कल्याण का मंडल रेल चिकित्सालय बना सफेद हाथी
डॉक्टर उपलब्ध नहीं, दवाएं उपलब्ध नहीं, आखिर रेलकर्मी जाएं तो जाएं कहां?
कल्याण स्थित मध्य रेलवे, मुंबई मंडल के मंडल रेल अस्पताल की व्यवस्था में लगातार गिरावट आती जा रही है। भारतीय रेल के सबसे ज्यादा कर्मचारियों वाला मंडल होने के बावजूद मुंबई मंडल के इस अस्पताल में घोर अव्यवस्था की स्थिति है।
यहां डॉक्टरों की कमी इस हद तक हो गई है कि यदि ओपीडी चालू किया जाता है, तो ओटी (ऑपरेशन थिएटर) बंद करना पड़ रहा है। ओपीडी में भी आधे-अधूरे डॉक्टर ही उपलब्ध होते हैं।
दो डॉक्टर काफी लंबे समय से अनुपस्थित हैं। एक डॉक्टर अपने सीनियर्स की हरकतों से परेशान होकर इस्तीफा देकर चले गए हैं। एक डॉक्टर स्टडी लीव पर चले गए हैं। एक डॉक्टर का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो चुका है। एक लेडी डॉक्टर मेटरनिटी लीव पर है।
कल्याण का एक डॉक्टर भायखला में काम कर रहा है। लोनावाला के डॉक्टर को दूसरे डिवीजन (पुणे) में काम करने के लिए भेजा हुआ है। यह तो वही किस्सा हो गया कि खुद भूखे बैठे हुए हैं और दूसरों का पेट पाल रहे हैं।
अब लोनावाला हेल्थ यूनिट संभालने के लिए कल्याण से एक डॉक्टर भेजा गया है। परेल-माटुंगा में एक-एक डॉक्टर की कमी है। पनवेल और सीएसएमटी हेल्थ यूनिट में डॉक्टर ही नहीं है।
इन सभी हेल्थ यूनिटों को भी कल्याण से ही डॉक्टर भेजकर मैनेज करना पड़ रहा है। मध्य रेलवे, मुंबई मंडल में अनेकों डिस्पेंसरी कार्यरत हैं, जो कि कल्याण के मंडल अस्पताल से ही मैनेज की जाती हैं।
कर्मचारी कहते हैं कि वर्तमान पीसीएमडी/म.रे. किस स्वभाव के व्यक्ति हैं, यह किसी भी समझ से परे है। वह केवल रेलवे से वेतन लेने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, बाकी पीसीएमडी के जैसा कोई भी कार्य जब से यहां आए हैं, इन्होंने कभी नहीं किया।
मंडल रेल अस्पताल, कल्याण के सीएमएस के मिजाज को देखते हुए कोई कर्मचारी उनके पास जाना नहीं चाहता, क्योंकि उनसे बात करने जाना कर्मचारियों को अपना समय बर्बाद करना लगता है।
जबकि कल्याण रेल अस्पताल की एसीएमएस सर्वज्ञ हैं। वह कर्मचारी की बात पूरी होने से पहले ही अपना निर्णय सुना देती हैं। वह अपनी मनमर्जी से अपने निर्णय लेती रहती हैं, उनको किसी से पूछने-पछोरने की जरूरत नहीं रहती।
कल्याण के मंडल अस्पताल में दो डॉक्टर तो केवल प्रशासनिक कार्य के नाम पर ही स्पेयर हो जाते हैं। यह दोनों डॉक्टर मरीजों को नहीं देखते हैं। एक डॉक्टर नाइट करके जाते हैं, इसीलिए उपलब्ध नहीं रहते।
एक-एक डॉक्टर इवनिंग और नाइट के लिए रहते हैं। दो से तीन डॉक्टरों की जरूरत प्रतिदिन ओटी में होती है। जब से कोविड की शुरुआत हुई है, तब से यहां का अधिकांश सिस्टम कोविड में ही व्यस्त है।
ओपीडी में लोग भटकते-घूमते रहे हैं। किसी भी डॉक्टर को मरीजों को देखने के लिए बैठा दिया गया है। मरीजों की धक्का-मुक्की लाइन इस तरह रहती है कि कल्याण अस्पताल में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन होना संभव ही नहीं दिखता।
इतने के बावजूद मरीजों की न तो देखभाल हो पा रही है और न ही उनको दवाएं उपलब्ध हो रही हैं। अनेकों जीवन उपयोगी दवाएं महीनों से इस मंडल अस्पताल में उपलब्ध नहीं है।
मरीजों को न तो लोकल पर्चेज (एलपी) करके दवाएं दी जा रही हैं, और न ही अस्पताल के डॉक्टर एलपी करने को लिखकर देने के लिए तैयार होते हैं।
कर्मचारी अपनी जान बचाने के लिए बाहर के डॉक्टरों का सहारा ले रहे हैं। बाजार से दवाएं खरीद रहे हैं।
मरीजों के लिए बेहद जरूरी दवाएं उपलब्ध न होना, डॉक्टरों का उपलब्ध न होना, तब इस अस्पताल के मायने क्या रह जाते हैं? यह पूछते घूम रहे हैं रेलकर्मी, परंतु उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है।
एडमिनिस्ट्रेटर (सीएमएस/एसीएमएस) द्वारा जूनियर डॉक्टर इस कदर बेइज्जत किए जाते हैं कि उनकी सहनशक्ति खत्म हो जाती है और वे यहां से भाग खड़े होते हैं। डॉ मिथिलेश आखिर इसी कारण तो इस्तीफा देकर चले गए हैं।
आज 118 बेड का यह अस्पताल बिना फिजीशियन के चल रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य रेलकर्मियों और रेल प्रशासन के लिए और क्या हो सकता है?
भायखला स्थित मध्य रेलवे के जोनल अस्पताल में चूंकि एचओडी और पीएचओडी के इलाज होते हैं, अतः वहां पर हर फैकल्टी के कई-कई डॉक्टर उपलब्ध हैं।
इसके साथ ही वहां पर इंटर्नशिप करने वाले अनेकों डॉक्टर भी उपलब्ध रहते हैं। परंतु कल्याण हॉस्पिटल इन सभी अभावों में कैसे चल रहा है, यह किसी भी समझ में नहीं आ रहा है।
वास्तव में कल्याण का मंडल रेल अस्पताल, अस्पताल होने की जिम्मेदारी ही नहीं निभा पा रहा है। रेल प्रशासन द्वारा अपने रेलकर्मियों तथा उनके परिवारों की इस तरह की अनदेखी करना, डॉक्टरों की कमी पर संज्ञान न लेना बेहद क्रूरता को दर्शाता है।
महामारी के इस कठिन समय में जबकि कोविड से पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है, तब इस अस्पताल में न तो डॉक्टर हैं, और न ही जीवनोपयोगी दवाएं उपलब्ध हो रही हैं। रेलवे के करोड़ों रुपए व्यर्थ बर्बाद किए जा रहे हैं।
रेल प्रशासन से उम्मीद की जाती है कि वह उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान देकर त्वरित कार्यवाही करके अपने कर्मचारियों तथा उनके परिजनों की जान बचाने का प्रयास करे।
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