ट्रैकमैनों की सिर्फ एक मांग पूरी करवा दें मान्यताप्राप्त रेल संगठन
ट्रैकमैनों की यह मांग माने जाने पर रेल प्रशासन पर भी नहीं पड़ेगा कोई वित्तीय बोझ
मान्यताप्राप्त रेल संगठन यदि किसी कैटेगरी पर सबसे अधिक निर्भर रहे हैं तो वह है ट्रैकमैन कैटेगरी। उनके सभी धरनों, मोर्चों, आंदोलनों आदि में सबसे अधिक उपस्थिति और भागीदारी इसी कैटेगरी की होती रही है। इन्हीं की बदौलत उनके यह सब कार्यक्रम अब तक सफल होते रहे हैं।
परंतु रेल में यदि कोई सबसे अधिक शोषित, उत्पीड़ित और उपेक्षित कैटेगरी रही है, और अभी भी है, तो वह भी ट्रैकमैन कैटेगरी ही है। हालांकि इस कैटेगरी की न कोई बहुत बड़ी अपेक्षा है और न ही कोई बहुत बड़ी मांग। परंतु ट्रैकमैनों की निम्नलिखित सामान्य और मामूली चार प्रमुख मांगें हैं –
- एलडीसी ओपन टू ऑल
- बेसिक का 30% ड्यूटी एलाउंस
- लगातार 8 घंटे ड्यूटी
- ट्रैक मेंटेनर का ग्रेड पे 4200 तक प्रमोशन
“यह 4 मांगें रेल प्रशासन से मनवाने की मंशा शायद इन मान्यताप्राप्त रेल संगठनों की भी नहीं है और शायद इनके वश की बात भी नहीं है अथवा ये जानबूझकर यह मामूली मांगें नहीं मनवा पा रहे हैं!” यह कहना है लगभग सभी ट्रैकमैनों का।
परंतु इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि “उपरोक्त चारों में से एक मांग ऐसी है जो यह दोनों लेबर फेडरेशन मिलकर या कोई भी एक फेडरेशन पूरी करवा दे, तो बहुत हद तक एक मानवीय पहलू को जिंदा रखा जा सकता है।”
वह मांग है “हर प्रकार की “पेट्रोलिंग” में दो पेट्रोलमैन एक साथ होंगे!”
चाहे गश्त (पेट्रोलिंग) – दैनिक हो, शीतकालीन हो, ग्रीष्मकालीन हो, आपातकालीन हो!
उनका कहना है कि “अगर यह एक मांग भी मान्यताप्राप्त रेल संगठन मान्य करा देते हैं तो रन ओवर की घटनाओं पर बहुत हद तक विराम लगेगा और पूरी भारतीय रेल में चाबी वाले जैसे कठिन कार्यों में कुछ रिलैक्स मिलेगा।”
उन्होंने कहा कि इस मांग को पूरा करने में रेल प्रशासन को कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसको पूरा करने में रेलवे पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ने वाला है, बल्कि इसके बदले सालाना न सिर्फ सैकड़ों की संख्या में जनहानि बचेगी, बल्कि काम करना भी आसान होगा।
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी
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