मुंबई, दिल्ली और चेन्नई, तीनों महानगरों में कार्यरत रेलकर्मियों को है कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरा
सैकड़ों रेलकर्मी हो रहे हैं कोरोना संक्रमित, परंतु रेल प्रशासन को नहीं है उनके मरने-जीने की कोई परवाह!
यह सर्वविदित है कि मुंबई महानगर कोरोना वायरस की महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है। दिन प्रति प्रतिदिन इसके मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। फिलहाल निकट भविष्य में इनके नियंत्रण की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। तथापि मजबूरीवश राज्य सरकार को सीमित लॉकडाउन के चलते भी कामकाजी गतिविधियां शुरू करनी पड़ रही हैं। इस हेतु अब राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए उसके कहने और टिकट भाड़ा वहन करने पर सोमवार, 15 जून से मध्य एवं पश्चिम रेलवे को सीमित लोकल ट्रेनों की भी शुरुआत करनी पड़ी है।
यह सही है कि किसी महामारी अथवा किन्हीं विपरीत परिस्थितियों के कारण तमाम कामकाजी और व्यावसायिक गतिविधियां लंबे समय तक रोककर नहीं रखी जा सकतीं। तथापि फील्ड में बड़ी संख्या में कार्यरत अपने कर्मचारियों के लिए उनसे बचाव के हरसंभव उपाय अवश्य अपनाए जा सकते हैं, क्योंकि तमाम नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों ने तो अपने बचाव के सभी संभव उपाय कर लिए हैं, यही कारण है कि एकाध अपवाद को छोड़कर इनमें से कोई भी इस महामारी से ज्यादा प्रभावित होता नजर नहीं आया। परंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि कर्मचारियों के मामले में राज्य सरकार और रेल प्रशासन दोनों प्राधिकारों द्वारा भारी कोताही बरती जा रही है।
अब जहां तक रेलकर्मियों की बात है, तो ऐसा लगता है जैसे कि उनका कोई माई-बाप ही नहीं रह गया है और उन्हें इस महामारी से निपटने तथा काम करने के लिए भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। भले ही रेलवे द्वारा इस महामारी से मरने और संक्रमित होने वाले रेलकर्मियों का एकीकृत आंकड़ा जारी नहीं किया जा रहा है, परंतु एक अनुमान के अनुसार रेलवे में कार्यरत सैकड़ों कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। हर दिन दो-चार-दस की संख्या में ऐसी मौतें होने की खबरें किसी न किसी जोनल रेलवे से आ रही हैं। तथापि जोनो/मंडलों में इन असामयिक मौतों को लेकर कोई चिंता है, ऐसा नहीं लगता!
इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित रेलवे का फील्ड स्टाफ हो रहा है, जिनमें टीटीई, लोको पायलट्स, गार्ड्स, ट्रैक मेनटेनर, सिग्नल मेनटेनर, कमर्शियल एवं ट्रैफिक स्टाफ प्रमुख रूप से शामिल है। इसके अलावा ऑफिस स्टाफ भी इसलिए प्रभावित हो रहा है, क्योंकि वहां भी काम करते हुए फिजिकल डिस्टेंसिंग नियमों का पर्याप्त रूप से पालन करना संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि निर्देशित 20% स्टाफ के बजाय लगभग पूरे ऑफिस स्टाफ को जबरन ड्यूटी पर बुलाया जा रहा है। इस सब के लिए अधिकारियों की प्रशासनिक एवं अनुशासनिक दादागीरी और मनमानी भी जिम्मेदार है।
उदाहरण स्वरुप पश्चिम रेलवे के वसई स्टेशन पर पिछले हफ्ते चार रेलकर्मियों को कोरोना संक्रमित पाया गया था। इसके लिए उन्हें इलाज हेतु भेजने के बाद पता चला कि उन चारों के संपर्क में करीब 45-46 जो अन्य रेलकर्मी भी आए थे, उन्हें नियमानुसार 14 दिन के लिए होम कोरेंटीन की एडवाइस की गई थी और पूरा वसई स्टेशन बंद कर दिया गया था। परंतु अभी उनका यह निर्धारित पीरियड पूरा भी नहीं हुआ था कि राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए सोमवार, 15 जून से लोकल शुरू होते ही उन सभी को फौरन ड्यूटी पर पहुंचने का आदेश मुंबई सेंट्रल मंडल के संबंधित वाणिज्य अधिकारी द्वारा दनदना दिया गया।
इसी तरह पश्चिम रेलवे के ही सूरत रेलवे स्टेशन पर एक चीफ टिकट इंस्पेक्टर (सीटीआई) के 2 जून को कोरोना पॉजिटिव, जिसकी जांच रिपोर्ट 12 जून को मिली, पाए जाने के बाद वहां के 21-22 स्टाफ को होम कोरेंटीन किया गया था। इनमें दो एडीआरएम और एक डीसीएम जैसे बड़े अधिकारी भी शामिल थे। यह सभी लोग उक्त सीटीआई के संपर्क में आए थे। इसी प्रकार उधना रेलवे स्टेशन पर भी एक बुकिंग क्लर्क को पॉजिटिव पाए जाने पर वहां के स्टेशन स्टाफ को भी आइसोलेट किया गया।
वसई और सूरत के मामलों में मंडल अधिकारियों द्वारा बरती गई लापरवाही तथा मनमानी का विरोध दोनों यूनियनों (डब्ल्यूआरएमएस/डब्ल्यूआरईयू) के मंडल एवं मुख्यालय पदाधिकारियों द्वारा किया गया है, परंतु उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई, क्योंकि किसी की भी नहीं सुनने का जैसा रवैया केंद्र सरकार ने अपना रखा है, वैसा ही रवैया केंद्र सरकार के अधिकारियों ने भी लंबे समय से अपनाया हुआ है। नतीजा यह है कि कोई भी कितना ही चिल्लाता रहे, किसी की कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
इसके अलावा दक्षिण रेलवे, उत्तर रेलवे की स्थिति भी काफी डरावनी है। पिछले हफ्ते दक्षिण रेलवे के पेरंबूर, चेन्नई स्थित प्रमुख रेलवे अस्पताल में एक साथ बीस रेलकर्मियों की मौत की खबर स्थानीय अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित हुई थी। इसी तरह उत्तर रेलवे मुख्यालय बड़ौदा हाउस और भारतीय रेल के मुख्यालय “रेल भवन” में भी कई अधिकारी और कर्मचारी इस महामारी से प्रभावित हो चुके हैं। उत्तर रेलवे के सेंट्रल हॉस्पिटल की दुर्गति, कोविद केसेस की जांचों में कमीशनखोरी और एमडी को जनरल प्रैक्टिस में भेजे जाने के बाद पुनः उसी पद पर उनकी पुनर्नियुक्ति में रेल प्रशासन की पूरी मनमानी भी सामने आ चुकी है।
अन्य जोनल रेलों में भी उपरोक्त से स्थिति अलग नहीं है। मगर मुंबई, दिल्ली और चेन्नई में जो हालत चल रही है, उसको देखते हुए इन तीनों महानगरों में कार्यरत अधिकांश रेलकर्मियों को संक्रमण का खतरा ज्यादा है। अतः यदि सेफ और सिक्योर वर्किंग सुनिश्चित करनी है, तो रेल प्रशासन को अपने कर्मचारियों के लिए इस महामारी से बचाव के पर्याप्त इंतजाम करने के साथ ही केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा जारी की गई नियमावली का अक्षरशः पालन करवाना भी सुनिश्चित करना होगा।
Chief Typist of SrDOM/G office, Mumbai Division, Central Railway, B. R. Damse expired on Monday, 15th June morning at Kalyan Railway hospital. He was admitted in Kalyan Railway Hospital on Sunday, 14th June of breathlessness. As per Doctors of Kalyan Railway Hospital, a case of suspected Covid. As per sources, he last attended office on 5/6/2020. Entire SrDOM office is being fully sanitised on Monday. The Office was Last sanitised on 12/6/2020.
“It is come to know that a vacant building, behind building no.8 is handed over to BMC for covid-19 patients, if it is true we all have to protest against it, to save containment of our Mazgaon Railway colony”, this message viral on social media on Saturday-Sunday in between employee and officers who resides at Mazgoan Railway colony.