देश की लाइफलाइन – भारतीय रेल – को “कोरोना अवसर” ने स्वार्थ और मंसूबों के लिए निगल लिया!
केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय दोनों इस समय साँप-सीढ़ी का खेल खेल रहे हैं। पहले विभिन प्रदेशों में फंसे श्रमिकों को उनके गृह प्रदेश पहुंचाने का खेल श्रमिक स्पेशल चलाकर खेला गया और अब फिर से उन्हें उनके गृह प्रदेश से रोजी-रोटी कमाने के लिए अन्य प्रदेशों में वापस भेजने का खेल चालू हो गया है।
अब तो लूडो का गेम बनाने वाला भी घनचक्कर हो गया है कि उससे भी बुद्धिमान कौन आ गया! सकारात्मक सोच रखने वाले खासकर सत्ताधीश लोग कोरोना को अवसर के रूप में प्रचारित कर रहे थे। शायद उनकी बात को किसी ने सही ढंग से जज नहीं किया।
सरकार सबसे पहले इस अवसर को रेल का दिवाला करके उसे बेपटरी करके ही भुनायेगी। कर्मचारी हैरान और परेशान हैं कि आखिर रेल में हो क्या रहा है??
नियमित गाड़ी नहीं चलेगी, लेकिन उसी के नाम और शेड्यूल पर स्पेशल चलाएंगे। रेल कर्मचारी इतनी गफलत में आ गए हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है??
धन्य हो प्रशासक और नीति-नियंता! देश की लाइफ लाइन कही जाने वाली भारतीय रेल को तथाकथित कोरोना नामक अवसर ने अपने स्वार्थ और मंसूबों को पूरा करने के लिए लील लिया!