नहीं रहे पूर्व सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा !

हमारे बीच या समाज अथवा व्यवस्था में कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं, जिनके मर जाने से, हमेशा के लिए चले जाने से, समाज और व्यवस्था का ही भला होता है!

सुरेश त्रिपाठी

बहुत अटपटा लग रहा है! किसी की मौत के बाद उसके प्रति अशिष्टता न बरतने की हमारी संस्कृति है। पर व्यवस्था में रहते हुए कुछ लोगों का चरित्र और व्यक्तित्व ऐसा होता है कि उनके कृतित्व का चरित्र चित्रण किए बिना उनका परिचय पूरा नहीं होता।

किसी के मरने, दिवंगत होने के बाद उसके बारे में कुछ बुरा या नकारात्मक कहने-सुनने की हमारी संस्कृति और परंपरा नहीं है। फिर भले ही वह अपने जीवन काल में कितना ही खराब, कितना ही दुष्ट, भ्रष्ट और दुराचारी ही क्यों न रहा हो।

तथापि हमारे बीच या समाज अथवा व्यवस्था में कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं, जिनके मर जाने से, अथवा हमेशा के लिए चले जाने से समाज और व्यवस्था का ही भला होता है।

और जब लोगों को ऐसा महसूस होता है, तब उनके मुंह से यही निकलता है, “चलो अच्छा हुआ, समाज का एक कंटक चला गया, लोग मुक्त हुए उसके अनाचार, अत्याचार से!”

रंजीत सिन्हा नाम के इस विवादास्पद व्यक्ति के साथ भी यही जनभावना है। मेरी व्यक्तिगत भावना तो इससे भी ज्यादा कड़ी है, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ समाज और व्यवस्था को भ्रष्ट किया था, बल्कि अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए 1 मई 2014 को अपने पद और अधिकार का अक्षम्य दुरुपयोग भी किया था।

रंजीत सिन्हा की कोविड से मृत्यु गुरुवार, 15 अप्रैल 2021 को तड़के दिल्ली में हो गई। रंजीत सिन्हा, यह वह नाम है, जिसने न केवल आईपीएस का नाम बदनाम किया, बल्कि पुलिस अधिकारी के नाम पर यह एक बदनुमा धब्बा भी रहा।

रंजीत सिन्हा (68), दिसंबर 2012 से दिसंबर 2014 तक सीबीआई के डायरेक्टर रहे, रेलवे में भी वह आरपीएफ के डीजी रहे, पर जहां भी रहे, वहां इन्होंने सिर्फ भ्रष्टाचार पैदा किया और अपने राजनीतिक आकाओं की फर्माबरदारी के लिए जाने गए।

1974 बैच का यह बदनाम आईपीएस अधिकारी हमेशा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने के लिए जाना गया। बतौर सीबीआई डायरेक्टर इन्हीं के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को “पिंजरे का तोता” के खिताब से नवाजा था। इनके विरुद्ध संभवतः आज भी कुछ केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

1 मई 2014 को मेडअप सीबीआई केस में दिग्भ्रमित कर आरोपी को मुंबई से दिल्ली ले जाया गया था और किसी रिकॉर्ड अथवा अधिकारिक प्रक्रिया किए बिना ही कथित आरोपी को 13-14 दिन तक सीबीआई मुख्यालय पर सुबह से देर शाम तक हाजिरी लगवाने वाले रंजीत सिन्हा का कानून तो कुछ नहीं कर सका, क्योंकि उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था, मगर प्रकृति के न्याय से उन्हें कोई बरी नहीं कर सकता था, यह भी सत्य है।

बहरहाल, हमारी संस्कृति में मरने वाले की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना करने का रिवाज भी है, परंतु जिस आत्मा को मरने वाले ने अकारण भीषण कष्ट दिया हो, अनावश्यक प्रताड़ित किया हो, आर्थिक, सामाजिक क्षति पहुंचाई हो, उससे उसकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना तो नहीं हो सकती, तथापि चूंकि हमारी सनातन संस्कृति में क्षमा सबसे बड़ा दान माना गया है, इसलिए रंजीत सिन्हा को क्षमादान दिया जाता है।

#RanjeetSinha #CBI