खामोश मिजाजी तुम्हें जीने नहीं देगी! इस दौर में जीना है तो कोहराम मचाना होगा!

“आरक्षण और क्रीमी लेयर खत्म करने के प्रश्न पर कोई भी राजनीतिक दल सत्ता नहीं गंवाना चाहेगा! अब इसका फैसला तो वोट से ही होगा!”

सामान्य वर्ग द्वारा जातिगत आरक्षण के विरोध का एक बहुत आवश्यक कार्य शुरू किया गया है। अब यह रुकना नहीं चाहिए। इसे हर जगह और हर तरीके से आगे बढ़ाना है।

जातिगत आरक्षण देश की प्रतिभाओं का नाश कर रहा है। देश की आजादी में योगदान सवर्णों ने दिया और इसका संपूर्ण लाभ तथाकथित दलितों को मिल रहा है, यह कहना संपूर्ण सत्य तो नहीं है, परंतु काफी हद तक सही है।

1. माइनस अंक वाले विज्ञान विषयों के लेक्चरर बनते हैं। यह समाज और व्यवस्था को किस तरह के नागरिक उपलब्ध कराएंगे।2. जिनको अपनी ही भाषा में एक आवेदन पत्र तक लिखना नहीं आता, वह उसके लेक्चरर बन रहे हैं। ऐसे लोग क्या पढ़ाएंगे।

2. जिनको अपनी ही भाषा में एक आवेदन पत्र तक लिखना नहीं आता, वह उसके लेक्चरर बन रहे हैं। ऐसे लोग क्या पढ़ाएंगे।

3. जातिवाद का विरोध करने वाले अपने नाम के साथ खुद तो जाति लिखते हैं मगर सामान्य वर्ग के लोगों को जाति सूचक शब्द उच्चारित करके बेइज्जत करते हैं।

4. मायावती 1200 करोड़ की संपत्ति बनाकर भी दलित हैं।

5. रामनाथ काेविंद राष्ट्रपति बनकर भी दलित हैं।

6. कलेक्टर का लड़का आरक्षण के तहत सभी सुविधाओं सहित बिना या नाममात्र की फीस चुकाकर पढ़ेगा, मगर सामान्य वर्ग के उसके चपरासी को उसी स्कूल में अपने बच्चों की पूरी फीस भरने सहित अन्य सुविधाओं की पूरी कीमत चुकानी पड़ेगी।

7. सरकार एक तरफ जाति खत्म करने का ढ़िंढ़ोरा पीटती है, तो दूसरी तरफ जाति प्रमाण पत्र बांटकर जाति को बढ़ावा दे रही है।

यानि सरकारों और कथित दलितों की सोच ही दलित (गलत) तर्क और तथ्य पर आधारित है। जातिगत आरक्षण वह घुन है, जो समाज और सवर्ण प्रतिभाओं को निगल रहा है। जातिगत आरक्षण का समूल नाश करना अब आवश्यक हो गया है।

विद्वान साहित्यकार और देश की सामाजिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था को गहराई से जानने वाले श्री प्रेमपाल शर्मा का मानना है कि इस अत्यंत विसंगतिपूर्ण व्यवस्था को एक-एक कदम करके खत्म करना होगा।

श्री शर्मा के सुझाव इस प्रकार हैं –

1. क्रीमी लेयर एससी/एसटी पर भी लागू हो।

2. क्रीमी लेयर जो वर्तमान में 8 लाख है। इसे बढ़ाकर अब 12 से 16  लाख करने की मांग की जा रही है। यह गलत है।

3. क्रीमी लेयर को घटाकर 4 लाख रखा जाए, वरना इन वर्गों के नव-धनाढ़्य ही लगातार इसका फायदा लेते रहेंगे।

4. जातिगत आरक्षण की अविलंब समीक्षा कर इसे आर्थिक तौर पर समाज के हर वर्ग के लिए बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के लागू करने की संभावनाएं तलाशी जाएं।

5. जातिगत आरक्षण का उचित लाभ संबंधित वर्गों के वास्तविक जरूरतमंदों तक आजतक नहीं पहुंच पाया है।

श्री शर्मा कहते हैं कि आरक्षण और क्रीमी लेयर खत्म करने के प्रश्न पर कोई भी राजनीतिक दल सत्ता नहीं गंवाना चाहेगा।

उनका कहना है कि यह लोकतंत्र है और इसका फैसला अब वोट बैंक से ही होगा। सिर्फ “जातिगत आरक्षण मुर्दाबाद” का नारा लगाने से ही अब काम नहीं चलेगा, लोगों को अब आगे आकर इसका पुरजोर विरोध भी करना होगा।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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