बहुत दुर्लभ काम कर रही है पीयूष गोयल की रेल !

Railway Mooving Nappy, Making Babies Happy ! #PiyushGoyal

उपरोक्त हेडलाइन लगाकर कल रेलमंत्री पीयूष गोयल ने एक ट्वीट किया और कहा, “सर्वथा पहली बार रेलवे ने पार्सल एक्सप्रेस में 27000 से ज्यादा पैकेट्स बच्चों के डायपर्स लोड किया है, जो रेनीगुंटा से लखनऊ ले जाए जा रहे हैं।”

रेलमंत्री का यह ट्वीट देखकर रेलवे के एक बड़े रिटायर्ड अधिकारी ने कहा, “अभी तक कोई भी यात्री गाड़ी चलती थी, तो उसका श्रेय लेने के लिए अपना विज्ञापन देते थे। अब बच्चों के कच्छे-बनियान लाने-ले जाने का श्रेय भी लेने लगे।”

वह आगे कहते हैं, “कोई इनसे पूछे, भई ये तुम्हारा धंधा है, इसके तुम्हें पैसे मिलते हैं। न तो तुम फ्री ले जा रहे हो, न ही कुछ ऐसा है कि यह कोई दुर्लभ काम आप संपन्न कर रहे हो। रेलवे तो ये काम 1853 से करती आ रही है!”

रेलमंत्री की इस ट्वीट रिट्वीट करते हुए एक ट्विटर यूजर हितेंद्र डी. चौधरी ने लिखा, “आपको शर्म आनी चाहिए!” वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, “जिन ट्रेनों का ठहराव हमारी फरमाइश और जरूरत को देखते हुए दिया गया था, उन्हें रद्द कर रेलवे हमें अपनी शर्तों पर जीने को मजबूर कर रही है!”

एएलपी/टेक्नीशियन के लिए एक स्टैंड बाई कंडीडेट निखिल चंदन ने लिखा, “रेलमंत्री और रेल मंत्रालय दुनिया के सभी मुद्दों पर ट्वीट कर जानकारी साझा करते हैं, पर जब बात रेलवे भर्ती प्रक्रिया, पद रिक्त होने के बाद भी वरिष्ठ भर्ती अधिकारियों की मनमानी उस प्रश्न पर पता नहीं क्यों मौन व्रत धारण कर लेते हैं!”

ऐसे सैंकड़ों ट्विटर यूजर्स ने कमेंट किया है। कुछ ने पक्ष में तारीफें करते हुए, तो कुछ वो जिनका लाभ है, और जो रेल से अनभिज्ञ हैं, उन्होंने हंसी और तारीफ दोनों किया है। मगर जो बेरोजगार हैं, वर्षों से परीक्षा देकर भी रेलवे में प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उन्होंने अपनी भड़ास निकाली है।

और यह काम वह रेलमंत्री की लगभग हर ट्वीट में करते हैं, परंतु उन्हें इसका कोई रेस्पॉन्स आजतक नहीं मिला, क्योंकि रेलमंत्री और उनके रेल अधिकारियों को जनसामान्य की पीड़ा सुनने-समझने के बजाय स्वयं रेल के निरर्थक मुद्दों पर श्रेय लेने से फुर्सत नहीं है।

पिछले छह-सात वर्षों से रेल में हर काम “सर्वथा पहली बार” हो रहा है। रेल के विभिन्न निर्माणों, पुलों, स्टेशनों इत्यादि की अनावश्यक पब्लिसिटी रेलमंत्री और रेल मंत्रालय द्वारा कुछ इस प्रकार से की जा रही है, मानों भारत में रेल की स्थापना अभी-अभी हुई है और देश का जनसामान्य इससे पूरी तरह अनभिज्ञ है।

एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “यह बात भी सही है कि निरर्थक श्रेय लेने का जितना क्षुद्र चलन इधर के कुछ सालों में बढ़ा है, और जिसके लिए अनाप-शनाप पैसा खर्च करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है, वह आश्चर्यजनक है। पता नहीं रेल की यह बरबादी कहां जाकर थमेगी!”