पीएफए/आरडब्ल्यूपी/बेला ने डाला रेलकर्मियों पर आयकर का अतिरिक्त बोझ

आखिर किसका संरक्षण प्राप्त है अनुशासनहीन पीएफए आरडब्ल्यूपी बेला पुष्पा रानी को?

यह सर्वविदित है कि काम करने के बाद पिछले महीने का वेतन अगले महीने में मिलता है। यह रिवाज निजी-सरकारी सभी संस्थानों में चलता है। उसी महीने का वेतन उसी महीने में देने का शायद ही कहीं कोई व्यवस्था हो।

परंतु रेल व्हील प्लांट, बेला की वित्त सलाहकार पुष्पा रानी ने मार्च के वेतन का भुगतान मार्च में ही कर दिया। इससे हजारों रेलकर्मियों पर आयकर का लगभग 15-20 हजार रुपये का अनपेक्षित भार आन पड़ा है।

जानकारों का कहना है कि अब तक मार्च का वेतन अप्रैल में दिया जाता रहा है, जिससे इसका आयकर एक अप्रैल से अगले नए शुरू हो रहे वित्त वर्ष में चला जाता है। यही प्रक्रिया वर्षों से चली आ रही है।

तथापि रेल पहिया कारखाना (आरडब्ल्यूपी), बेला की महाजिद्दी, महातुनकमिजाज, महागैरजिम्मेदार, महाअनुशासनहीन और महाभ्रष्ट वित्त सलाहकार (पीएफए) पुष्पा रानी ने आरडब्ल्यूपी के लगभग एक हजार से ज्यादा रेल कर्मचारियों का मार्च 2021 का वेतन मार्च में ही भुगतान करके इन सबके ऊपर आयकर का अनपेक्षित बोझ डाल दिया है।

“क्या इन कर्मचारियों का यह अतिरिक्त आयकर रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री पीयूष गोयल इस महाजिद्दी वित्त सलाहकार पुष्पा रानी के वेतन से वसूल करेंगे?”

पुष्पा रानी को उपरोक्त सारे “विशेषण” देते हुए उक्त सवाल प्लांट के भुक्तभोगी रेलकर्मी और अधिकारी पूछ रहे हैं, जिन पर हजारों रुपये का अनावश्यक आयकर बोझ डाल दिया गया है।

जानकारों का यह भी कहना है कि यदि ऐसा करने से पहले पीएफए/आरडब्ल्यूपी ने रेलवे बोर्ड से पूर्वानुमति ली थी, तो इसके लिए रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारी भी जिम्मेदार हैं।

उनका कहना है कि यदि ऐसा पूर्वानुमति से किया गया है, तो रेलवे बोर्ड ने यही प्रक्रिया सभी जोनल रेलों और उत्पादन इकाईयों में भी क्यों नहीं अपनाई?

उन्होंने कहा कि यदि यह काम सिर्फ आरडब्ल्यूपी बेला में ही किया गया है, तो सवाल यह उठता है कि वहीं ऐसा क्यों हुआ? आखिर एक पीएफए की यह मनमानी क्यों चल रही है?

वह कहते हैं कि किसका संरक्षण प्राप्त है इस अनुशासनहीन पीएफए को? रेलवे बोर्ड उसकी इस मनमानी और नियम-कायदे के घोर उल्लंघन को आंख मूंदकर आखिर क्यों बर्दाश्त कर रहा है?

उनका कहना है कि इतना सब होने के बाद भी यदि इस उद्दंड पीएफए पुष्पा रानी को किसी अन्य दूर-दराज की उत्पादन इकाई या जोनल रेलवे में ट्रांसफर नहीं किया जाता है, तो यह मान लिया जाएगा कि रेल प्रशासन (रेलवे बोर्ड) अब पूरी तरह से नपुंसकता का शिकार हो चुका है!

रेलकर्मियों का यह भी कहना था कि जो मान्यता प्राप्त रेल संगठन रेलकर्मियों के हितैषी होने का दम भरा करते थे, वह तो पहले ही मर चुके हैं अथवा उन्हें भी चुपचाप रहने में ही अपनी भलाई दिखाई दे रही है, ऐसे में रेलकर्मियों की कोई सुनने वाला नहीं रह गया है।

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