क्या यही है “गुड एंड सिंपल टैक्स सिस्टम”
“वित्तमंत्री जो बोलती हैं, वह करती हैं, और जो नहीं बोलतीं, वह तो जरूर करती हैं!”
यह बात वित्तमंत्री द्वारा दिए गए बजट 2021 भाषण को सुनने के बाद उन पर पूरी तरह से लागू होती है, क्योंकि कर कानूनों में जो बदलाव पढ़े नहीं गए – वह व्यापारियों और उससे जुड़े लोगों की जिंदगी काफी कठिन करने वाले है:
क्या सरकार की मंशा सही में करों के सरलीकरण, तर्कसंगत और विवादों को कम करने की है, इन प्रस्तावित बदलावों को जानकर शायद किसी को ऐसा नहीं लगेगा:-
पहला कठोर प्रावधान:
आयकर की धारा 281 बी और जीएसटी की धारा 83(1) में यह प्रस्तावित किया गया है कि अब कर अपवंचना के मामले में कर अधिकारी एक साल तक कंपनी और फर्म की संपत्ति और बैंक खाते के अलावा इनके डायरेक्टर, पार्टनर, कंपनी सेक्रेटरी, कर्मचारी मैनेजर, सीए, एडवोकेट, और इनसे जुड़े आडिटर, सलाहकार एवं एडवोकेट की भी संपत्ति और बैंक खाते प्रोविजनल अटैचमेंट कर सकता है।
क्या यह न्याय संगत है, क्या ये कदम व्यापार में आसानी करेगा, क्या ये और विवादों को जन्म नहीं देगा, क्या ये काला कानून नहीं है, – जिसे वित्तमंत्री ने बोले बिना प्रस्तावित कर दिया है।
दूसरा कठोर प्रावधान:
एक ओर तो सरकार ने आयकर में केस खोलने की समयसीमा को 6 साल से 3 साल करना प्रस्तावित किया, जो कि 50 लाख रुपये से ऊपर की आय छुपाने पर लागू लागू होगा।
वहीं दूसरी और अब कर अधिकारी छोटी सूचना के आधार पर भी केस को खोल सकेंगे, ये भी प्रस्तावित कर दिया – मतलब साफ है, केस पहले से ज्यादा खुलेंगे, विवाद और बढ़ेंगे, सारी चीज फेसलेस होगी यानि दस्तावेजों पर आधारित होगी और कम समयावधि में बात रखनी होगी।
तीसरा कठोर प्रावधान:
आयकर के अंतर्गत एडवांस अथारिटी ऑफ रुलिंग में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज सदस्य होते हैं और निष्पक्ष रुलिंग देते हैं, लेकिन अब इसमें विभाग के ही चीफ कमीश्नर लेवल के अधिकारी ही सदस्य होंगे, जिनसे निष्पक्षता मिलने पर संशय होता है।
चौथा कठोर प्रावधान:
व्यापारी द्वारा अपने कर्मचारियों का पीएफ कभी कुछ देरी से जमा कर दिया जाता है और उसकी खर्च में छूट जमा करने पर मिल जाया करती थी, लेकिन अब प्रस्तावित किया गया है कि देर से जमा करने के बाद भी छूट तो दूर, उल्टा उसे आय माना जायेगा।
यह एक तरह से व्यापारी पर दोहरे कर की मार होगी, तो क्या छोटी सी गलती की इतनी कठोर सजा – क्या यही करों का सरलीकरण है?
पांचवा कठोर प्रावधान:
जीएसटी की धारा 75 (12) में यदि गलती से आपने अधिक टैक्स की गणना कर दी तो वह स्व कर निर्धारण टैक्स मानकर आपसे बिना कोई शो कॉज नोटिस जारी किए बिना वसूला जाएगा।
इसी तरह यदि जीएसटीआर 1 और 3 बी में अंतर हुआ, तो कर अधिकारी आपके रजिस्ट्रेशन को रद्द भी कर सकता है।
मतलब गलती की कोई गुंजाइश नहीं – रिटर्न आप रिवाइज कर नहीं सकते, इसलिए गलती से भी गलती हो गई तो आफत।
क्या ये गुड एंड सिंपल टैक्स सिस्टम है – जिसे लगातार और उलझाया ही जा रहा है।
छठवां कठोर प्रावधान:
इनपुट क्रेडिट अब सप्लायर द्वारा रिटर्न फाइल करने पर और इसकी सूचना खरीददार को देने पर ही मिलेगा।
मतलब ये कि आपके पास खरीद संबंधित दस्तावेज से कोई मतलब नहीं। सरकार की मंशा साफ है कि वो इनपुट का क्लेम व्यापारी को नहीं देना चाहती, हवा तो सिर्फ टैक्स लेना चाहती है।
सातवां कठोर प्रावधान:
ट्रांसिट के समय माल जब्ती के केस में आप चाहे सही हो या गलत, छोटी सी गलती होने पर भी पेनाल्टी का 25% अनिवार्य रूप से जमा करना होगा।
इसके अलावा कमीश्नर धारा 151 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को नोटिस देकर सूचना मांग सकता हैं, फिर चाहे वो व्यक्ति किसी व्यापारिक लेनदेन से जुड़ा हो या नहीं।
वित्तमंत्री और सीबीडीटी चीफ द्वारा हर व्यापारिक संगठन की मीटिंग में ये प्रचार किया जा रहा है, करों को जनता के लिए सरल बना रहे हैं और व्यापार की आसानी बढ़ा रहे हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से आप प्रावधान को कठोर कर रहे हैं, जिसका जिक्र आप अपने बजट भाषण में करने से कतराते हैं – तो हम कैसे सरकार की नीयत पर शक न करें।
ऐसे कठोर प्रावधान माननीय राष्ट्रपति की मोहर लगने से पहले इनमें अपेक्षित सुधार होने चाहिए।
साभार: सोशल मीडिया