अन्य आवश्यक कार्यों के लिए अन्य स्थानों पर किया जा सकेगा। लंबे समय तक स्टाफ का एक ही जगह गढ़ बनाए रखना खत्म होगा। ट्रांसफर/पोस्टिंग में हो रही विसंगतियों और भ्रष्टाचार से छुटकारा मिलेगा। भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों के चलते प्रशासन की अनावश्यक परेशानी कम हो जाएगी। यूनियनों की दखलंदाजी और अवैध कमाई पर अंकुश लगाया जा सकेगा, इत्यादि।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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