क्या सरकार की नीति और नीयत साफ है? आखिर क्यों दिया जाता है चुके हुए नौकरशाहों को सेवा विस्तार?

पूर्व रेलमंत्री द्वारा संसद में दिए गए उत्तर से स्पष्ट है कि कोई भी रेल अधिकारी बोर्ड मेंबर के किसी भी पद पर जा सकता है। उसका कैडर इसमें बाधा नहीं है। तब प्रश्न यह उठता है कि फिर मोहंती को मेंबर/ओबीडी कैसे बनाया गया? और अब मेंबर फाइनेंस में नरेश सालेचा को सेवा विस्तार क्यों दिया जा रहा है?

सरकार को या तो स्वयं अपने ऊपर भरोसा नहीं है, या फिर अपनी बनाई नीतियों पर विश्वास नहीं रहता। अगर ऐसा नहीं है, तो प्रश्न यह उठता है कि ट्रांसफार्मेशन और रिफार्मेशन के नाम पर वर्षों से परीक्षित (टाइम टेस्टेड) रेल व्यवस्था की जो कथित उखाड़-पछाड़ की गई है, उस पर उचित अमल क्यों नहीं किया जा रहा है? कैबिनेट के फैसले और संसद में दिए गए उत्तर को धरातल पर कार्य-व्यवहार में क्यों नहीं उतारा जा रहा है?

ऐसी क्या अनिवार्यता आ गई? योग्य और सक्षम लोगों का इतना अकाल कहां पड़ गया है कि चुके हुए बाबुओं को सेवा विस्तार देना अथवा रिएंगेज करना सरकार को आवश्यक लग रहा है? क्या सरकार की इस “उठल्लू नीति” से योग्य, सक्षम, निष्ठावान और कार्यक्षम अधिकारियों का हक नहीं छीना जा रहा है? क्या वे हतोत्साहित नहीं हो रहे हैं? उनकी प्रगति-पदोन्नति बाधित नहीं हो रही है? क्या सरकार की नीति और नीयत वास्तव में साफ है? अथवा सरकार में चापलूसों और कदाचारियों को ही तरजीह मिलती रहेगी?

यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो व्यवस्था में तब हलचल पैदा करते हैं जब सरकार द्वारा योग्य, कार्यक्षम और निष्ठावान लोगों को दरकिनार करके निकम्मे, नाकाबिल और कदाचारी लोगों का एंगेजमेंट, रिएंगेजमेंट या सेवा विस्तार किया जाता है।

रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार इसी 30 सितंबर को रिटायर होने वाले नरेश सालेचा, मेंबर फाइनेंस, रेलवे बोर्ड के सेवा विस्तार का प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजा गया है।

उल्लेखनीय है कि सालेचा को आउट ऑफ टर्न बोर्ड मेंबर बनाया गया था। अब आउट ऑफ टर्न अर्थात अनावश्यक रूप से उन्हें सेवा विस्तार भी दिया जा रहा है। यह कहां तक उचित है? और क्यों उचित है? सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए।

हालांकि सूत्रों ने यह कंफर्म नहीं किया है कि सालेचा को सेवा विस्तार दिया जा रहा है, या फिर रिएंगेज किए जाने का प्रस्ताव है। मगर जानकारों का कहना है कि प्रस्ताव जो भी हो, यह अनावश्यक है और इससे जाहिर है कि सरकार को निष्ठावान, कार्यक्षम और भरोसेमंद नहीं, बल्कि जी-हजूरी करने वाले और कमाकर देने वाले “बाबू” चाहिए।

उनका यह भी कहना है कि चूंकि रेलमंत्री जोधपुर से हैं और नरेश सालेचा भी जोधपुर से ही संबंधित हैं। इसलिए इस मामले में दोनों का “जोधपुर कनेक्शन” जोड़ा जा रहा है। मगर जो भी हो, अगर ऐसा है, तो इससे गलत संदेश जाएगा और रेलमंत्री के साथ-साथ सरकार की भी छवि खराब होगी!

इसके अलावा जिन अंजली गोयल, आईआरएएस को आउट ऑफ टर्न जीएम/बीएलडब्ल्यू बनाया गया था, वह भी अब आउट ऑफ टर्न बोर्ड मेंबर बनने के लिए उतावली हो रही हैं। इसीलिए खबर है कि वह बार-बार दिल्ली दरबार के चक्कर लगा रही हैं।

जानकारों का कहना है कि “सरकार के नीतिगत फैसले को देखते हुए सबसे पहले तो यही कहना पड़ेगा कि जब बोर्ड को समेटकर ‘आईआरएमएस’ लागू कर दिया गया, तब जो वरिष्ठता क्रम में ऊपर होगा, उसे पांचों बोर्ड मेंबर्स में से किसी भी एक पद पर बैठाया जा सकता है। ऐसे में मेंबर/ओबीडी के पद पर मोहंती को नहीं, बल्कि रवीन्द्र गुप्ता को होना चाहिए था।”

इसी प्रकार, जब आईआरएमएस का निर्णय केंद्रीय कैबिनेट से हो चुका था, और यह लागू होने की प्रक्रिया में था, तब नरेश सालेचा को भी मेंबर फाइनेंस नहीं बनाया जाना चाहिए था। अब जब वह रिटायर हो रहे हैं, तो सेवा विस्तार का जुगाड़ निकाल लाए हैं और इस तरह एक वरिष्ठ जीएम की पदोन्नति का मार्ग अवरूद्ध कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि लोकसभा सांसद सुशील कुमार सिंह द्वारा 21.09.2020 को रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में कहा था –

Railway Board has recently been re-organised on functional line headed by Chairman, Railway Board & Chief Executive Officer (CEO) and comprising 4 other Members, namely –

1. Member (Infrastructure), Railway Board.
2. Member (Traction & Rolling Stock – T&RS) Railway Board.
3. Member (Operation & Business Development), Railway Board.
4. Member (Finance), Railway Board.

“The posts of Members of the Board are now open to all eligible Officers of Railways regardless of Organised Service Cadres of which they belong.”

The objective of reorganization of Railway Board on functional line is to put Railways firmly on the path of modernization by energizing the cadre of Railway Officers to work unitedly and single-mindedly with a vision of transform to Indian Railways into a world class Railway system.

Alternate mechanism and committee of Secretaries have been formed to consider and finalise the modalities of formation of Indian Railway Management Services (IRMS).

Government has set a time frame of one year from 24.12.2020 to complete the process of unification of all Group ‘A’ into one Service.

संसद में पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल द्वारा दिए गए उपरोक्त उत्तर से स्पष्ट है कि अब कोई भी रेल अधिकारी उपरोक्त पांचों बोर्ड मेंबर्स के किसी भी पद पर जा सकता है। अब उसका कैडर इसमें कोई बाधा नहीं है। तब सरकार से यह पूछा जाना आवश्यक हो जाता है कि फिर मोहंती को मेंबर/ओबीडी कैसे बनाया गया? और अब मेंबर फाइनेंस में नरेश सालेचा को सेवा विस्तार क्यों दिया जा रहा है? जबकि उनसे वरिष्ठ, योग्य और निष्ठावान अधिकारी उपलब्ध हैं!

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