पदोन्नत आरपीएफ जवानों का जोनल ट्रांसफर भेदभावपूर्ण

बाबुओं की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए नियम स्पष्ट करे रेल प्रशासन

रेल सुरक्षा बल (आरपीएफ) की स्थानांतरण प्रक्रिया में भारी भेदभाव और पक्षपात हो रहा है। एक ही रैंक के डायरेक्ट भर्ती वाले के लिए अलग और उसी रैंक में पदोन्नति से आने वाले के लिए अलग नियम या बर्ताव कैसे हो सकता है? यह संवैधानिक रूप से समानता और मानवाधिकार के विरुद्ध है।

डायरेक्ट भर्ती नहीं होने वाले अर्थात प्रमोशन पाकर हेड कांस्टेबल, हवलदार, असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर, इंस्पेक्टर बनने वाले बल सदस्यों का जब जोनल ट्रांसफर होता है, तो जिस रैंक में वे भर्ती हुए थे, उसी रैंक पर उन्हें अन्य जोन में भेजा जाना नियमानुसार न सिर्फ गलत है, बहुत बड़ी विसंगति है, बल्कि यह अत्यंत भेदभावपूर्ण पशुवत् व्यवहार भी है। जबकि रेलवे के अन्य विभागों/कैडर्स में ऐसा नहीं है।

जब कोई कर्मचारी या जवान पूर्व अनापत्ति अनुमति लेने अथवा रेल प्रशासन द्वारा उसे यह अनुमति मिलने के बाद वह अन्य जोन में जाने पर अपने आप जूनियर हो जाता है, तब उसके रैंक अर्थात पद में कमी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर पदावनति है, जो बिना किसी अपराध के नहीं की जा सकती, यह सरासर नियम विरुद्ध प्रशासनिक आचरण है।

यदि प्रमोशन पाने वाला व्यक्ति अपने समान रैंक वाले बल सदस्य से म्युचुअल ट्रांसफर (परस्पर स्थानांतरण) करने को सहमत है, और प्रशासन ने भी इस पर अपनी पूर्व अनुमति (एनओसी) प्रदान की है, तो दूसरे जोन में उसे जूनियर बना दिया जाए, यह तो समझ में आता है, लेकिन उसके रैंक में कमी अर्थात अकारण, निरपराध और नियम विरुद्ध उसे पदावनत कर दिया जाए, यह सरासर अन्याय है।

मंडल सुरक्षा आयुक्त कार्यालयों में पदस्थ मुख्य कार्यालय अधीक्षक (चीफ ओएस) न सिर्फ केवल तनख्वाह ले रहे हैं, बल्कि अधिकारियों की जी-हजूरी और चापलूसी करके लंबी-लंबी अवधि तक एक ही स्थान, एक ही कार्यालय में जमें हुए हैं। इनमें से ज्यादातर को तो आरोप पत्र भी नियमानुसार देने नहीं आता।

उल्लेखनीय है कि बल सदस्यों के स्थानांतरण में सभी जोनों के यही बाबू अपनी मनमानी कर रहे हैं। जबकि अधिकारी इनकी कठपुतली बनकर रह जाते हैं। यह सर्वमान्य सत्य स्थिति है, पर उच्चारित कौन करे, कार्रवाई कौन करे, जब सब “चोर-चोर मौसेरे भाई” बने हुए हों!

इस पक्षपात और भेदभाव में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। यह कहते हुए कई बल सदस्यों ने बताया कि अगर कोई बल सदस्य, सिपाही में डायरेक्ट भर्ती हुआ और आधी नौकरी करके पदोन्नत होकर सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) बना है और अपने समान रैंक वाले बल सदस्य, यानि एएसआई से ही म्युचुअल ट्रांसफर की सहमति करता है, तो यही बाबू लोग उसको बोलते हैं कि ट्रांसफर होगा तो आरंभिक रैंक, यानि आरक्षी पद पर ही होगा।

उनका कहना है कि ये बहुत गलत व्यवहार उनके साथ किया जा रहा है, जबकि दूसरे जोन में जाने पर केवल उस रैंक में जूनियर होना ही नियम होना चाहिए। जैसा कि दूसरे विभागों या अन्य सरकारी नौकरियों में है।

एक तरफ आरपीएफ में अधिकारियों के अनावश्यक पदों का सृजन करके चोरी और भ्रष्टाचार सहित जवानों के उत्पीड़न को विस्तार दिया जा रहा है। इसके अलावा भी वर्क चार्ज पद सृजित करके सार्वजनिक राजस्व का अपव्यय किया जा रहा है। दूसरी तरफ जवानों को उनकी वाजिब सुविधाएं भी नहीं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

ज्ञातव्य है कि जीएम निरीक्षण के दौरान दिखावे के लिए अस्थाई तौर पर कोई एक आरपीएफ लाइन या बैरक को धो-पोंछकर चमका दिया जाता है। यह दिखावे का स्वर्ग बनाने का काम भी उन्हें ही करना पड़ता है जो एक दिन पहले तक उसी नर्क में रह रहे होते हैं। तथापि जीएम इंस्पेक्शन के बाद न सिर्फ यह सारी तथाकथित जगमग कुछ ही दिनों में गायब हो जाती है, बल्कि फिर कभी कोई अधिकारी वहां झांकने तक नहीं जाता।

आरपीएफ जवानों के उत्पीड़न, प्रताड़ना आदि पर अब तक बहुत कुछ कहा-लिखा जा चुका है, और अभी-भी बहुत कुछ लिखा-कहा जाना बाकी है। तथापि रेल प्रशासन बाबुओं की मनमानी और आरपीएफ अधिकारियों की अकर्मण्यता को अविलंब नियंत्रित कर उपरोक्त विषय पर नियम स्पष्ट करे।

इसके अलावा, खुद को #आईपीएस मानकर न सिर्फ निरंकुश होते जा रहे, बल्कि निहित उद्देश्य से इनके सभी अधिकार अपने तक सीमित कर लेने वाले डीजी के सामने भीगी बिल्ली बन जाने वाले #आरपीएफ अधिकारी तब से ज्यादा निरंकुश हो गए हैं, जब से इन्हें संगठित सेवा का दर्जा प्राप्त हुआ है। इनकी इस निरंकुशता पर यदि रेल प्रशासन ने समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो बची हुई रेल संपत्ति को भी ये निकट भविष्य में बेचकर खा जाएंगे!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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