संवेदनशील पदों से ट्रांसफर को लंबित रखने का खेल

जोनल मान्यताप्राप्त संगठनों के दबाव में दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशनों द्वारा बारी-बारी से चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर संवेदनशील पदों से कर्मचारियों का ट्रांसफर लंबित करने का दबाव बनाया जा रहा है।

यह खेल पिछले दो साल से लगातार चल रहा है। दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशन बारी-बारी से इस संबंध में सीआरबी को पत्र लिख रहे हैं।

कारण या बहाना केवल कोविड प्रोटोकॉल का बनाया जा रहा है। जबकि इस दौरान बाकी कर्मचारियों सहित आरपीएफ जवानों को लगभग जबरन दर-बदर किया गया है।

देश भर में सारी चीजें खुल गई हैं। सारा कामकाज चल पड़ा है। कहीं किसी को अब कोरोना का भय नहीं रह गया है और न ही किसी को वह सता रहा है। फिर केवल संवेदनशील पदों पर बैठे कर्मचारियों को ही कोरोना कैसे लग रहा है? जबकि उन्हें केवल वहीं के वहीं शिफ्ट होना है!

जानकारों का कहना है कि रेल में दोनों फेडरेशन/यूनियन पहले कमाऊपूतों को अपना पदाधिकारी बनाते हैं!

फिर लंबे समय तक संवेदनशील पदों पर बनाए रखकर उन्हें कामचोरी और करप्शन का मास्टर बनने का अवसर प्रदान कर शेल्टर मुहैया कराते हैं!

फिर बार-बार उसे आगे बढ़ाने के लिए सीआरबी को पत्र लिखते हैं! बार-बार यही किया जा रहा है!

उनका कहना है कि अधिकारी ट्रांसफर हो रहे हैं। वे नई जगह जाकर ज्वाइन कर रहे हैं। अन्य कर्मचारी ट्रांसफर हो रहे हैं, वे भी जाकर अपनी नई जगह कामकाज संभाल रहे हैं।

केवल संवेदनशील पदों पर लंबे समय से बैठे कर्मचारियों को ही कोरोना सता रहा है। इसके लिए वे यूनियनों तथा फेडरेशनों पर दबाव बनाकर अपना ट्रांसफर लंबित कराते जा रहे हैं। और रेल प्रशासन आंखें बंद कर उनके इस तिकड़म में भागीदार बन रहा है।

यही नहीं, रेल प्रशासन अर्थात सीआरबी भी उनके इस बचकाने कारण को अनावश्यक तवज्जो देकर उन्हें संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। जबकि इस प्रक्रिया से स्पष्ट है कि सीवीसी की गाइडलाइंस का अनुपालन लंबित करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जिन कर्मचारियों को फेडरेशन और यूनियन कोरोना का रोना रोकर संरक्षण प्रदान कर रही हैं, उन्हें कहीं बहुत दूर या किसी दूसरे डिवीजन अथवा दूसरी रेलों में नहीं जाना है, बल्कि वहीं एक डिपो से दूसरे डिपो में स्थानीय स्तर पर ही शिफ्ट होना है। उनकी केवल कुर्सी बदली जानी है।

यह तथ्य रेल प्रशासन को भी बखूबी पता है। तथापि यूनियन और फेडरेशन सब कुछ जानबूझकर इसलिए इनका ट्रांसफर लंबित करवा रहे हैं, क्योंकि यह उनके कमाऊपूत हैं और रेल प्रशासन की इसमें उनके साथ सांठगांठ है। इसीलिए सीवीसी की गाइडलाइंस और स्वयं रेलवे बोर्ड के नियम-कानून सब ताक पर हैं।

रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को यूनियनों/फेडरेशनों और रेल प्रशासन की इस जोड़-तोड़ का गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेते हुए इसे रोकने हेतु गंभीर कदम उठाना चाहिए।

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