किसको दिग्भ्रमित कर रहे हैं सीईओ/नीति आयोग और सीईओ/रेलवे?

निजी बैंकों के आने से सरकारी बैंकों की सेवाओं में कोई सुधार नहीं आया, उल्टे और सत्यानाश ही हुआ!

नीति आयोग के सीईओ और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन उर्फ सीईओ प्रतिस्पर्धा बढ़ने की बात कहकर आखिर किसको दिग्भ्रमित कर रहे है?

रेलवे के प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) अथवा कॉरपोरेटेटाइजेशन (निगमीकरण) को सही ठहराते हुए इनका यह कहना अपने आप में कितना हास्यास्पद है कि “जब देश में प्राइवेट बैंक आए, तो स्टेट बैंक बंद थोड़े ही हो गया था। इससे तो कंपीटिशन ही बढ़ा और क्वालिटी बेहतर हुई।”

तो महाशय, प्राइवेट बैंक अपनी व्यवस्था साथ लेकर आया था, भवन किराये पर लिए थे या खुद निर्मित किए थे और अपने कॉरपोरेट ऑफिस स्थापित किए थे। सैकड़ों-हजारों लोगों को नौकरियां दी थीं।

जबकि रेलवे में आने वाला यह “प्राइवेट” आपकी – रेल, आपकी पटरी, आपका स्टेशन, आपका स्टाफ ‘यूज’ करेगा और खर्चा उठायेंगे आप यानि रेलवे – भारत सरकार, यानि आम करदाता यानि देश की जनता!

आपके इस “प्राइवेट” का लक्ष्य है प्राॅफिट, और सिर्फ प्राॅफिट, इसके अलावा कुछ नहीं।

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स्टाफ के, रेलवे के, रोजी-रोटी के साथ सबसे बड़ी दगाबाजी ये कागजी शेर यूनियन और फेडरेशन वाले कर रहे हैं। इन्होंने अपना जमीर बेच दिया है कुर्सी की खातिर!

याद है जब रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशनों ने दूसरी बार आम रेल हड़ताल के लिए जनमत संग्रह कराया था, तब 98% रेलकर्मियों ने हड़ताल के पक्ष में मतदान किया था।

तब दोनों फेडरेशनों के नेताओं को बुलाकर सरकार ने वह ड्राफ्ट उन्हें दिखा दिया था कि यदि वे ज्यादा तीन-पांच करेंगे तो यूनियनों/फेडरेशनों से सभी रिटायर्ड पदाधिकारियों को निकाले जाने का यह तैयार ड्राफ्ट लागू करके उन्हें सभी सरकारी आलीशान सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा, फिर घर बैठकर आराम करना।

तब से लेकर आज तक इन यूनियनों/फेडरेशनों के तथाकथित नेताओं के बोल नहीं फूट रहे हैं।

“बगावत” के लिए कलेजा चाहिए !

तलवे चाटने के लिए एक जीभ ही काफी है !!

(#बगावत – अपनी बात कहने के संदर्भ)

यह जो जन-जागरूकता सप्ताह और कथित वर्चुअल रैलियां हो रही हैं, वह सब दिखावा और नाटकबाजी है। रेलकर्मियों और जनता को भरमाए रखने की यह वैसी ही चालबाजी है जैसी सरकार देश की जनता के साथ कर रही है।

अतः रेलवे का रसातल में जाना तय है। न स्टेशन रहेगा, न ये बड़े-बड़े बंगले और भवन रह जाएंगे। आपके अच्छे दिन आ गये हैं।

और हां, किसी मुगालते में न रहें, प्राइवेट बैंक आने से स्टेट बैंक की क्वालिटी में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टे साढ़े-सत्यानाश ही हुआ है। यह भी याद रखें!

#CRB/#CEO सहित #FROA, #IRPOF, #AIRF और #NFIR के मूर्धन्य पदाधिकारियों को समर्पित

कोहनी पर टिके हुए लोग,

टुकड़ों पर बिके हुए लोग!

करते हैं बरगद की बातें,

ये गमले में उगे हुए लोग!!

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