टीटीई रेस्ट हाउस नहीं बनाया, उचित व्यवस्था उपलब्ध नहीं कराई, संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए!
जहां-जहां टीटीई रेस्ट हाउस का आवश्यकता के अनुसार निर्माण नहीं कराया गया है और जहां-जहां आवश्यक और उचित व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कराई गई है, उसका एक व्यापक सर्वेक्षण करवाकर संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए!
सुरेश त्रिपाठी
श्री वैष्णव देवी कटरा रेलवे स्टेशन पर कोई टीटीई रेस्ट हाउस नहीं बनाया गया है। जबकि इस स्टेशन को बने हुए और चालू हुए कई वर्ष बीत चुके हैं, जहां देश के लगभग हर कोने से गाड़ियों का आवागमन होता है।
भारतीय रेल के अधिकांश अधिकारियों का श्री वैष्णव देवी के दर्शन लाभ के लिए यहां अक्सर आना-जाना लगा रहता है। तथापि आज तक उनका ध्यान फील्ड स्टाफ की इस एक बड़ी समस्या और आवश्यक व्यवस्था पर क्यों नहीं गया, यह आश्चर्य की बात है।
अधिकारियों ने अपने ठहरने और खाने-पीने की लगभग सभी आलीशान व्यवस्थाएं हर पर्यटन स्थल और बड़े स्टेशनों पर सुनिश्चित की हैं, मगर अर्निंग स्टाफ अर्थात फील्ड स्टाफ की कोई यथोचित व्यवस्था आज तक नहीं की गई है।
विभिन्न मंडलों से गाड़ियां लेकर आने वाले टीटीई के लिए ठहरने के जो इंतजाम किए गए हैं, उनमें कहीं बेड होता है, तो बेडशीट नहीं होती, तकिया होता है, तो उसमें कवर नहीं होता, पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होता है, साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं होता, और गर्मी में एसी तो बहुत दूर, कूलर तक का इंतजाम नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व सीआरबी अश्वनी लोहानी उर्फ “सुशासन बाबू” ने सभी टीटीई रेस्ट हाउस को वातानुकूलित (एयरकंडीशंड) करने के आदेश दिए थे। वहां खाना खाकर टीटीई के लिए उचित खानपान व्यवस्था सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया था।
उन्होंने तो टीटीई को “रनिंग स्टाफ” का दर्जा देने और समकक्ष सुविधाएं उपलब्ध कराने की भी तालकटोरा स्टेडियम में घोषणा की थी। इसके लिए एक समिति भी गठित की थी, परंतु परिणाम आजतक ढ़ाक के तीन पात जैसा ही है।
यही घोषणा भोपाल में दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशनों के महामंत्रियों ने भी की थी, परंतु ये सब केवल घोषणाएं ही बनकर रह गईं। इसके लिए टिकट चेकिंग स्टाफ और उसकी “आत्मनिर्भरता” भी काफी हद तक जिम्मेदार है।
डीआरएम/फिरोजपुर ने अपना दो साल का कार्यकाल पूरी अय्याशी, मौज-मस्ती और मनमानी करते हुए निकाल दिया। इसके अलावा दो साल में यहां उन्होंने तीन सीनियर डीसीएम बदलवा दिए, जिससे कमर्शियल स्टाफ का कोई माई-बाप ही नहीं रहा, वह अपनी समस्या कहें तो किससे जाकर कहें!
स्टाफ का कहना है कि पिछले दो वर्षों के दौरान मंडल में कई फालतू और अनुपयोगी काम कराए गए, परंतु टीटीई के लिए जो आवश्यक और मानक कार्य किया जाना चाहिए था, वह नहीं कराया गया।
इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि आज जब कुछ ही गाड़ियां चल रही हैं और बहुत थोड़ा स्टाफ वहां पहुंचता है, जब उसके लिए ही व्यवस्था कम पड़ रही है, तो जब सभी गाड़ियां चलेंगी, और ज्यादा स्टाफ वहां पहुंचेगा, तब तो उसके सामने प्लेटफार्म पर डेरा डालने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होगा।
इस सबके साथ उत्तर रेलवे मुख्यालय बड़ौदा हाउस में हाथ पर हाथ धरे बैठे संबंधित वाणिज्य अधिकारियों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे न सिर्फ अर्निंग बटोरने के लिए ही वाणिज्य स्टाफ को झोंकें, बल्कि उनकी आवश्यकताओं और आवश्यक सुविधाओं का भी बंदोबस्त करने-कराने की पहल करें, अन्यथा इस सारी अव्यवस्था के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
यही हाल शाहगंज जंक्शन का है, जहां आज तक भी टीटीई रेस्ट हाउस की व्यवस्था नहीं की गई है। जबकि इस मामले को “रेल समाचार” ने तब उठाया था जब शिवराज सिंह पूर्वोत्तर रेलवे के सीसीएम हुआ करते थे। उन्होंने इसे गंभीरता से लिया था। तब पूर्वोत्तर रेलवे और उत्तर रेलवे के सीसीएम ने शाहगंज जंक्शन पर जल्द से जल्द इसके व्यवस्था करने का वादा किया था, जो आजतक पूरा नहीं हुआ।
ऐसी ही कुछ दुर्दशा लुधियाना स्टेशन पर मालगोदाम साइड में स्थित टीटीई रेस्ट हाउस की है, जो अपनी दुर्दशा पर तो आंसू बहा ही रहा है, बल्कि उत्तर रेलवे के अकर्मण्य वाणिज्य अधिकारियों तथा रेल प्रशासन की कथनी और करनी पर भी दहाड़े मारकर रो रहा है।
उपरोक्त तो कुछ संदर्भ मात्र हैं। जबकि ज्यादातर टीटीई रेस्ट हाउस की यही कहानी है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
अब जहां तक बात आती है मान्यताप्राप्त संगठनों और उनके पदाधिकारियों की, जो कि खुद को रेलवे का तथाकथित स्टेकहोल्डर और रेलकर्मियों का ठेकेदार मानते हैं, वे अपनी आत्मा गिरवी रख चुके हैं।
देखें इसकी एक बानगी: यूनियन के इस पत्र से साफ पता चलता है कि इसमेें उसने अपने दो पदाधिकारियों – विवेक महाजन, शाखा सचिव, स्टेशन शाखा/अमृतसर और सुमीत कुमार, पदाधिकारी, स्टेशन शाखा/लुधियाना – को बचाने हेतु संबंधित अधिकारियों या रेल प्रशासन को दबाव में लेने के लिए ही अन्य मुद्दे शामिल किए हैं।
ऐसे में उनके बारे में कुछ न ही कहा जाए, तो शायद अच्छा है, क्योंकि मृत अथवा मृतप्राय लोगों के बारे में कुछ बुरा कहने की भारतीय परम्परा नहीं है!
तथापि जहां-जहां टीटीई रेस्ट हाउस का आवश्यकता के अनुसार निर्माण नहीं कराया गया है और जहां-जहां टीटीई रेस्ट हाउस में आवश्यक और उचित व्यवस्था की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं कराई गई है, उसका एक व्यापक सर्वेक्षण करवाकर संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाए।
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