निजी ट्रेन के पीछे एक घंटे तक नहीं होगी कोई दूसरी ट्रेन

जनता को लुटवाने और निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया जा रहा है निजी ट्रेन ऑपरेशन मॉडल

भारतीय रेल का निजी ट्रेन ऑपरेशन (पीपीपी) मॉडल कुछ ऐसा बनाया जा रहा कि इसके तहत 109 क्लस्टर रूट – सर्वाधिक व्यस्त और फायदेमंद मार्गों – पर जो निजी ट्रेनें चलेंगी, उनके पीछे करीब एक घंटे (न्यूनतम 60 मिनट) तक भारतीय रेल की भी कोई अन्य ट्रेन नहीं चलेगी।

रेलवे बोर्ड निजी ट्रेनों को चलाने की रूपरेखा बनाने में तेजी से जुटा हुआ है। टेंडर प्रक्रिया पूरी होने से पहले रेलवे उन सभी रूटों पर ट्रायल करेगा। विशेष बात है कि यह सभी भारतीय रेल के सबसे व्यस्त और लाभप्रद रूट हैं, जो निजी कंपनियों को सौंपे जा रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि पीपीपी मॉडल पर दौड़ने वाली ट्रेनों का टाइम टेबल नए सिरे से बनाया जाएगा। एक ट्रेन गुजरने के बाद कम से कम 60 मिनट यानि एक घंटे तक वह रूट खाली रखना रहेगा। ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि ट्रेन का संचालन कर रही कंपनी को नुकसान न हो। अगर उसी ट्रैक पर कुछ ही देर में दूसरी ट्रेन आती है, तो यात्री पीपीपी मॉडल वाली ट्रेन में नहीं बैठेंगे।

उत्तर रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार तेजस एक्सप्रेस की तर्ज पर 151 निजी ट्रेन चलाने की योजना है। इस प्रक्रिया को जल्दी से जल्दी पूरा करने में रेलवे बोर्ड बड़ी तत्परता से जुटा हुआ है। रेलवे ने इसके लिए 109 रूट्स का चयन किया है। इन रूट्स पर भी कई तरह के बदलाव किए जा रहे हैं।

अधिकारी का कहना था कि चूंकि इन निजी ट्रेनों को चलाने वाले केवल ड्राइवर और गार्ड ही रेलवे के होंगे, बाकी स्टाफ निजी कंपनी का रहेगा। प्राइवेट कंपनी ही टिकट बुक करेगी और टीटीई भी उसी कंपनी के रहेंगे।

अभी जो व्यवस्था है, उसमें एक ट्रेन के 15 मिनट बाद भी दूसरी गाड़ी आ सकती है। सर्दियों के मौसम में जब धुंध पड़ती है, तब एक ही ट्रैक पर कई गाड़ियां आगे पीछे होती हैं। साथ ही एक एक्सप्रेस गाड़ी जाने के थोड़ी देर बाद पेसेंजर या मेल ट्रेन आ जाती है। ट्रेन में भीड़ भी बहुत रहती है। बहुत से यात्री सोचते हैं कि पीछे आ रही दूसरी गाड़ी में बैठ जाएंगे। लेकिन पीपीपी योजना में यह व्यवस्था नहीं होगी। चूंकि इसमें केवल फायदा देखा जाएगा, इसलिए पीछे आ रही ट्रेनों का समय बदलना पड़ेगा।

यह तो तय है कि पीपीपी मॉडल पर चलने वाली प्राइवेट ट्रेनों का यात्री किराया काफी महंगा होगा। इस संबंध में हाल ही में चेयरमैन, रेलवे बोर्ड विनोद कुमार यादव ने अपने एक बयान में कहा था कि “अभी सिर्फ 5% ट्रेनों का परिचालन प्राइवेट ऑपरेटर्स को दिया जा रहा है। बाकी 95% ट्रेनों का परिचालन भारतीय रेलवे ही करेगी।”

उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा था कि “नई व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा रहेगी, मगर प्राइवेट ट्रेन ऑपरेटर अपनी मनमानी से यात्री किराया तय नहीं कर सकेंगे। एसी बस और हवाई जहाज के मुकाबले इनका में किराया ज्यादा नहीं होगा।”

ज्ञातव्य है कि निजी ट्रेन ऑपरेशन और इनके किरायों को लेकर न सिर्फ मंत्री और सीआरबी द्वारा अलग-अलग बयान दिए जा रहे हैं, बल्कि देश की जनता को पूरी तरह से अंधेरे में रखा जा रहा है।

पीक सीजन और त्योहारों के समय जब हवाई कंपनियों तथा निजी बस संचालकों द्वारा अनाप-शनाप किराए बढ़ाकर वसूले जाते हैं, तब तो सरकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं रहता।

इसी तरह निजी ट्रेन ऑपरेटर भी जब यही करेंगे, तब उन्हें कौन रोक लेगा? इस बात का कोई जवाब फिलहाल रेलमंत्री और सीआरबी के पास नहीं है।

समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है, परंतु यहां कहना पड़ेगा कि बिना सोचे-समझे और पर्याप्त तैयारी किए जनता को लुटवाने और कुछ निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का पूरा इंतजाम किया जा रहा है।