“मेरा भारत महान”

डाॅ. रवीन्द्र कुमार

अमेरिकन एयरलाइन्स में प्रति विमान 128 कर्मचारी हैं और मेरे भारत महान की महान एयरलाइन्स में प्रति विमान कुल 588 कर्मचारी। एक से बढ़कर एक महान भारतीय कर्मचारी। मंत्री महोदय ने यह खुलासा किया है। इस खुलासे को अखबारों ने चटखारे ले लेकर मुख पृष्ठ पर छापा। इसमें ताज़्ज़ुब कैसा!

अमरीका में तो बंदे हैं ही नहीं और ‘मेरा भारत महान’ इस मामले में हीरो नंबर वन है। भला अमरीका क्या खा के हम एक सौ बत्तीस करोड़ भारतीयों का मुक़ाबला करेगा! अमरीका में सब काम ऑटोमेटिक है। हमारे देश में ऑटोमेटिक चीजें चलाने, बंद करने, और उनके रख-रखाव, निगरानी करने को भी ढ़ेर सारे लोग रखने पड़ते हैं।

सरकारी मकान में बल्ब बदलने को भी तीन आदमी एकसाथ जाते हैं। एक रौब-दाब वाला सुपरवाइजर। एक बल्ब का झोला पकड़े रहता है और तीसरा सीढ़ी उठाकर चलता है। तो ये ठाठ हैं। अब क्या अमरीका वाले ऐसे ठाठ कर सकते हैं! वो तो ये ‘एफोर्ड’ ही नहीं कर सकते।

कहते हैं वहां के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में भी सैल्फ सर्विस है। हमारे यहां सरकारी सुपर बज़ार में भी सैल्फ सर्विस रखी थी। मगर हिंदुस्तानियों ने उसका गलत मतलब निकाल लिया। उसके चलते इतनी सैल्फ सर्विस की, कि तमाम सुपर बाजार को अपने घर ही ले गए. सुपर बाजार वाले नारा ही ऐसा देते थे ‘सुपर बाज़ार – अपना बाजार’!

सुपर बाजार नुकसान में जाते-जाते तबाह हो गए। अब सरकार उनका निजीकरण करेगी। सुपर बाजार वाले जो न जाने कब से उसका निजीकरण करे बैठे थे, अब इसका विरोध कर रहे हैं।

विरोध तो पर्यटन विकास निगम वाले भी कर रहे हैं कि निजीकरण करना ठीक नहीं। फिर उनके ‘विकास’ का क्या होगा! उनके एक होटल में सरकारी अमला है पांच सौ का, और गेस्ट हैं पांच। यानि कि पर गेस्ट सौ कर्मचारी अतिथि की सेवा में रहते हैं। हों भी क्यों न! भारत में अतिथि सेवा की एक दीर्घ परम्परा जो है – अतिथि देवो भव! ये बात अमरीका वाले सौ जनम में भी नहीं समझ सकते। वो तो बस पीठ पर अपना सामान लादे-लादे भिखारियों की तरह दुनिया घूमते-फिरते हैं।

136 तरह के तेल-शैम्पू और 256 तरह के साबुन बापरने के बाद जो ‘मिस यूनिवर्स’ और ‘मिस वर्ल्ड’ निखर कर आ रही हैं, उनसे जो मार्किट चलनी थी, सो चल ली। अब किसी दिन लेटेस्ट एड आएगा कि मैं पेप्सी से नहाती हूं या फिर कोकाकोला से सिर धोती हूं। इससे न केवल बाल रेशमी, घने मुलायम रहते हैं, बल्कि ताजगी भी पहुंचती है. ठंडा-ठंडा यानि कोकाकोला!

बहुराष्ट्रीय कम्पन्यां जल्द ही हवा और पानी पर अपना कब्जा कर लेंगी। पानी पर तो एक तरह से कर ही लिया है। छोटी बोतल, मीडियम बोतल, बड़ा जार के बाद अब छोटी-छोटी दो घूंट पानी वाले सेशै भी मार्किट में उतरेंगे, ताकि झोंपड़-पट्टी वाले भी आठ आने में ये ‘मिनरल वाटर’ पी सकें। साफ पानी पर उनका भी तो कुछ हक बनता है।

जिस तरह पानी के बड़े-बड़े जार की सप्लाई दफ्तरों में होती है, उसी तरह ऑक्सीजन के सिलेंडर घर-घर जाया करेंगे। कुकिंग गैस के सिलेंडर के साथ हरे-हरे रंग के बायो-फ्रेंडली क्यूट से ब्रीदिंग सिलेंडर। घर भर के लिए महीने भर का ऑक्सीजन का कोटा। पड़ोसनें एक-दूसरे से कहेंगी “बहन ! एक सिलेंडर स्पेयर में पड़ा है क्या?” बच्चों के लिए छोटे-छोटे स्वीट से मिनी सिलेंडर चलेंगे, जिसे वो वॉकमैन की तरह लटकाए-लटकाए फिरेंगे।

इन दिनों “स्वदेशी” नारे का क्या हुआ? अब सुनाई नहीं पड़ता। दरअसल स्वदेशी की आड़ में इतनी विदेशी कंपनियां आ गई हैं कि बस कुछ मत पूछो। कौन सा क्षेत्र है जिसमें वो नहीं घुसी हुईं।पैन-पेंसिल, कच्छा-बनियान, जूते-चप्पल, साबुन-तेल आदि। जल्द ही अब वो कुल्हड़, पत्तल, छप्पर, भूसा, गन्ने का रस, गुड़ सब का उत्पादन करने लगेंगी।

लोग शान से बताया करेंगे कि फलां की शादी में स्वीडन के कुल्हड़ में चाय मिली थी। हमने अपनी बिटिया की शादी में जापान से पत्तलें मँगवाई थीं। हमारी गाय, भूसा सिर्फ “मेड इन जर्मनी” ही खाती है। ऐसा दूध देती है कि एक लोटा पीते ही हम लोग फर्राटेदार जर्मन बोलने लगते हैं। दुनियां इसी का नाम है। पहले देश का मंडलीकरण हो रहा था। फिर कमंडलीकरण और अब भूमंडलीकरण हो रहा है। आप पानी गंगा का नहीं वोल्गा का पियें। वो भी 120/- फी गिलास। गुड़ आप यूपी का नहीं यूके का खायें और इतरायें “हाऊ स्वीट यार”।

अब तो भिखारी भी ट्रेफिक सिग्नल पर एक-दूसरे से मोबाइल पर बात करते हैं। ”ये जो नीले रंग की गाड़ी आयेली है, उसे जाने दे भिडू, उससे माँगने का नहीं, अपुन लियेला है”।

पहले फिल्मों में एक-आध रील भी विदेश की होती थी तो जोर-शोर से प्रचार किया जाता था। ‘एराउंड द वर्ल्ड’ का विज्ञापन मुझे याद है – “राजकपूर ने 8 डॉलर में दुनिया देखी आप सवा रुपये में देखिये”। अब विज्ञापन और सीरियलों की शूटिंग भी विदेश में होती है। अब सीरियलों की भली चलाई। सभी सीरियल्स के नाम, कहानी, पात्र, घर सब एक से, और वही एक से लिपे-पुते चेहरे, रोना-धोना।

आने वाले कुछ सीरियल्स के नाम ये भी हो सकते हैं-

“ननद भी कभी भाभी बनेगी”

“भांजी भी किसी की मामी है”

“मैंने प्यार किया मिस यूनिवर्स से”

“हम आपकी सोसायटी में रहते हैं”

“देश में गई होगी बिजली सप्लाई”

“हाय दैया, हाय राम”

राम से याद पड़ते हैं गांधी, गांधीवाद और रामजन्म भूमि विवाद, पर वो किस्सा फिर कभी।

#DrRavindraKumar, रिटायर्ड #IRPS, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और व्यंग्यकार हैं।