आरपीएफ: डिसिप्लिन खुद बिगाड़कर सुधारने की बात करोगे कैसे!

मूर्खों के सम्मेलन में ज्ञानी अलग दिखाई देता है!
क्या कहूं पढ़े-लिखों की वह मूर्खता को भी ढ़क लेता है!
लेकिन इस कलयुग में कुछ अलग बात है!
यहां पढ़ा-लिखा ही मूर्खों जैसा व्यवहार करता है!

आरपीएफ की वर्तमान स्थिति:

बिन बरसात के मेंढ़क टर-टरा रहे हैं।
अभी डीजी में किसी की प्रॉपर पोस्टिंग नहीं हुई,
लोग फिर भी बेमतलब के गीत गा रहे हैं।
खोपड़ी में घुन लग गया है,
ईमानदारी का चोला पहने लोग,
बीवी से कहकर सब कुछ मंगा रहे हैं।
बड़े-बड़े ईमानदारी के कसीदे पढ़ते थे जो लोग,
भ्रष्टाचार की दूकान घर के पीछे लगा रहे हैं।
पत्नियों के माध्यम से सब कुछ,
कुछ खास लोगों को ही बता रहे हैं!

आरपीएफ पोस्ट इंचार्ज:

सच बहुत कड़वा होता है,
ये आरपीएफ में भी है,
पोस्ट इंचार्ज 50वें बैच के लगे हैं बहुत से,
पर 42, 45 बैच वाला काम ज्यादा जानता है,
पर वह लूप लाइन में है पड़ा हुआ,
जो काम जानता है वह काम करेगा,
लेकिन चापलूसी 50 वाला ज्यादा करेगा,
दाम भी ज्यादा वो ही देगा,
तब चोरी रुकेगी कैसे,
डिसिप्लिन खुद बिगाड़कर सुधारने की बात करोगे कैसे!

हम सोतों को जगाते हैं –

हम सोतों को जगाते हैं,
नहीं जागते तो हिलाते हैं!
उनको हम दफनाते हैं,
जो हिलने के बाद भी नहीं जागते हैं!
इसलिए हम “रेलसमाचार” के नाम से जाने जाते हैं!

संप्रति: एक आरपीएफ अधिकारी की कलम से!

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