डीजल इंजनों से अचानक इतनी घृणा क्यों?

रेलवे बोर्ड ने शुक्रवार, 6 सितंबर 2021 को एक पत्र जारी करके कहा है कि “आल्को” के सभी डीजल लोकोमोटिव्स को बिना ट्रैफिक ट्रांसपोर्टेशन डायरेक्टोरेट की सहमति या अनुमति लिए कंडम किया जाए। इसके लिए रेलवे बोर्ड ने जोनल रेलों को पूरा अधिकार दिया है।

जबकि एचएचपी लोकोमोटिव्स की ग्राउंडिंग के लिए ट्रैफिक ट्रांसपोर्टेशन डायरेक्टोरेट की कंसल्टेशन आवश्यक होगी।

इससे पहले गत वर्ष 7 अक्टूबर 2020 और 25 नवंबर 2020 को रेलवे बोर्ड ने डीजल लोकोमोटिव्स को कंडम घोषित करने की नीति का पुनरीक्षण करते हुए जोनल रेलों के प्रमुख मुख्य परिचालन प्रबंधकों (पीसीओएम्स) को अधिकृत किया था कि वे मेनलाइन डीजल लोकोमोटिव्स की कोडल लाइफ का रिव्यू करके उनको सरप्लस घोषित करें।

डीजल इंजनों को रेल सेवा से हटाए जाने का यह काम इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि भारतीय रेल की सभी ब्रॉड गेज लाइनों का इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है। ऐसा रेलवे बोर्ड ने अपने पत्र में कहा है।

इसके बाद पीसीओएम/उत्तर रेलवे ने 24 जनवरी 2021 एक पत्र लिखकर रेलवे बोर्ड से कहा कि डीजल लोकोमोटिव्स को सरप्लस घोषित करने के लिए रेलवे बोर्ड अपने तत्संबंधी निर्देशों में ट्रैफिक ट्रांसपोर्टेशन डायरेक्टोरेट का मैनडेटरी अप्रूवल सुनिश्चित करे।

तत्पश्चात “न इसकी, न उसकी, और न ही अपनी” यानि इस हजारों करोड़ की रेल संपत्ति के कंडेम्नेशन के लिए किसी की भी जिम्मेदारी सुनिश्चित न करते हुए “जोनल रेलों” पर सारी जिम्मेदारी डालकर रेलवे बोर्ड निश्चिंत हो गया।

#डीजल इंजन एवं डीजल टेक्नोलॉजी के प्रति नफरत कुछ इस कदर हावी हो गई है रेलवे के विभिन्न विभागों के दिमाग में कि अब किसी को #ट्रैफिक डिपार्टमेंट से पूछने की भी आवश्यकता नहीं समझी जा रही है।

क्या यह हजारों करोड़ की संपत्ति ऐसे ही नष्ट कर दी जाएगी?

जनता की गाढ़ी कमाई से बनी इस हजारों करोड़ की संपत्ति के उपयोग का क्या अब कोई विकल्प नहीं रह गया है?

क्या इसे नष्ट कर देने के अलावा इसका अन्य कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं बचा है?

क्या इसे किसी मित्र देश को देकर आपसी सौहार्द नहीं बनाया जा सकता?

माना कि नई परिस्थितियों के मद्देनजर और पर्यावरण के दृष्टिकोण से डीजल टेक्नोलॉजी अब समयबाह्य हो रही है। तथापि सड़कों पर बढ़ते जा रहे डीजल वाहनों का क्या? क्या उनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा?

तब क्या वास्तव में ही यही एकमात्र कारण है इसे नष्ट करने का? कहीं इसके पीछे मल्टीनेशनल कंपनियों की कोई लॉबी कोई तिकड़म तो नहीं कर रही है?

बहरहाल, रेलवे बोर्ड का मुखिया जब डीजल अर्थात मैकेनिकल वाला हो, तब यह सब होना और भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है।

#Diesel #Engine #IndianRailway