यदि रेल डूबेगी, तो वह भी डूबेंगे

भारतीय रेल के उच्च प्रबंधन की दुर्दशा

रेलवे बोर्ड का पहला सीईओ सेवानिवृत्त अधिकारी को बनाया गया है।

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कर्मचारियों के मान्यताप्रात संगठनों के लगभग सभी कर्ताधर्ता सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं।

फिर अनुमान लगाया जा सकता है कि जमीनी स्तर पर रेलवे की क्या दुर्दशा हो रही है और आगे कितनी होने वाली है।

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कार्यरत रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में भयंकर असंतोष पनप रहा है, लेकिन देश के तथाकथित सर्वेसर्वा के इवेंट मैनेजरों की पूरी टीम इसे रेलवे में आमूलचूल परिवर्तन का ढ़िंढ़ोरा पीटने में लगी है।

वैसे देखा जाए तो ये ठीक भी हो रहा है, क्योंकि जब तक अधिकारी कुर्सी पर बना रहता है, वह दंभ में रहता है।

अधिकारियों को उनके अधीनस्थ कर्मचारी बेकार और कामचोर नजर आते हैं, तो अब समय उसी का जवाब दे रहा है।

इसी तरह मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों को लगता है कि सभी रेलकर्मी उनकी कारगुजारियों से अनभिज्ञ हैं।

सीईओ को बड़ा-बड़ा हार पहनाकर वह जो उनकी चापलूसी में लगे हुए हैं, आने वाले समय में उनका भी पत्ता यही सीईओ साफ कर देगा।

अब इन सब लोगों को समझ में आएगा कि इस पूरी व्यवस्था में उनकी क्या हैसियत है! यदि रेल डूबेगी, तो वह भी डूबेंगे।