नए रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव का स्वागत है: सकारात्मक माहौल बनाने और रेल की छवि सुधारने के लिए लेने होंगे कुछ अप्रिय निर्णय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलमंत्री को बदलकर यह दर्शा दिया है कि उन्हें न सिर्फ काम और आउटपुट से मतलब है, बल्कि जन-भावनाओं से भी उनका पूरा सरोकार है। रेल मंत्रालय सीधे जनता से जुड़ा मंत्रालय है, जिससे लगभग तीन करोड़ लोग दैनंदिन तौर पर इससे सीधे संपर्क में आते हैं। इसकी हर छोटी-बड़ी गड़बड़ी पर सरकार की छवि बनती-बिगड़ती है। दुर्भाग्य से सरकार के दोनों टर्म में अब तक हुए रेलमंत्रियों ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को ध्यान में नहीं रखा। परिणाम सामने है। अब प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बार फिर न सिर्फ युवा, बल्कि हर प्रकार से योग्य मंत्री रेल मंत्रालय को दिया है। 136 करोड़ देशवासी और तीन करोड़ दैनंदिन रेलयात्री उम्मीद करते हैं कि नए युवा रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव न केवल रेल की छवि सुधारेंगे, बल्कि उनकी अपेक्षाओं पर भी खरे उतरेंगे!

रेल मंत्रालय में नए रेलमंत्री को लाकर प्रधानमंत्री ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि वे रेल मंत्रालय को भी संचार मंत्रालय  और आईटी मंत्रालय की तरह ही कारपोरेटाइजेशन की तरफ ले जाना चाहते हैं। पीएम ने रेल की नौकरशाही की जटिलता को अच्छी तरह समझकर एक ऐसे आदमी को भेजा है, जो तकनीकी पृष्ठभूमि से भी है, सिविल सर्विस से भी है और एंटरप्रेन्योर भी है। व्यवहार में योग्यता के हिसाब से इससे बेहतर विकल्प रेलवे को नहीं मिल सकता था।

टेक्निकल वर्सेज सिविल सर्विसेज का द्वंद समझते हुए रेल को एक विशुद्ध फायदेमंद व्यावसायिक और जनोन्मुख संस्था  बनाने का प्रयास करना सबसे दुरूह काम रहा है। इसमें पीयूष गोयल और सुरेश प्रभु जैसे मंत्री पूरी तरह फेल रहे हैं। लेकिन नये मंत्री से रेल के लिये एक नए युग की शुरुआत की अपेक्षा की जा सकती है।

नये रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को एक अच्छे माहौल के साथ निम्न बातों का ध्यान रखते हुए अपने कार्यकाल का श्रीगणेश करना चाहिए –

1. विश्वास बहाल कर उत्साह का संचार करना होगा

पीयूष गोयल की लीगेसी में वर्तमान रेलमंत्री को एक बहुत ही नकारात्मकता से भरा हुआ हतोत्साहित वातावरण मिला है, जिसमें नाकाबिल, चाटुकार और भ्रष्टतम लोगों का बोलबाला रहा है। ईमानदार, निष्ठावान, कर्मठ और रेल का भला चाहने वाले अधिकारी न सिर्फ हासिये पर रहे हैं, बल्कि सताए हुए और उत्पीड़ित भी हैं।

पीयूष गोयल स्वभाव से भी तुर्क थे/हैं। जहां उनमें एरोगेंस और इंडिसेंसी कूट-कूटकर भरी थी, वहीं एक अच्छे माहौल की शुरुआत नये रेलमंत्री सिर्फ अपने व्यवहार में उक्त गुणों के विपरीत गुणों और सदव्यवहार के अनुपालन से ही कर सकते हैं, जो कि उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए लगता है कि वह यह सहज ही कर सकते हैं।

इसके लिए सर्वप्रथम रेल की हतोत्साहित, निरुत्साहित वर्क फोर्स में ऊर्जा और उत्साह का संचार करना होगा। निराश, हताश रेलकर्मियों-अधिकारियों को परिवार के एक समझदार मुखिया, अभिभावक की तरह समेटना होगा। उन्हें एकीकृत और समर्पित होकर संरक्षा, सुरक्षा, समयपालन और उत्पादन के लिए लगाना होगा।

नये रेलमंत्री द्वारा इस सदव्यवहार की शुरुआत रेलकर्मियों की छोटी-छोटी समस्याएं – जैसे म्युचुअल ट्रांसफर या ऑन रिक्वेस्ट अन्य डिवीजन में जाने की एनओसी की प्रक्रिया में सरलता और शीघ्र रिलीविंग, डीए/डीआर की बहाली तथा अधिकारियों के मद में टीएडीके को पूर्ववत बहाल कर पूरे अधिकारी वर्ग में एक बड़ा सकारात्मक संदेश दे सकते हैं। इस तरह वह बहुत आसानी से एक ऊर्जावान सकारात्मक माहौल सभी अधिकारियों-कर्मचारियों में खड़ा कर सकते हैं। नए अधिकारियों और परीक्षार्थियों में बेहतरीन लॉट लाने में यह एक बड़े इंसेंटिव के तौर पर काम करता रहा है।

2. फील्ड में जूनियर स्केल अफसरों की कमी

पिछले दो सालों से यूपीएससी को इंडेंट नहीं जाने से फील्ड में जूनियर स्केल अफसरों का टोटा हो रहा है। इससे स्थिति बहुत ही खराब हो रही है। इसलिए आईआरएमएस को लेकर जो भी निर्णय लेना है जल्दी से जल्दी लिया जाए और यूपीएससी को इंडेंट भेजा जाए, जिससे फील्ड की प्रशासनिक समस्या “आउट ऑफ कंट्रोल” न होने पाए।

3. अच्छे परिणाम के लिए चाहिए अच्छे अफसर

अच्छे काम और परिणाम के लिए नये रेलमंत्री को अच्छे अफसर लाने होंगे, इसलिए सबसे पहले हर जगह 15 साल से ज्यादा समय रह रहे अफसरों को तुरंत हटाया जाए, फिर भले ही वे एक साल के अंदर रिटायर होने वाले क्यों न हों, क्योंकि यदि इन सभी अक्षम और तिकडमी जोंकों पर मानवता दिखाई जाएगी तो उस पद से संबंधित काम कम से कम एक साल बाद ही शुरू हो पाएगा। अपना यथोचित आउटपुट देने के लिए इतना समय न मंत्री के पास होगा, और न ही क्रिटिक्स तथा जनता के पास है।

एक जगह, एक शहर, एक रेल पर 15 साल से ज्यादा रह रहे लोगों को तो हटाएं ही, बल्कि किसी भी पद पर 3 साल से ज्यादा पदस्थ लोगो को भी तुरंत हटाने की नीति सख्ती से लागू करनी होगी। इससे प्रशासन में लगी जंग अपने आप साफ हो जाएगी।

4. सुविधाभोगी बनाकर करते हैं दिग्भ्रमित

हालांकि हमें मालूम है कि रेल के कुछ निकम्मे लोग आपको उपरोक्त नीति को इम्प्लीमेंट करने से डराएंगे और यह कहकर दिग्भ्रमित करेंगे कि विद्रोह हो जाएगा, या फिर सब नाराज हो जाएंगे, काम और उत्पादन पर असर पड़ेगा, ट्रांसफर अलाउंस देने में बहुत खर्चा हो जाएगा, इत्यादि।

लेकिन नये रेलमंत्री जी आप ये निश्चित रूप से जान लें कि ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि भ्रष्टों, अकर्मण्यों में रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) नहीं होती है! ये पुरुषार्थ नहीं कर सकते हैं! आपके सामने जो बड़े-बड़े अधिकारी हैं, वे सभी बिना स्पाइन (रीढ़) के ही हैं। इनकी पूंछ कहीं और दबी है। ये सरकार की, रेल की नौकरी नहीं कर रहें है, ये अपने-अपने गल्ले पर बैठे हैं। इनमें कईयों के गल्ले का ऐनुअल टर्न ओवर पचासों करोड़ से ऊपर है, ये क्या खाक पंगा लेंगे!

यह बात रेल यूनियनों और उनके झाड़-झंखाड़ हो चुके जर्जर नेतृत्व पर भी उतनी ही सत्य है। कथित सर्वहारा और मजदूर की बात करने वाले ये झंखाड़ वयोवृद्ध नवयुवा 45-50 लाख की “फार्च्यूनर” सरीखी लक्झरी गाड़ियों में खुलेआम चलते हैं। इन्हीं के नक्शे-कदम पर जोनों और मंडलों में इनके प्रोटोटाइप (प्रतिरूप) टशन में रहते हैं।

मंत्री जी, आप यह जान लें कि रेल मंत्रालय में आजतक किसी तुगलक रेलमंत्री के तुगलकी फरमान पर चूँ तक नहीं हुई है, तो 10-15 साल से एक जगह जमे लोगों की ट्रांसफर नीति, जो कि पिछले 5-6 सालों में बार-बार बनी-बिगड़ी है, और 3-4 साल वालों को तत्काल पद से हटाने पर भी कोई चूं-चपड़ नहीं होगी! अरे जब इनके बंगला प्यून छीनकर इनको बेइज्जत कर दिया गया, तब तो ये कोई चूं-चपड़ कर नहीं पाए, फिर स्थापित नियम का पालन करवाए जाने पर तो इनकी घिग्घी पहले ही बंध चुकी होगी। इसके अलावा आपके इस कदम से काम करने वाले समर्पित, निष्ठावान अधिकारियों-कर्मचारियों में एक बहुत ही अच्छा संदेश मजबूती से जाएगा।

5. प्रोजेक्ट्स का आधार केवल प्रॉफिट हो

राष्ट्रीय सामरिक महत्व के अलावा सभी प्रोजेक्ट्स का आधार केवल “प्रॉफिट” ही होना चाहिए। किसी भी प्रोजेक्ट या टेंडर का फाइनल पेमेंट थर्ड पार्टी द्वारा गुणवत्ता ऑडिट के बाद ही होना चाहिए, और थर्ड पार्टी ऑडिट – प्रोजेक्ट, टेंडर या कांट्रैक्ट साइट के निकटतम आईआईटी की टीम द्वारा ही करने का प्रावधान रखा जाए।

एक एंटरप्रेन्योर को यह बताने की शायद ही जरूरत है कि एक रेलमंत्री के तौर पर उनकी प्राथमिकता रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में नए उत्साह का संचार करने सहित अर्निंग, नॉन-फेयर रेवेन्यू के नये स्रोत, मार्केटिंग इनिशिएटिव एंड बिजनेस डेवलपमेंट, स्मूथ ट्रेन ऑपरेशन, पंक्चुअलिटी, कस्टमर सेटिस्फेक्शन, नया ट्रैफिक और नये ट्रांसपोर्टेशन प्रोडक्ट्स इत्यादि को बढ़ाना ही रहेगा।

ऊपर “सेफ्टी” इसलिए नहीं लिखा जा रहा है, क्योंकि सेफ्टी के नाम से जितना भ्रष्टाचार, गैर जिम्मेदारी और अकर्मण्यता पिछले सालों में देखी गई है, वास्तव में रेल की बरबादी का वही सबसे बड़ा कारण है। सिर्फ ईमानदारी से और जिम्मेदारी से ही सभी विभाग कोई काम कर लें, तो 100% सेफ्टी सुनिश्चित हो सकती है।

“गैरजिम्मेदार रवैया” आज की तारीख में “सेफ्टी” का पर्यायवाची बन चुका है। सेफ्टी की आड़ में आप आज की तारीख में अपने हर गैरजिम्मेदाराना रवैये को जस्टिफाई कर सकते हैं। और मजे की बात है कि इसको डिफेंड करने के लिए रेल में एक पूरा ईको-सिस्टम चौतरफा पांव पसारकर बैठा है, जो पूरी बेहयाई से यह काम करता है।

(मंत्री जी, किसी भी बड़ी दुर्घटना की फाइल निकलवाकर देख लें, जिसमें लाशों का ढ़ेर लग गया हो, आपको रेल में सेफ्टी का खेल समझ में आ जाएगा। ज्यादा दूर नहीं, दिल्ली डिवीजन में ही हुई खतौली दुर्घटना का ही केस मँगवाकर देख लें, आपको रेल के ईको-सिस्टम की थोड़ी नहीं, बल्कि बहुत बड़ी झलक मिल जाएगी।)

मंत्री जी, ये अलग बात है कि यह सब रेलवे की अर्निंग, ऑर्गनाइजेशनल टाइम एंड पब्लिक टाइम, आम यात्री, जनता और व्यापारी के कष्ट तथा उत्पीड़न की कीमत पर होता है।

विगत वर्षों में सेफ्टी के नाम से रेल मंत्रियों को डरा-डराकर अपने विभाग का उल्लू सीधा करने वाले कुछ विभागों के माफियाओं का एक संगठित गुट सक्रिय रहा है, जिससे रेल की वास्तविक कार्यक्षमता भी प्रभावित हुई और आर्थिक दोहन भी हुआ, सो अलग।

जब ट्रेन रुके, तो इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने और मरम्मत का काम हो, और ट्रेन चले तो आय हो। लेकिन यहां गैरजिम्मेदारी का आलम यह है कि जब ट्रेन नहीं चल रही है, तब काम भी नही हो रहा है।

ठीक यही काम पैसेंजर एमिनिटीज (यात्री सुविधाओं) के नाम पर भी हुआ है। यात्री सुविधाओं के नाम पर जो लूट-खसोट और कथित एक्सपेरिमेंट किए गए हैं, उससे रेलवे और पैसेंजर्स दोनों की थैलियों में बहुत बड़ा छेद हो गया।

6. बहुराष्ट्रीय और कॉरपोरेट घरानों की तर्ज पर हो एक्सपेंडिचर कंट्रोल

किसी भी काम को करने से पहले उसकी जरूरत यूजर डिपार्टमेंट द्वारा गहनता से अध्ययन कर अनुशंसित करने पर ही काम किया जाए।

रेल में अर्निंग डिपार्टमेंट, एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट की भूमिका नए सिरे से मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट के तर्ज पर डिफाइन करना रेलमंत्री की प्रायरिटी होनी चाहिए, क्योंकि इसी में रेलमंत्रालय का सबसे बड़ा मर्ज छुपा है, और एक सफल आईएएस एवं उद्यमी से बेहतर कोई और इसकी सर्जरी नहीं कर सकता है।

भारतीय रेल दुनिया का एक ऐसा अनोखा ऑर्गनाइजेशन है, जहां जो खर्च करता है वही एक्सपेंडिचर फंड का मालिक भी होता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी घर में कमाने वाला एक और खर्च करने वाले दस, लेकिन घर में जितना पैसा कमाकर जो लाया उस पर खर्च करने वाले दसों ने कब्जा जमाने का प्रयास किया और जिसके पास ज्यादा ताकत थी उसमें से उसने अपने हिसाब से खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा अपने पास रख लिया और जो उस दस में सबसे कमजोर पड़ा उसके हिस्से जो आया, उसी में उसे संतोष करना पड़ा। लेकिन इसमें सबसे दयनीय हालत उसकी हो गई जो इकलौता कमाने वाला है। यही त्रासदी रेल की है और इसी कारण अब यह पूरी तरह से लूट-खसोट का अड्डा बन चुकी है, जहां न पब्लिक की जरूरत के अनुसार काम होता है, न ही व्यापारी और न ही उद्योगों की जरूरत पूरी होती है। इसे भ्रष्टाचारियों ने अपना “निजी उद्योग” बना लिया है।

7. व्यक्तिगत स्टाफ के चयन/नियुक्ति में सावधानी

पीयूष गोयल और पवन बंसल सरीखे रेलमंत्रियों से सबक लेते हुए वर्तमान रेलमंत्री सावधानी से चुनकर अच्छे, समर्पित ईमानदार और संवेदनशील पीएस/एपीएस की नियुक्ति करें, क्योंकि बेवजह और बावजह बदनामी के यही लोग ज्ञात और अज्ञात कारण बनते हैं।

8. योग्यता, निष्ठा को मिले वरीयता

पिछले अर्थात निवर्तमान रेलमंत्री के कार्यकाल की एक पहल, जिसकी काफी प्रशंसा हुई थी, वह यह थी कि डीआरएम और जीएम के चयन में उम्र की जगह योग्यता के आधार पर निर्णय लेना था, जिसमें एक कट ऑफ डेट की जगह पूरे के पूरे बैच को एलिजिबल मानकर उसमें से साक्षात्कार और योग्यता के आधार पर अधिकारियों का चयन किया जाना था।

मंत्री महोदय, इस पर जितनी जल्दी निर्णय लेकर आगे बढ़ेंगे, उतना ही बेहतर होगा और जो सचमुच डिजर्विंग लोग हैं, उन्हें डीआरएम, जीएम में काम करने का मौका मिलेगा, जिसका अंततः फायदा रेल को ही होगा।

9. विजिलेंस की ओवरहालिंग की आवश्यकता

रेलवे बोर्ड विजिलेंस से लेकर जोनल विजिलेंस तक जड़-मूल से इसकी ओवरहालिंग की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें ईमानदार और निष्पक्ष अधिकारी इसकी कमान संभाल सकें। इसके लिए सर्वप्रथम एडवाइजर विजिलेंस, रेलवे बोर्ड सहित सभी जोनल विजिलेंस के एसडीजीएम/सीवीओ के पदों पर रेलवे से इतर अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की जाए। इनकी एसीआर क्रमशः सीधे मंत्री के मातहत हो।

रेलवे विजिलेंस में या तो निष्क्रिय लोग हैं, या अत्यंत भ्रष्ट। यह दोनों विजिलेंस के उद्देश्य को नष्ट करते हैं और इनकी तेजी एवं सक्रियता अधिकांश मामलों में सीधे लोगों पर, या छोटी मछलियों के ऊपर ही ज्यादा होती है। वरना बड़ी मछलियां तो इनके लिए अक्षय कमाऊ स्रोत हैं। यही कारण है कि जिनके भ्रष्टाचार को पूरे रेल का बच्चा-बच्चा जनता है, वे लोग सीना चौड़ा करके सिस्टम को मुंह चिढ़ाते रिटायर हो जाते हैं।

(यह और बात है कि कुछ विभागों में भ्रष्टाचार की ऐसी गंगा बह रही है कि रिटायरमेंट के बाद भी 50-50 लाख घूस लेते सीबीआई द्वारा पकड़े जाते हैं।)

10. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति

जितनी भी बड़ी मछलियां हैं, उनको सीबीआई ही आखिर क्यों पकड़ती है? विजिलेंस में देश का भला सोचने वाले लोग अगर रहें, तो विजिलेंस की साख पुनः स्थापित हो सकती है।

यह ठीक है कि भ्रष्टाचार व्यवस्था की जड़ों तक पहुंच गया है और इसे रोकना या खत्म करना आसान नहीं है। इसके लिए रिश्वत देने और लेने वाले दोनों समान रूप से जिम्मेदार हैं। तथापि वास्तविक धरातल पर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए, केवल जुमलेबाजी या जुबानी जमा-खर्च से काम नहीं चलेगा।

11. रोकी जाए रेल की गाढ़ी कमाई की लूट

पिछले समय में विशुद्ध भ्रष्टाचार की नीयत से कुछ डिपार्टमेंट और कुछ अनावश्यक गतिविधियां शुरू की गई हैं – जैसे ईएनएचएम, एनएफआर आदि – इन्हें तत्काल प्रभाव से बंद कर रेल की गाढ़ी कमाई की लूट रोकी जाए।

इन नए विभागों में होने वाले काम पहले भी होते थे लेकिन एक सेलेब्रिटी सीआरबी द्वारा अपने विभाग को ज्यादा पावरफुल बनाने और इन जगहों पर अपने लोगों को बैठाकर उपकृत करने के लिए नए-नए नामों से यह विभाग खोले गए। इनमें से एक विभाग ईएनएचएम, जिसे सिर्फ खर्च करना था, वह कमाल का परफॉर्मेंस दिया। जो काम पहले लाख में होता था, वह काम यह रातों-रात करोड़ों में कराने लगा। और दूसरा एनएफआर, जिसे कमाने के लिए और ग्लैमर की दुनिया से अपने को जोड़ने के लिए अलग से बनवाया गया था, वह अभी तक ढ़ाई कोस भी नहीं चल पाया है।

डिवीजन में ब्रांच स्तर के अफसरों पर डीएम की तरह ज्यादा पावर – पूर्ण जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व के साथ – देकर ही गाड़ी आगे बढ़ सकती है।

इसी तरह स्टेशन डायरेक्टर की पोस्ट भी खत्म कर स्टेशन मास्टर/स्टेशन मैनेजर को ही स्टेशन का इंचार्ज रखा जाए। इससे अफसर के वेस्टेज पर भी रोक लगेगी और जहां पर उनकी वास्तव में आवश्यकता है, वहां पर उन्हें पदस्थापित किया जा सकता है।

12. सुनिश्चित हो काम की गुणवत्ता और उत्तरदायित्व

अभी रेलवे के किसी भी काम की गुणवत्ता भ्रष्ट तकनीकी कौशल के कारण अपने अधोतम/निम्नतम स्तर पर है, जबकि इसके कॉन्ट्रैक्ट रेट दूसरे सरकारी डिपार्टमेंट्स से ज्यादा ही होते हैं। फिर भी काम की गुणवत्ता का आलम यह है कि करोड़ों लगाकर किया गया कोई काम साल भर भी कायदे से टिक नहीं पाता है। करोड़ों लगाकर बनाई गई स्टेशन बिल्डिंग्स की छतें पहली बारिश में ही या तो उड़ जाती हैं, या उनसे इतना पानी टपकता है मानो छत है ही नहीं। यही हाल कमोबेस हर काम और हर खरीद में है।

पेमेंट वर्ल्ड क्लास स्टैंडर्ड के हिसाब से किया जाता है और काम लोकल थर्ड क्लास से भी बदतर स्तर का होता है। लेकिन इसके बावजूद भी कोई जिम्मेदारी फिक्स नहीं होती है, और न ही किसी को जिम्मेदार माना जाता है। जब तक गुणवत्ता को लेकर हम संवेदनशील नहीं होंगे, जब तक 1000 रुपये खर्च कर किए गए काम की गुणवत्ता पर भी जिम्मेदारी निर्धारित नहीं होगी, रेल का कायाकल्प कभी नहीं होगा।

100 रुपये का बल्ब लेने पर भी उस पर आज की तारीख में निर्धारित वर्षों की/घंटों की गारंटी मिलती है, तो टैक्स पेयर की मेहनत की कमाई के करोड़ों/अरबों रुपये से किए गए काम और खरीदे गए माल की गुणवत्ता सुनिश्चित क्यों नहीं की जा सकती है? और निर्धारित समय तक की गारंटी क्यों नहीं दी जा सकती है? उस निर्धारित समय के अंदर अगर कोई खराबी/कमी नोटिस की जाती है, तो संबंधित सभी अधिकारियों-कर्मचारियों पर जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

“हर काम की गुणवत्ता पर नॉन-कंप्रोमाइजिंग एटीट्यूड और अप्रोच है मंत्री जी का”, यह संदेश हर दिन हर समय फील्ड में जाता रहना चाहिए और दिखना भी चाहिए। तभी मंत्री जी अपने टास्क में सफल हो पाएंगे। वरना यह रेल है, यहां के लोग इतने घाघ हैं कि कब कहां ठेल देंगे, पता भी नहीं चलता!

13. कांट्रैक्ट की जानकारी साइट पर प्रदर्शित हो

मंत्री जी अगर यह सुनिश्चित कर दें कि जहां भी जो भी काम हो रहा है, वहां आम पब्लिक के लिए महत्वपूर्ण जगहों पर काम से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी के लिए होर्डिंग/बोर्ड लगाए जाएं, जिसमें उस काम/कांट्रैक्ट की कुल लागत के साथ-साथ काम की खासियत/जरूरत, काम पूरा होने का समय और कार्य की वारंटी अवधि आदि वर्णित हो। इसमें संबंधित ठेकेदार और अधिकारियों के नाम के साथ उनके मोबाइल नंबर भी दिए जाने चाहिए।

14. यूनियन के पदों से डिबार हों सुपरवाइजर

सेफ्टी डायरेक्टरेट, रेलवे बोर्ड उस लेटर को इम्प्लीमेंट करवाए, जिसमें यह कहा गया था कि कोई भी सुपरवाइजर ग्रेड का कर्मचारी यूनियन का आफिस बेयरर नहीं होगा। इसके साथ ही रिटायर्ड लोगों को कम से कम जोनल स्तर पर यूनियन का पदाधिकारी बनने का प्रावधान खत्म करते हुए कार्यरत लोगों को आगे आने का मौका दिया जाए।

15. यूपीएससी से कराया जाए ग्रुप ‘बी’ का चयन

ग्रुप ‘बी’ में पदोन्नति की परीक्षा या तो यूपीएससी से कराई जाए या फिर यूपीएससी के पैटर्न – प्रीलिम्स, मेंस, इंटरव्यू – (prelims, mains, interview) पर आधारित हो, क्योंकि ग्रुप ‘बी’ की रेलवे में चयन प्रक्रिया मुख्यतः भ्रष्टाचार के माध्यम से तिकड़मी भ्रष्ट और अक्षम लोगों को लाने की ही प्रक्रिया है। रेलवे किसी भी रूप में इसकी प्रक्रिया अपनाएगा, उसमें भ्रष्ट लोगों के भ्रष्ट रास्ते से आने की संभावना बनी ही रहेगी।

रेलमंत्री जी चूंकि आईएएस से आए हैं, इसलिए उनको यह समझने में समय नहीं लगेगा कि राज्यों में स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन से चयनित होकर ग्रुप ‘बी’ राजपत्रित में आने वाले कैंडिडेट्स कितनी टफ चयन प्रक्रिया से चयनित होकर आते हैं और उन्हें यूपीएससी से ग्रुप ‘ए’ कैडर मिलने में किसी भी राज्य में कम से कम 20 साल लग ही जाते हैं, यहां तक कि यूपीएससी सिविल सर्विसेज से चयनित कई ग्रुप ‘बी’ सेवाओं के अधिकारियों को भी 20 साल के आस पास ही ग्रुप ‘ए’ कैडर यूपीएससी से मिलता है, और आपने भी पंजाब छोड़ कर शायद ही किसी जगह क्लास-4 से भर्ती कर्मचारी को आईएएस, आईपीएस या अन्य ग्रुप ‘ए’ का कैडर मिलते सुना होगा, लेकिन रेलवे ने अपने अदभुत स्थापना नियमों की स्थापत्य कला से चतुर्थ श्रेणी में बहाल हुए लोगों को निम्नतम योग्यता के साथ एसएजी यानि भारत सरकार के जॉइंट सेक्रेटरी पद तक पहुंचा देता है। बिना किसी उचित तकनीकी क्वालिफिकेशन के क्लास-3 से ग्रुप ‘बी’ में आए लोग 8 से 10 साल में ग्रुप ‘ए’ बन जाते हैं। इनकी संगठित आर्थिक शक्ति के कारण रेल को गल्ला समझकर चलाने वाले लोगों का दिया हुआ यह प्रतिदान है।

अतः व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कम से कम इनकी चयन प्रक्रिया को यूपीएससी/पीसीएस की तरह मलटी-लेयर्ड और कठिन बनाने की आवश्यकता है, जिससे बिना भ्रष्टाचार के पात्र लोग ही चयनित हो पाएं।

16. कम किए जाएं रेलवे पीएसयू

रेल में इतने उपक्रमों (पीएसयू) की आवश्यकता नहीं हैं, जितने बना दिए गए हैं। इनमें फिजूलखर्ची और मनमानी चरम पर है। एक तरफ रेल की विभिन्न गतिविधियों को निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी चल रही है, तो दूसरी तरफ आए दिन रेलवे पीएसयू की संख्या बढ़ती जा रही है। यह विसंगतिपूर्ण प्रणाली है। अतः इनकी समीक्षा कर वैसे पीएसयू को बंद कर दिया जाए, जिनसे फील्ड यानि डिवीजनों और जोनों के कार्य के साथ विवाद, कनफ्लिक्ट, कंट्राडिक्शन और एनक्रोचमेंट हो रहा है।

17. विभागवाद पर हो सख्त कार्रवाई

डिपार्टमेंट की लॉबिंग अर्थात विभागवाद करने वालों पर सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाए और उन्हें रेलवे बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाया जाए। चाहे वह सीआरबी सीईओ हो, मेंबर हो, या सेक्रेटरी के पोस्ट पर ही क्यों न बैठा हो।

18. प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जाएं

रेल में अभी तक किसी मंत्री ने अच्छे ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए मौखिक प्रशंसा या अवार्ड देने के अलावा कोई ठोस काम नहीं किया है, जिससे उन्हें वास्तव में कुछ लाभ मिला हो। वर्तमान रेलमंत्री ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन, आउट ऑफ टर्न आवास का आवंटन और उनकी पसंद के स्थान/पद पर पदस्थ करने की शुरुआत करके एक नया और सकारात्मक माहौल बना सकते हैं।

19. बिना ताम-झाम के करें औचक निरीक्षण

युवा रेलमंत्री अगर बिना किसी अमले के सरकारी आवासों, रेलवे कॉलोनियों में रह रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के परिवारों से संवाद हेतु एक-दो माह में एक बार भी औचक निरीक्षण कर लेंगे, तो उनका बहुत सी असलियत से सामना होगा, जो उन्हें न सिर्फ ख्याति देगा, वरन समस्याओं को जड़ से खत्म करने की दृष्टि भी प्रदान करेगा।

यही प्रभाव रेलवे अस्पतालों में इलाज करा रहे रेल अधिकारियों और कर्मचारियों से या उनके परिजनों से सीधे गोपनीय संवाद करने पर भी होगा।

20. समय पर सुनिश्चित हों हायर पोस्टिंग

मंत्री जी को बोर्ड मेंबर, जीएम और डीआरएम स्तर की के उच्च पदों पर समय पर योग्य अधिकारियों की पोस्टिंग सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि ऐसा नहीं हो पाने के कारण एक तरफ रेल की प्रशासनिक व्यवस्था गड़बड़ाती है, तो दूसरी तरफ जोड़-तोड़ होती है और काम करने का माहौल हतोत्साहित होता है। मंत्री जी के लिए यह एक बड़ा टास्क है, क्योंकि इसमें सबसे बड़ा अड़ंगा बोर्ड में बैठे बाबू ही हैं।

21. मोदीजी की तर्ज पर बदल डालें नकारों को!

अंत में एक बात और, रेलमंत्री जी, जिस प्रकार से मोदीजी ने कैबिनेट बदलकर योग्य और नए युवा चेहरों की टीम बनाई है, वैसे ही बिना हिचके आपको भी कुछ नकारे, गैरजिम्मेदार, अक्षम और अकर्मण्य मेंबर, जीएम एवं डीआरएम को तत्काल बदल देना चाहिए, जिससे रेल भी तेजी से आगे बढ़े और इसकी छवि भी चमके!

असीम शुभकामनाओं सहित
व्यवस्था का हितचिंतक
सुरेश त्रिपाठी

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